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महर्षि पाराशर

महर्षि पाराशर शक्ति मुनि के पुत्र एवम  ब्रह्म्रिशी वशिस्ठ के पौत्र थे. आपकी माता का नाम अद्रश्यन्ति था जो की उथ्त्य मुनि  की पुत्री थी. मह्रिषी पराशर का जन्म अपने पिता शक्ति की मृत्यु  के पश्चात् हुआ था, तथापि गर्भावस्था में ही उन्होंने  पिता द्वारा कही गयी वैद ऋचाये कंठस्थ  कर ली थी. महर्षि पाराशर ने विध्याध्यं अपने पितामह महर्षि वशिष्ठजी के पास रह कर पूरी की वे वशिष्ठजी को ही अपना पिता समजते थे. एक बार महर्षि पाराशरजी की माता जी ने महर्षि पाराशरजी से कहा की हे पुत्र, जिसे तुम पिता समझते हो वो तुम्हारे पितामह है. महर्षि पाराशर जी के पूछने पर महर्षि पाराशर जी की माता ने  समस्त जानकारी उन्हें करा दी की किस प्रकार तुम्हारे पिता को राक्षस ने तुम्हारे जन्म से पहले हुई मार डाला था।

 

पिता की मृत्यु का ज्ञान होने पर महर्षि पाराशर जी का क्रोधित होना स्वाभाविक था, उन्होंने सोचा की उनके पिता एवम पितामह के यशस्वी  एवम ज्ञानी होने के कारण देवता उनका सम्मान करते हैं और उनका भक्षण एक राक्षस करे- यह सहन नही हो सकता. ऐसा विचार करके महर्षि पाराशर जी ने एक यज्ञ का आयोजन इस विचार से किया की मैं अपनी पिता की वैर का बदला लूँगा और प्रथ्वी से मानव एवम दानव दोनों ही कुलो का नाश कर दूंगा.

ब्रह्म्रिशी के समझाने पर की ऋषि का धर्म रक्षा करना हैं, महर्षि पाराशर जी ने मानव जाति को  तो क्षमा कर दिया, किन्तु राक्षशो के विनाश के लिए यज्ञ आरम्भ कर दिया. यज्ञ द्वारा राक्षस कुलो का सर्वनाश होते देख पुल्सत्य मुनि ने अनुनय विनय की  “आप यह यज्ञ ना करे”. महर्षि पाराशर पुल्सत्य मुनि का बड़ा आदर करते थे इसलिए महर्षि पाराशर ने उनकी, अपने पितामह एवम अन्य ऋषियों के वचनों का आदर करते हुए यज्ञ का विचार त्याग दिया.

तब मुनी पुलस्त्य ने महर्षि पाराशर को ये वरदान दिया की “वत्स पाराशर, पुराणों को संहिताबध कर समस्त शाश्त्रो के गूढ़ रहष्यो को आत्म्शात कर समस्त शाश्त्रो में पारंगत होवोगे।

महर्षि पाराशर का दिव्य जीवन जहाँ अत्यंत आलोकिक एवम अद्वितीय हैं, उन्होंने धर्म शास्त्र,  ज्योतिष, वास्तुकला, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र, विषयक ज्ञान मानव मात्र को दिया उनके द्वारा रचित ग्रन्थ “व्रह्त्पराषर, होराशास्त्र  लघुपाराशरी, व्रह्त्पराशारी धरम संहिता, पाराशर धर्म संहिता, परशारोदितं, वास्तुशाश्त्रम, पाराशर संहिता (आयुर्वेद), पाराशर महापुराण, पाराशर नीतिशास्त्र  आदि मानव मात्र के कल्याण मात्र के लिए रचित ग्रन्थ जग प्रशिद्ध हैं

 

ऋशि पराशर जी प्राचीन भारतीय ऋषि मुनि परंपरा की श्रेणी में एक महान ऋषि के रूप में सामने आते हैं. प्रमुख योग सिद्दियों के द्वारा तथा अनेक महान शक्तियों को प्राप्त करने वाले ऋषि पराशर महान तप और साधना भक्ति द्वारा जीवने के पथ प्रदर्शक के रुप में सामने आते हैं. ऋषि पराशर के पिता का देहांत इनके जन्म के पूर्व हो चुका था अतः इनका पालन पोषण इनके पितामह वसिष्ठ जी ने किया था. यही ऋषि पराशर वेद व्यास कृष्ण द्वैपायन के पिता थे. मुनि शक्ति के पुत्र तथा महर्षि वसिष्ठ के पौत्र हुए ऋषि पराशर. महान विभुतियों के घर जन्म लेने वाले पराशर इन्हीं के जैसे महान ऋषि हुए.

