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माघी संकष्ट (सकट तिल चतुर्थी) विशेष

संकष्ट तिल चतुर्थी या सकट चौथ माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है।

 

संतानों को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली संकष्टी गणेशचतुर्थी का व्रत माघ कृष्णपक्ष चतुर्थी 29 जनवरी, सोमवार को मनाया जाएगा। मन के स्वामी चंद्रमा और बुद्धि के स्वामी गणेश जी के संयोग के परिणामस्वरुप इस चतुर्थी व्रत के करने से मानसिक शांति, कार्य में सफलता, प्रतिष्ठा में वृद्धि और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इस दिन किया गया व्रत और पूजा- पाठ और दान परिवार में सुख-शांति लेकर आता है। इस दिन इन उपायों को करने से रिद्धि-सिद्धि के दाता गणेशजी आप पर प्रसन्न होंगे।

 

इस वर्ष सकट चौथ पर दो तरह का शुभ योग बन रहा है जिसमें भगवान गणेश की पूजा करने पर बहुत ही शुभ फल की प्राप्ति होगी। सकट चौथ पर चंद्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और शोभन योग में मनाया जाएगा। जिस कारण से सकट चौथ का महत्व बढ़ गया है। सकट चौथ सोमवार के दिन और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के योग से इस दिन माताएं अपने संतान के लिए व्रत रखते हुए उनके सुख की कामना फलदायी होगी।

इस चतुर्थी तिथि को “सकट चतुर्थी” के रुप में भी जाना जाता है। वैसे यह चतुर्थी अन्य नामों से भी जानी जाती है। जिसमें इसे तिल, लम्बोदर आदि नाम भी दिए गए हैं। इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन होता है। तिल चतुर्थी जीवन में सभी सुखों का आशीर्वाद प्रदान करने वाली है। भगवन श्री गणेश द्वारा दिया गया आशीर्वाद ही “वरद” होता है।

 

इसलिये भगवान श्री गणेश का एक नाम वरद भी है जो सदैव भक्तों को भय मुक्ति और सुख समृद्धि का आशीर्वाद होता है। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण बतायी गयी है। इसलिए प्रत्येक माह की चतुर्थी तिथि के दिन गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। भगवान श्री गणेश चतुर्थी का उत्सव संपूर्ण भारत वर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी पर श्री गणेश का पूजन करना अत्यंत ही शुभदायक होता है। बारह मास के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है।

 

(संकष्टी तिल) चतुर्थी पूजन कैसे किया जाए

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संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश जी का पूजन अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार होता है। चतुर्थी तिथि व्रत के नियमों का पालन चतुर्थी तिथि से पूर्व ही आरंभ कर देना चाहिए। पूजा वाले दिन प्रात:काल उठ कर श्री गणेश जी के नाम का स्मरण करना चाहिए। चतुर्थी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। चतुर्थी व्रत वाले दिन नाम स्मरण का विशेष महत्व रहा है। संकष्टी चतुर्थी पूजा स्थल पर  सुबह स्नानादि करके व्रत का संकल्प लेकर व्रती सूर्योदय से चंद्रोदय काल तक नियमपूर्वक रहें। दोपहर में लकड़ी के पाटे पर लाल या पीला कपडा बिछाकर ईशान कोण में मिट्टी के गणेश व चौथ माता की तस्वीर स्थापित कर रोली, मोली,अक्षत, फल,फूल, शमीपत्र,दूर्वा आदि से विधिपूर्वक पूजन करें। फिर मोदक तथा गुड़ में बने हुए तिल के लड्डू का नैवेद्य अर्पण करें और आरती कर चौथ माता की कहानी सुनें।

 

पूजा की विधि

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जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए। पूजा के लिए ईशान दिशा का होना शुभ माना गया है। गणेश जी की प्रतिमा और चौथ माता के चित्र को स्थापित करना चाहिए।

 

भगवान श्री गणेश जी पूजा में दूर्वा का उपयोग अत्यंत आवश्यक होता है। इसका मुख्य कारण है की दुर्वा(घास) भगवान को अत्यंत प्रिय है।

 

भगवान गणेश के सम्मुख ऊँ गं गणपतयै नम: का मंत्र बोलते हुए दुर्वा अर्पित करनी चाहिए।

 

इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करना चाहिए।

 

कपूर, घी के दीपक से आरती करनी चाहिए।

 

