महात्मा कपिल ने यह कहा राजन! तुम्हारे यहाँ ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य, इनका निर्वाचन कहाँ होना चाहिए, विद्यालयों में आयुर्वेद के पाण्डितव रहने चाहिए। विद्यालय में इस प्रकार का निर्णय लेने वाले हों, जो पाण्डितव को प्राप्त कराते रहें, और वैश्य प्रणाली को ऊँचा बनाते रहें, क्योंकि राजा के राष्ट्र में यदि वैश्य संग्रह करने वाल बन गया तो राष्ट्र की मृत्यु हो जाएगी। यदि ब्राह्मण,विद्या देता हुआ घृणा करेगा देखो,वह पुरोहित पनें में सूक्ष्मता रहेगी, तो ब्राह्मण की राजा के राष्ट्र में मृत्यु हो जाएगी, और यदि मंगलं देखो, क्षत्रिय अपने कर्तव्य का पालन, रक्षा में नही करेंगें, तो क्षत्रिय की मृत्यु हो जाएगी। और यदि राजा ब्रह्मवेत्ता नही है, राजा के यहाँ ब्रह्म ज्ञान नही है निर्णय लेने वाला, तो यदि ब्रह्मवेत्ता नही है, तो उस राजा की मृत्यु हो जाएगी। यह महात्मा कपिल ने वर्णन करते हुए कहा है, उन्होंने कहा कि ब्राह्मण राजा के राष्ट्र में ऐसा होना चाहिए
जिससे वह ब्रह्मज्ञान देता है और प्रकाश देता रहे। प्रत्येक प्राणी के कर्तव्य के लिए, यह संदेश देता रहे, और वह संदेश कैसा प्रातःकालीन सुगन्ध होनी चाहिए, यदि गृहाश्रम में सुगन्धि नही आती, तो वह गृहाश्रम क्या है, वह नारकिक कहलाता हैं। राजा के राष्ट्र में, जब यह घोषणा की जाती है, क्या प्रत्येक गृह में प्रातःकालीन याग होता हुआ, देव पूजा होती हुई मन्त्रों का उद्गीत रूप में गाया जाएं, और उद्गीत वाणी, यह वेदमन्त्रों की ध्वनि के साथ में, साकल्य जब गमन करता है तो वह राजा के राष्ट्र में याग की सुगन्धि रह जाती हैं वह सुगन्धित हो जाता है। तो राजा के राष्ट्र में ये पुरोहितो का कर्तव्य है, और राजा के यहाँ कहीं अज्ञान आ जाएं, तो त्याग पूर्वक ब्रह्मवेत्ता को जा करके कहना चाहिए हे राजन! तू अज्ञानता में क्यों आ गया हैं? और अज्ञानता से राष्ट्र नही चलता है,तू हिंसा में चला गया हैं, और राष्ट्र अहिंसा को प्राप्त होता है।
वेद के मन्त्रों में, वैदिक साहित्य में अध्वर्यु की जब विवेचना आती है अध्वर्यु की चर्चा तुम्हें पूर्व काल में प्रगट की हैं अध्वर्यु कहते हैं राजा को, राजा के राष्ट्र में प्रत्येक प्राणी की रक्षा होनी चाहिए। प्रत्येक प्राणी की रक्षा हो, परन्तु वह राजा महान कहलाता है, जो अश्वमेध याग करने वाला हो हे राजन! तुम्हारा यह अश्वमेध याग आज सम्पन्न हुआ हैं, और यह उसकी अन्तिम याग के चरणों की आभा में मानो रत्त होना चाहता है, और वह यह कि हे राजन! तेरे राष्ट्र में अज्ञान नही आना चाहिए, और अज्ञान उसे कहते हैं? जो मानव से घृणा करता है या मानव, मानव को मृत्यु तब पंहुचा देता हैं।
कल मेरे प्यारे महानन्द जी अपनी वार्त्ता प्रगट करेंगें, आज का तो इतना समय आज्ञा नही दे रहा है, क्योंकि उनके विचार जो उनकी वेदना जागरूक हो रही है, विचार केवल यह है कि आज हमारा विचार, केवल यह है कि जब राजलक्ष्मियां जब प्रजा में भ्रमण करती है, और मेरी पुत्रियों को यह कहती है, कि पुत्रियों! तुम्हारा जो शृंगार है, तुम्हारा जो आभूषण है, वह तुम्हारा चरित्र है वह तुम्हारी मानवता है तुम्हारा आयुर्वेद का अध्ययन होना चाहिए। महात्मा कपिल ने कहा कि राजा के राष्ट्र में, पुत्रियों का आयुर्वेद का संदेश देना चाहिए, आयुर्वेद की विद्या मेरी पुत्रियों के द्वारा होनी चाहिए, जिससे देखो, बाल्य का वह पालन कर सकें, और देखो, उनकी लोरियों की पांच वर्ष तक की आयु में, वह बाल्य इतना पौष्टिक बन जाता है, आगे उसे रूग्ण आता ही नही ऐसा मुझे मानो पुरातन काल का कुछ अनुभव भी स्मरण आता रहता हैं, परन्तु मेरी पुत्रियों का जो शृंगार है, आभूषण है, वह उनका ज्ञान है, विज्ञान है, और उसकी सुचरित्रता मानी जाती है। जब तक मेरी पुत्रियों में ज्ञान नही आता है, मानो देखो, ज्ञान नही होता हे राजन! तुम्हारे राष्ट्र में तो सब दिव्या बड़ी सुसज्जित हैं, अपने में महान हैं, परन्तु तुम्हारे राष्ट्र में आयुर्वेद होना चाहिए। आयु की देने वाली माता होती है
मानो देखो, वेद के मन्त्रों में, वैदिक साहित्य में बेटा! अध्वर्यु की जब विवेचना आती है अध्वर्यु की चर्चा तुम्हें पूर्व काल में प्रगट की हैं मानो देखो, अध्वर्यु कहते हैं राजा को, राजा के राष्ट्र में देखो, प्रत्येक प्राणी की रक्षा होनी चाहिए। प्रत्येक प्राणी की रक्षा हो, परन्तु देखो, वह राजा महान कहलाता है, जो अश्वमेध याग करने वाला हो हे राजन! तुम्हारा यह अश्वमेध याग आज सम्पन्न हुआ हैं, और यह उसकी मानो देखो, अन्तिम याग के चरणों की आभा में रत्त होना चाहता है, और वह यह कि हे राजन! तेरे राष्ट्र में अज्ञान नही आना चाहिए, और अज्ञान उसे कहते हैं? जो मानव से घृणा करता है या मानव, मानव को मृत्यु तब पंहुचा देता हैं।