 

ऋषि पराशर कथा

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ऋषि पराशर वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार थे. इनका पालन पोषण एवं शिक्षा इनके पितामह जी के सानिध्य में हुई इस जब यह बडे़ हुए तो माता अदृश्यंती से इन्हें अपने पिता की मृत्यु का पता चला कि किस प्रकार राक्षस ने इनके पिता का और परिवार के अन्य जनों का वध किया यह घटना सुनकर वह बहुत क्रुद्ध हुए राक्षसों का नाश करने के लिए उद्यत हो उठे. उन्होंने राक्षसों के नाश के निमित्त राक्षस सत्र नामक यज्ञ आरंभ किया जिसमें अनेक निरपराध राक्षस भी मारे जाने लगे. इस प्रकार इस महा विनाश और दैत्यों के व्म्श ही समाप्त हो जाने को देखकर पुलस्त्य समेत अन्य ऋषियों ने पराशर ऋषि को समझाया महर्षि पुलस्त्य जी के कथन अनुसार ऋषि पराशर जी ने यज्ञ समाप्त किया और राक्षसों के विनाश करने का क्रम त्याग दिया।

 

महर्षि पराशर और वेद व्यास

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महर्षि पराशर के पुत्र हुए ऋषि वेद व्यास जी इनके विषय में पौराणिक ग्रंथों में अनेक तथ्य प्राप्त होते हैं. इनके जन्म की कथा अनुसार यह ऋषि पराशर के पुत्र थे इनकी माता का नाम सत्यवती था. सत्यवती का नाम मत्स्यगंधा भी था क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध आती थी वह नाव खेने का कार्य करती थी. एक बार जब पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करते हैं तो पाराशर मुनि सत्यवती के रूप सौंदर्य पर आसक्त हो जाते हैं और उसके समक्ष प्रणय संबंध का निवेदन करते हैं.

 

परंतु सत्यवती उनसे कहती है कि हे “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या अत: यह संबंध उचित नहीं है तब पाराशर मुनि कहते हैं कि चिन्ता मत करो क्योंकि संबंध बनाने पर भी तुम्हें अपना कोमार्य नहीं खोना पड़ेगा और प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी इस पर सत्यवती मुनि के निवेदन को स्वीकार कर लेती है. ऋषि पराशर अपने योगबल द्वारा चारों ओर घने कोहरे को फैला देते हैं और सत्यवती के साथ प्रणय करते हैं. ऋषि सत्यवती को आशीर्वाद देते हैं कि उसके शरीर से आने वाली मछली की गंध, सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी.

 

वहीं नदी के द्विप पर ही सत्यवती को पुत्र की प्राप्ति होती है यह बालक वेद वेदांगों में पारंगत होता है. व्यास जी सांवले रंग के थे जिस कारण इन्हें कृष्ण कहा गया तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न होने के कारण यह ‘द्वैपायन’ कहलाये और कालांतर में वेदों का भाष्य करने के कारण वह वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये. इस प्रकार पराशर जी के कुल में उत्पन्न हुई एक महान विभुति थे वेद व्यास जी.

 

पराशर द्वारा रचित ग्रंथ

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पराशर ऋषि ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें से ज्योतिष के उपर लिखे गए उनके ग्रंथ बहुत ही महत्वपूर्ण रहे. इन्होंने फलित ज्योतिष सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया. कहा जाता है, कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री नहीं हुए. इसी संदर्भ में एक प्राचीन कथा प्रचलित है, कि एक बार महर्षि मैत्रेय ने आचार्य पराशर से विनती की कि, ज्योतिष के तीन अंगों के बारे में उन्हें ज्ञान प्रदान करें है. इसमें होरा, गणित, और संहिता तीन अंग हुए जिसमें होरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. होरा शास्त्र की रचना महर्षि पराशर के द्वारा हुई है.