भगवान को भोग लगाना चाहिए. तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए और उस प्रसाद को सभी में बांटना चाहिए।

 

व्रत में फलाहार का सेवन करते हुए संध्या समय गणेश जी की पुन: पूजा अर्चना करनी चाहिए. पूजा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।

 

इस दिन दान का भी विशेष शुभ फल मिलता है। इसलिए इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, गुड़, तिल इत्यादि वस्तुओं का दान करना चाहिए. इस प्रकार विधिवत भगवान श्रीगणेश का पूजन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती है।

 

षोडशोपचार पूजा विधि

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इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय काल से ही करनी चाहिए। सूर्यास्त से पहले ही गणेश तिल चतुर्थी व्रत कथा-पूजा होती है। पूजा में तिल का प्रयोग अनिवार्य है। तिल के साथ गुड़, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। इस दिन मूली भूलकर भी नहीं खानी चाहिए कहा जाता है कि मूली खाने धन -धान्य की हानि होती है। इस व्रत में चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही संकटहारी  गणेश एवं चतुर्थी माता को तिल, गुड़, मूली आदि से अर्घ्य देना चाहिए।

 

अर्घ्य देने के उपरांत ही व्रत समाप्त करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत का भी विधान है माताएं निर्जला व्रत अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए अवश्य ही करती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। गणेश जी को  दूर्वा तथा लड्डू अत्यंत प्रिय है अत: गणेश जी पूजा में दूर्वा और लड्डू जरूर चढ़ाना चाहिए।

 

पूजन सामग्री
 (वृहद् पूजन के लिए )

 

शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर।

 

विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -और आवाहन करें –

 

गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |

उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव|

यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

 

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें –

  

अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |

अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||

आसन-रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |

आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

 

पाद्य (पैर धुलना)

 

उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |

पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||

 

अर्घ्य(हाथ धुलना )-

    

अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै: |

करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||

 

आचमन

    

सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |

आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||

 

स्नान

    

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|

स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||

 

दूध् से स्नान

 

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |

पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||

 

दही से स्नान

   

पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |

दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||

 

घी से स्नान

  

नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

 

शहद से स्नान

  

तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

 

शर्करा (चीनी) से स्नान

    

इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |

मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

 

पंचामृत से स्नान

 

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |

पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

 

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान

   

मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |

तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

 

वस्त्र

 

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे|

मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||

 

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )

 

सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |

वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||

 

यज्ञोपवीत

   

नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |

उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

 

मधुपर्क

   

कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |

मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||

 

गन्ध

 

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |

विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

 

रक्त(लाल )चन्दन

   

रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |

मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||

 

रोली

   

कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |

कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||

 

सिन्दूर

  

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||

शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||

 

अक्षत

 

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |

माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||

 

पुष्प

   

पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |

पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||

 

पुष्प माला

  

माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |

मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||

 

बेल का पत्र

    

त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |

तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||

 

 दूर्वा

 

त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |

सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||

 

 दूर्वाकर

    

दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |

आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||

 

शमीपत्र

  

शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |

धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||

 

अबीर गुलाल

  

अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |

अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||

आभूषण

   

अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |

गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||

 

सुगंध तेल

   

चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |

वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||

 

धूप

 

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |

आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||

 

दीप

   

आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||

 

नैवेद्य

   

शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |

उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||

 

मध्येपानीय

  

अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |

 त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

 

ऋतुफल

  

नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |

कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं

प्रतिगृह्यतां ||

 

आचमन

  

गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |

आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||

 

अखंड ऋतुफल

   

इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |

तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||

 

ताम्बूल पूंगीफलं

 

पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |

एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||

 

दक्षिणा(दान)

   

हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |

अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||

 

आरती

 

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |

त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||

 

पुष्पांजलि

 

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |

पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||

 

प्रार्थना

   

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:

भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||

 

अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम कहकर प्रणाम कर आरती के लिए खड़े हो जाये।

 

श्री गणेश जी की आरती

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जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |

माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||

एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |

मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय …

 

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |

बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय …

 

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |

लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय …

 

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |

कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय …

 

