मानव,, मन, प्राण ,बुद्धि के समिश्रण से संचालित जीवंत ऊर्जा का संघनन है।
इसका संचालन ,,,,,,,,,प्राण वायु की ऊर्जा ,मस्तिष्क की तरंगों को मन के विभिन स्तरों आयामों के द्वारा हथेली ,कर हस्त में अंकित किया जाता है।
प्रकृति की जटिलतम जीवंत अद्भुत कृति का गुढ़ रहस्य ,या समझने की कुंजी ईश्वर ने साथ देकर निर्माण किया है। वह हमारा हाथ ,हथेली जो व्यक्तित्व का दर्पण है।
किन्तु हम कस्तूरी मृग की भाँति बाह्य संसार मे स्वयं को खोजते हैं क्यों ? मूलतः मन जिज्ञासु ,अस्थिर हर पल क्रियाशील है,, चेतन,अचेतन,अवचेतन स्वरूप में,,
ज्ञात तो प्रकट है किंतु अधिकतम अदृश्य । इसी दृश्य अदृश्य के बीच , मन जीवन की संरचना ,,कर्म करता हुआ प्रारब्ध ,पुरुषार्थ, की व्यथा कथा लिखता ,सुनता, सुनाता,गुनता भटकता फिरता है।कुछ जो हम लेकर आये है और लेकर जाएंगे यह क्रम निरंतर प्रवाहमान है।
मन ,मस्तिष्क का यह संकेत हमारे अंगों से प्रकट होता है ,, अंग के रहस्य को प्रकट करने सामुद्रिक शास्त्र की उत्पत्ति हुई ,,किन्तु चेहरे ,से भी ज्यादा या यूँ कहे की मनुष्य के व्यक्तित्व ,अस्तित्व का लेखा जोखा,, बहीखाता हथेली है।
इसमें सूक्ष्मतरंग अपना निशान छोड़ जाती है।
इसको जानने समझने ,,डी कोड करने की विधा या कुंजी हस्त सामुद्रिक रहस्य या पामिस्ट्री है।
इसको गोपनीय रखा गया क्यों??
ऋषि सत्ता द्वारा गुरु शिष्य परम्परा से हस्तांतरित होते हुए , आज तम से ढँक गयी है, या तामसी भौतिकता के के द्वारा वरण कर ली गईहै।यह विद्या आज अपने मूल अस्तित्व से विमुख होने की कगार पर है,, प्रयोग शोध ,,काल, सामाजिक राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों, के मापदंड पर बिना परखे इसका प्रयोग घातक है।
आज जिस प्रकार ज्ञान अग्नि परीक्षा से बार बार गुजरने के बाद भी संशय भ्रम द्वारा उपेक्षा का शिकार है ,,,स्वीकार करने में एकमत या बहुमत को जुटाने प्रयासरत है।
इस गहन अंधकार में आओ चले सात्विक ज्ञान यज्ञ ,,या ज्ञान दीप प्रज्ज्वलन में अपनी सहभगिता तय करें ।
विधा को प्रयोग ,परीक्षण,प्रशिक्षण,शोध ,साधना ,निरंतर अभ्यास से जो जाना और जो जाना जा सकता है उसको प्राप्त करने संयुक्त रूप हमारे साथ चलें