 

ऋग्वेद के अनेक सूक्त इनके नाम पर हैं, इनके द्वारा रचित अनेक ग्रंथ ज्ञात होते हैं जिनमे से बृहत्पराशर होरा शास्त्र, लघुपाराशरी, बृहत्पाराशरीय धर्मसंहिता, पराशरीय धर्मसंहिता स्मृति, पराशर संहिता वैद्यक , पराशरीय पुराणम, पराशरौदितं नीतिशास्त्रम, पराशरोदितं, वास्तुशास्त्रम इत्यादि. कौटिल्य शास्त्र में भी महर्षि पराशर का वर्णन आता है. पराशर का नाम प्राचीन काल के शास्त्रियों में प्रसिद्ध रहे है. पराशर के द्वारा रचित बृहतपराशरहोरा शास्त्र में लिखा गया है.

 

इन अध्यायों में राशिस्वरुप, लग्न विश्लेषण, षोडशवर्ग, राशिदृ्ष्टि, भावविवेचन, द्वादश भावों का फल निर्देश, प्रकाशग्रह, ग्रहस्फूट, कारक,कारकांशफल,विविधयोग, रवियोग, राजयोग, दारिद्रयोग,आयुर्दाय, मारकयोग, दशाफल, विशेष नक्षत्र, कालचक्र, ग्रहों कि अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, त्रिकोणदशा, पिण्डसाधन, ग्रहशान्ति आदि का वर्णन किया गया है.से निवृत्त किया और पुराण प्रवक्ता होने का वर दिया ऋषि पराशर द्वारा दिए गए समस्त वक्ताओं में कुछ बातों का ध्यान अधिक देने की आवश्यकता है

 

महर्षि पराशर ने बताया था कि कलियुग

में कैसी होगी सृष्टि !!

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जिज्ञासा प्रश्न को जन्म देती है,प्रश्न उत्तर की  अपेक्षा करता है।  जिज्ञासु अपनी शंका के निवारण के लिए समाधान  के द्वार पर दस्तक देता है।  ज्ञानी और शिष्य का संवाद ज्ञान का अक्षय भंडार बनकर भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित होता है।

 

मैत्रेय और मुनि पराशर के मध्य जीव,जगत और  ब्रह्म को लेकर जो संवाद हुआ,वही विष्णु पुराण का संकलित रूप है।

 

मनुष्य संसार मे जन्म लेता है,जीता है और मृत्यु  को प्राप्त होता है। ऐसा क्यों होता है।

क्या वह अमर नहीं बन सकता ?

 

यह प्रश्न अनादिकाल से अनुत्तरित ही रहा।

इसका समाधान पाने को मैत्रेय पराशर मुनि

से प्रश्न करते हैं।

 

पराशर उत्तर देते हैं,

 

“वत्स मैत्रेय,सृष्टि,स्थिति और लय-क्रमश: जन्म, अस्तित्व और मृत्यु के प्रतीक हैं।

इनका आवर्तन अवश्यंभावी है।  इस त्रिगुणात्मक रहस्य का ज्ञान प्राप्त करने के

पूर्व तुम्हें काल-ज्ञान का परिचय पाना होगा।

 

उन्होंने कहा,ध्यान से सुनो,  “मनुष्य के एक निमिष मात्र यानी पलक मारने  का समय एक मात्र है।  पंद्रह निमिष एक काष्ठा कहलाता है।  तीस काष्ठा एक कला है।

पंद्रह कलाएं एक नाडिका है, दो नाडिकाएं एक मुहूर्त, तीस अहोरात्र एक मास होता है। बारह मास एक वर्ष होता है। मानव समाज का एक वर्ष देवताओं का एक

अहोरात्र होता है।  तीन सौ आठ वर्ष एक दिव्य वर्ष कहलाता है।  बारह हजार दिव्य वर्ष एक चतुर्युगी (कृत त्रेता,  द्वापर और कलियुग) होता है।  एक हजार चतुर्युग मिलकर ब्रह्मा का एक दिन होता है। इसी को कल्प कहते हैं।  एक कल्प में चौदह मनु होते हैं।  कल्प में प्रलय होता है। इसको नैमित्तांतक प्रलय कहते हैं।

 