अर्घ्य अर्पित करने की विधि

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तिथि की अधिष्ठात्री देवी तथा रोहिणीपति चंद्रमा को शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश-पूजन के पश्चात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। गणेश पुराण के अनुसार, चंद्रोदय काल में गणेश के लिए तीन, तिथि के लिए तीन और चंद्रमा के लिए सात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इस व्रत में तृतीया तिथि से युक्त चतुर्थी तिथि ग्राह्य है। तृतीया के स्वामी गौरी माता और चतुर्थी के स्वामी श्रीगणेश जी हैं। व्रत तोड़ने के बाद महिलाओं का शकरकंदी खाने की परंपरा भी है।

 

पानी के छींटें से बचें

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सकट चौथ व्रत के दिन जब आप चांद के अर्घ्य दे रही हों उस दौरान महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चांद को अर्पित किए जा रहे जल के छींटें आपके पैर या शरीर पर बिलकुल न पड़ें।

 

पौराणिक कथा

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चतुर्थी व्रत से सबंधित कथा भगवान श्री गणेश जी के जन्म से संबंधित है तो कुछ कथाएं भगगवान के भक्त पर की जाने वाली असीम कृपा को दर्शाती है. इसी में एक कथा इस प्रकार है. शिवपुराण में बताया गया है कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणेशजी का जन्म हुआ था. इस कारण चतुर्थी तिथि को जन्म तिथि के रुप में मनाया जाता है. इस दिन गणेशजी के लिए विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. मान्यता के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जब जाने वाली होती हैं तो वह अपनी मैल से एक बच्चे का निर्माण करती हैं और उस बालक को द्वारा पर पहरा देने को कहती हैं.

उस समय भगवान शिव जब अंदर जाने लगते हैं तो द्वार पर खड़े बालक, शिवजी को पार्वती से मिलने से रोक देते है. बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे होते हैं. जब शिवजी को बालक ने रोका तो शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं. जब पार्वती को ये बात मालूम हुई तो वह बहुत क्रोधित होती हैं. वह शिवजी से बालक को पुन: जीवित करने के लिए कहती हैं. तब भगवान शिव ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उसे जीवित कर देते हैं. उस समय बालक को गणेश नाम प्राप्त होता है. वह बालक माता पार्वती और भगवन शिव का पुत्र कहलाते हैं।

 

कथा 2

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एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। उसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय वहां माता और भगवान शिव के अलावा कोई और मौजूद नहीं था, लेकिन खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक व्यक्ति की जरुरत थी। इस विचार के बाद दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी और उससे कहा कि खेल में कौन जीता इसका फैसला तुम करना। खेल के शुरु होते ही माता पार्वती विजय हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उन्हीं की जीत हुई। लेकिन एक बार गलती से बालक ने भगवान शिव का विजयी के रुप में नाम ले लिया। जिसके कारण माता पार्वती क्रोधित हो गई और उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक उनसे क्षमा मांगता है और कहता है कि उससे भूल हो गई उसे माफ कर दें। माता कहती हैं कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हो। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर चतुर्थी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना।

 

चतुर्थी के दिन कन्याएं वहां आती हैं और बालक उनसे व्रत की विधि पूछता और उसके बाद विधिवत व्रत करने से वो भगवान गणेश को प्रसन्न कर लेता है। भगवान गणेश उसे दर्शन देकर उससे इच्छा पूछते हैं तो वो कहता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वो बालक भगवान शिव के पास पहुंच जाता है। लेकिन वहां सिर्फ भगवान शिव होते हैं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से रुठ कर कैलाश छोड़कर चली जाती हैं। भगवान शिव उससे पूछते हैं कि वो यहां कैसे आया तो बालक बताता है कि भगवान गणेश के पूजन से उसे ये वरदान प्राप्त हुआ है। इसके बाद भगवान शिव भी माता पार्वती को मनाने के लिए ये व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन अचानक बदल जाता है और वो वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और संकट दूर होते हैं।

 

तिल चतुर्थी व्रत दान

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इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का तिल चतुर्थी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को तिल तथा गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लड्डुओं के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है.

इस दिन दान का भी विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में दिया गया है जिसके अनुसार जो व्यक्ति व्रत के साथ-साथ दान भी करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला व्रत गणेश तिल चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस दिन संध्या समय में गणेश चतुर्थी की व्रत कथा को सुना जाता है कथा अनुसार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चन्द्रमा को अर्ध्य देगा उसके तीनों ताप – दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होगें. व्यक्ति को सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलेगी व सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।

 

 

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