दस महाविद्याओं में मातंगी शक्ति वशीकरण व वाचा सिद्धि के लिए प्रयोग की जाती है। मातंगी को राजमातंगी, सुमुखी, वश्यमातंगी, कर्णमातंगी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि मतंग ऋषि ने एक बार समस्त जीवों को वश में करने की ठानी तथा एक निश्चय कर घोर तपस्या में लीन हो गए। इसके प्रभाव से एक शक्ति का आकर्षण हुआ। यह शक्ति एक सुन्दर काली स्त्री के रूप में प्रकट हुई। इन्हें मातंगी नाम दिया गया। इनकी सिद्धि से वाणी सिद्धि मिलती है।मातंगी मंत्र भगवान शिव की महाशक्ति है।
यह किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता, विद्यार्थी व वकील आदि के लिए विशेष उपयोगी है। संगीतज्ञ व विद्या अभ्यासी को विद्वान बना देती है। मातंगी साधना का पुरश्चरण सवा लक्ष कहा है। दसांश हवन, तर्पण, मार्जन इत्यादि के बाद कुंवारी कन्याओं को भोजन कराएं तो मातंगी सिद्धि हो जाती हैं।
ध्यान
ध्यायेय रत्नपीठे शुककलपठितं शृणवंतीं श्यामलांगी न्यस्तैकाङ्क्षि सरोजे शशिशकल धरां वल्लकीं वादयन्तीम् । कहारवद्वमालां नियमितविलसच्चूलिकां रक्तवस्त्रां मातंगी शंखपत्रां मधुमदविवशां चित्रकोद्भासि भालाम् ।!
शिरो मातंगी पातु भुवनेश्वरी तु चक्षुषी । लोडला कर्णयुगा त्रिपुरा वदनं पातु कण्डे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा । त्रिपुरा पाश्र्व पातु गृह्ये कामेश्वरी मम् ।। उरु द्वये तथा चण्डी जडघयोश्च हरिप्रिया । महामाया पादयुग्मे सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।। अंग प्रत्यंग चैव सदा रक्षतु वैष्णवी तथा । ब्रह्मरन्ध्रे सदारक्षेन्मातंगी नाम सं संस्थिता ।।
मातंगी साधना ज्योतिष रहस्य तथा ब्रह्माण्ड की गुप्त विद्याओं को प्रकाशित करने वाली शक्ति है। मातंगी साधना से अज्ञात को भी ज्ञात में बदला जा सकता है।