प्रलय तीन प्रकार के होते हैं नैमित्तिक, प्राकृतिक और आत्यंतिक।

 

इन प्रलयों का वृत्तांत मैं आगे सुनाऊंगा।’ “

 

मैत्रेय ने पूछा, “गुरुदेव,आपने कहा था कि सतयुग  में ब्रह्मा सृष्टि रचते हैं और कलियुग में संहार  करते हैं।  मैं सर्वप्रथम कलियुग का वृत्तांत सुनना चाहता हूं, इसके स्वरूप का विवेचन कीजिए।”

 

मुनि पराशर थोड़ी देर के लिए विचारमग्न हुए,  फिर बोले, “मैत्रेय, कलियुग में वर्णाश्रम धर्मो  का याने ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास  का पालन न होगा।

विधिपूर्वक धर्मबद्ध विवाह न होगे।

गुरु और शिष्य का समबंध टूट जाएगा।

दाम्पत्य जीवन में दरारें पड़ेंगी।

पति-पत्नी के बीच कलह होंगे। यज्ञ-कर्म लुप्त हो जाएंगे। बलवान लोग निर्बलों पर अधिकार करेंगे।  अत्याचार और अन्यायों का बोलबाला होगा। धनी वर्ग सभी जातियों वाली कन्याओं से विवाह करेंगे।

अपने पापों को धोने के लिए गुरु से दीक्षा लेंगे  और प्रायश्चित करवा लेंगे।

छद्म वेषधारी गुरुओं के मुंह से जो शब्द निकलेंगे, वे ही शास्त्र माने जाएंगे।  क्षुद्र देवताओं की पूजा होगी। आश्रमों के द्वार सब लोगों के लिए खुले रहेंगे। उपवास, तीर्थ-यात्रा,दान-पुण्य,पुराण-पाठ उत्तम

धर्म के लक्षण माने जाएंगे।”

 

यह कहकर पराशर मुनि पल भर मौन रहे,

फिर बोले, “और सुनो, कलियुग की अनंत महिमा।

 

स्त्रियां अपने केश-विन्यास पर अभिमान करेंगी।  विविध प्रकार के प्रसाधनों से अपने को अलंकृत करेंगी। रत्न, मणि, मानिक, स्वर्ण और चांदी के बिना अपने बालों को संवारेंगी।  दरिद्र पति को त्याग देंगी।

 

अधिक-से-अधिक धन देने वाले पुरुष को वे अपना पति मानेंगी।  वही उनका स्वामी होगा।  कुलीनता पर नारी-पुरुष का संबंध नहीं जुड़ेगा। स्त्रियों में स्वेच्छाचारिता बढ़ जाएगी। वे सुंदर पुरुष की कामना करेंगी।

भोग-विलास को अपने जीवन का लक्ष्य मानेंगी।”

 

अब पुरुषों का वृत्तांत सुनो, “पुरुष थोड़ा सा धन पर अभिमान करेगा।  धन जोड़ने की प्रवृत्ति पुरुष वर्ग में बढ़ जाएगी। वे अपना धन सुख भोगने में पानी की तरह

बहाएंगे। गृह-निर्माण में सारा धन खर्च करेंगे। अन्याय पूर्वक धन कमाने की चेष्टा करेंगे। उत्तम कार्यो में धन खर्च करने से विमुख होंगे। स्वार्थ की वृत्ति बढ़ेगी और परोपकार की भावना  लुप्त हो जाएगी!

संक्षेप में समझाना हो तो यही कहना चाहूंगा कि पैसे में परमात्मा के दर्शन करेंगे।”

पराशर के अनुसार, सामाजिक दशा बद से बदतर होती जाएगी।  जाति-पांति के भेद-भाव मिट जाएंगे।  शूद्र अपने को ब्राह्मण वर्ग के बराबर मानेंगे। दूध देनेवाली गायों का ही संरक्षण होगा। धन-धान्य की स्थिति क्या बताई जाए। समय पर वर्षा न होगी। सर्वत्र अकाल का तांडव होगा। सूखा पड़ने से लोग भूख-प्यास से तड़प तड़प

