माघ कृष्ण चतुर्दशी, यानी महाशिवरात्रि, भगवान शिव की उपासना का पावन पर्व है! उपवास, पूजा और जागरण इस व्रत के तीन प्रमुख अंग हैं। इस व्रत की एक कथा शिवलीलामृत ग्रंथ में बताई गई है।
विंध्य पर्वत के पास के जंगल में एक व्याध (शिकारी) रहता था। एक दिन वह पूरे दिन जंगल में शिकार की तलाश में भटकता रहा, लेकिन कोई शिकार नहीं मिला। थककर वह एक तालाब के किनारे बेल के पेड़ पर चढ़कर अपने शिकार की प्रतीक्षा करने लगा।
रात के पहले प्रहर में एक गर्भवती हिरणी पानी पीने के लिए तालाब पर आई। शिकारी उस पर बाण चलाने ही वाला था कि हिरणी ने विनती की कि वह बच्चे को जन्म देकर लौट आएगी। व्याध ने उसे जाने दिया।
रात के दूसरे प्रहर में एक और हिरणी आई। शिकारी ने जैसे ही धनुष उठाया, उसने कहा कि वह पहले अपने पति की सेवा करके लौटेगी। व्याध ने उसे भी जाने दिया।
तीसरे प्रहर में फिर एक हिरणी आई और उसने भी लौटने का वचन दिया। शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।
अंतिम प्रहर में चौथी हिरणी आई। उसने अपने परिवार से अंतिम बार मिलने की अनुमति मांगी। व्याध ने उसे भी जाने दिया।
सुबह होते ही चारों हिरण अपने वचन के अनुसार वापस लौट आए। सभी ने आपस में धर्मचर्चा की कि किसे पहले मरना चाहिए। व्याध ने उनकी निष्ठा देखकर उन पर दया कर दी और सभी को जीवनदान दे दिया।
शिकारी की करुणा और हिरणों की सत्यनिष्ठा देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने उन सभी को आकाश में स्थान दे दिया। उस दिन महाशिवरात्रि थी।
“व्याध को शिवपद प्राप्त हुआ, मृग तारा बने।
आज भी आकाश में चमकते हैं, जिन्हें हर कोई देख सकता है।”
(शिवलीलामृत, अध्याय १)
आकाश में व्याध और मृग तारामंडल
यह शिकारी वास्तव में आकाश में सबसे चमकीला तारा व्याध (Sirius) है। यह तारा सूर्य से 27 गुना अधिक चमकीला और आकार में दोगुना बड़ा है। यह पृथ्वी से 8.7 प्रकाशवर्ष दूर है। वास्तव में, व्याध एक अकेला तारा नहीं है, बल्कि एक जुड़वां तारों की प्रणाली है – व्याध A और व्याध B, जो एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं।
व्याध तारे के पास ही मृग तारामंडल (Orion) स्थित है, जिसे रात के आकाश में सबसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके चार प्रमुख तारे उसी पौराणिक कथा के चार हिरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मृग तारामंडल पूरे पृथ्वी से देखा जा सकता है और यह सबसे प्रसिद्ध नक्षत्रों में से एक है।
प्रजापति, मृग और व्याध की दूसरी कथा
शंकर, व्याध और मृग तारामंडल के संबंध में एक और कथा ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण में मिलती है।
इस कथा के अनुसार, प्रजापति को अपनी सुंदर पुत्री रोहिणी पर मोह हो गया। भयभीत होकर रोहिणी ने एक हिरणी का रूप धारण किया और आकाश में भागने लगी। प्रजापति ने भी मृग का रूप धारण कर उसका पीछा किया।
इस पाप को रोकने के लिए स्वयं भगवान शंकर व्याध (शिकारी) के रूप में प्रकट हुए और जब मृग-पिता पश्चिम दिशा की ओर मुड़ा, तो उन्होंने त्रिकांड बाण (तीन बाण) चलाकर उसे नष्ट कर दिया।
आज भी, आकाश में यह दृश्य देखा जा सकता है – मृग तारामंडल में चार मुख्य तारे हिरण के पैर प्रतीत होते हैं, जबकि उसकी पूंछ, सिर (मृगशीर्ष नक्षत्र) और ओरायन बेल्ट में तीन तारे त्रिकांड बाण के रूप में दिखाई देते हैं।
आकाशीय कहानियों का महत्व
तारों और नक्षत्रों से जुड़ी पौराणिक कथाएँ दुनिया की हर संस्कृति में पाई जाती हैं। ये कथाएँ आकाश को देखने और समझने को रोचक बनाती हैं।
आज महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर, पश्चिमी आकाश में व्याध तारा और मृग तारामंडल को अवश्य देखें!
“दिक् (अंतरिक्ष) जिसका वस्त्र है, काल (समय) जिस पर अंकित है,
जिसकी जटाओं से आकाशगंगा बहती है,
जो प्रलयकाल में नए सृजन के लिए तांडव करता है,
ऐसे महादेव को हमारा नमन!”