कर मर जाएंगे। कंद,मूल और फलों से पेट भरने का प्रयास करेंगे। जनता दुख,दरिद्रता और रोगों का शिकार होगी। पौष्टिक आहार के अभाव में लोग अल्पायु में ही बूढ़े हो जाएंगे। पिंडदान न होगा,स्त्रियां अपने पति और बुजुर्गो के आदेशों का पालन नहीं करेंगी। रीति-रिवाज मिट जाएंगे।

स्त्रियां झूठ बोलेंगी। दुराचारिणियां होंगी।

ब्रह्मचारी यम-नियम का पालन नहीं करेंगी।

वानप्रस्थी नगर का भोजन पसंद करेंगे।

साधु-संन्यासी अपने स्नेहीजनों के प्रति

पक्षपातपूर्ण व्यवहार करेंगे।”

 

ऐसी स्थिति में राजा-प्रजा की बात क्या होगी, सुन लो,

 

“कलियुग की अपार महिमा यह है कि राजा कर वसूली के बहाने प्रजा को लूटेंगे।

मुसीबत में फंसी प्रजा की रक्षा नहीं करेंगे।

गुंडे और चरित्रहीन लोगों का राज्य होगा।

जो अपने पास ज्यादा रथ,हाथी और घोड़े रखता है,वही राजा माना जाएगा।

 

विद्वान पुरुष और सज्जन धनहीन होने के कारण सेवक माने जाएंगे।  वणिक वर्ग कृषि और वाणिज्य त्याग कर शिल्पकारी होंगे। वे भी शूद्र वृत्ति से अपना भरण पोषण करेंगे। पाखंडी लोग साधु-संन्यासी के वेष में भिक्षाटन करेंगे। वे समाज द्वारा सम्मानित होकर सर्वत्र पाखंड फैलाएंगे।

राजा के द्वारा कर बढ़ाया जाएगा।

कर-भार और अकाल से पीड़ित होकर लोग ऐसे देशों की शरण लेंगे जहां गेहूं और ज्वार ज्यादा पैदा होता है।”

 

“वत्स! अब तम्हें कलियुगीन धर्म की बात

सुनाता हूं, “वैदिक धर्म नष्ट हो जाएगा।

पाखंड का साम्राज्य फैलेगा। शास्त्र विरुद्ध तप और राजा के कुशासन से अधिक संख्या में शिशुओं की मृत्यु होगी। प्रजा की आयु घट जाएगी।

 

सात-आठ वर्ष की बालिका और दस-बारह वर्ष आयु के बालक की संतान होगी। बारह वर्ष की उम्र में बाल पकने लग जाएंगे।

पूर्णायु बीस वर्ष की होगी। प्रजा की बुद्धि मंद पड़ जाएगी।दृष्टि दोष होगा।”

 

“गरुदेव,आपने कलियुग के लक्षण बताए,

पर कलियुग के आगमन की पहचान कैसे हो ? इस पर थोड़ा प्रकाश डालिए।” मैत्रेय ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।

 

मुनि पराशर ने मंदहास करके कहा, “संसार में धर्म के लुप्त होने के साथ ही सर्वत्र युद्ध,हिंसा, अत्याचार, दुराचार, पाखंड आदि दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएंगे।

 

इन लक्षणों को देख बुद्धिमान लोग समझ जाएंगे कि अब कलियुग अपने परे उत्कर्ष पर है। हां,उस हालत में पाखंडी लोग यह प्रश्न जरूर करेंगे कि देवताओं की पूजा और वेदाध्ययन से लाभ ही क्या है।

सुनो,कलियुग के उत्तरार्ध में प्रकृति और मानव चरित्र में कैसे-कैसे परिवर्तन लक्षित होते हैं।”

 

“वर्षा कम होगी। अनाज कम होगा।

फलों का रस फीका पड़ जाएगा। लोग सन के कपड़े पहनेंगे। चातुर्वर्णी लोग शूद्रों जैसा आचरण करेंगे। अनाज के दाने छोटे होंगे।

गायों के दूध के स्थान पर बकरियों के दूध का प्रचलन होगा।”

 

“वत्स! कलियुग का महत्व कहां तक कहा जाए।

 

परिवार में माता-पिता,भाई-बंधु,गुरुजनों के स्थान पर सास-सुसर, पत्नी और साले का प्रभुत्व होगा। स्वाध्याय समाप्त होगा।धर्म टिमटिमाते दीप के समान अल्प मात्रा में

रह जाएगा।

 

एक रहस्यपूर्ण बात सुन लो-इन सारी विकृतियों के बावजूद कलियुग की अपनी विशेष महिमा है।

 

कृत युग में जहां जप, तप, व्रत, उपवास, तीर्थाटन, दान-पुण्य,सदाचरण और सत्यकर्मो से जो पुण्य प्राप्त होता था,वह कलियुग में थोड़े से प्रयत्न से ही संभव होगा।”

 

मैत्रेय ने विस्मय में आकर पूछा, “सो कैसे ?

कलियुग तो समस्त दुष्कृत्यों से भरा हुआ है।”

 

महर्षि पराशर मंदहास करके बोले,

“सुनो, तपस्वियों में एक बार चर्चा चली।

अल्प पुण्य के संपादन से महान फल की प्राप्ति कब होती है ? और उसका कारक कौन होता है?”

 

परस्पर विचार-विनिमय के उपरांत भी वे किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। अंत में यह निर्णय हुआ कि महर्षि व्यास से इस

प्रश्न का समाधान प्राप्त करें। जब वे महर्षि के समीप पहुंचे तब व्यासजी गंगाजी में स्नान कर रहे थे। सभी मुनि गंगा के किनारे खड़े रहे। व्यासजी ने गंगाजल में एक बार गोता लगाया,जल से ऊपर उठते हुए बोले,

“कलियुग श्रेष्ठ है।” फिर दूसरा गोता लगाया,कहा, “हे शूद्र,तुम्हीं श्रेष्ठ हो।”

तीसरी बार डुबकी लगाकर बोले,

“स्त्रियां धन्य हैं! साधु। साधु।”

 

मुनि आश्चर्यचकित हो देखते रह गए।

व्यासजी नहा-धोकर किनारे आए,तब मुनियों के आगमन का कारण पूछा।

 

मुनियों ने हाथ जोड़कर प्रणाम करके कहा,

“महर्षि। वैसे हम लोग आपसे एक शंका का

समाधान करने आए,परंतु इस समय हम

आपके इस कथन का आशय जानने को

उत्सुक हैं। स्नान करते समय गोते लगाते हुए आपने कलियुग, शूद्र और स्त्रियों को श्रेष्ठ बताया। यह कैसे संभव है?”

 

व्यासजी ने गंभीर होकर कहा,

“कृत युग में दस वर्ष तक जप,तप उपवास आदि करने पर जो फल मिल सकता है वह त्रेतायुग में एक ही वर्ष में प्राप्त होता है। द्वापर युग में एक महीने में और कलियुग में एक ही दिन में प्राप्त होगा। कृतयुग में ध्यान योग से जो पुण्य हो सकता है वहीं कलियुग में केवल श्रीकृष्ण-विष्णु का नाम-स्मरण मात्र से प्राप्त होता है। इसलिए मैंने कलियुग को श्रेष्ठ बताया।

 

द्विजवर्ग धर्म च्युत होकर अनर्गलवार्तालाप,

अनायास भोजन पाकर पतन के मार्ग पर होंगे। उन्हें संयम का पालन करना होगा।

अन्न उपजानेवाला वर्ग द्विजों की सेवा करके यानी थोड़े परिश्रम से पुण्य-संपादन करके मोक्ष के अधिकारी हो जाते हैं।

इसलिए मैंने शूद्र को श्रेष्ठ कहा।”

 

“स्त्रियां तो कलियुग में पति की सेवा करके परलोक को प्राप्त कर सकती हैं। इस कारण से मैंने स्त्रियों को श्रेष्ठ और साधु! साधु! कहा। मैं समझता हूं कि अब आप लोगों की शंका का समाधान हो गया होता।”

 

ये शब्द कहकर महर्षि अपनी कुटी की ओर चल पड़े। मुनि वृंद महर्षि व्यासजी के दर्शन और उनकी वाणी से प्रसन्न हुए। उनकी पूजा करके अपने-अपने निवास को लौट गए।

 

महर्षि पराशर की कलियुग सम्बन्धी भविष्यवाणी सर्वथा सत्य सिद्ध हो रही है।

 

प्रनाम्यहम महर्षि पराशर,,

 

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,

जयति पुण्य भूमि भारत,,,

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