Sshree Astro Vastu

माँ जानकी वैशाख शुक्ल नवमी/प्रकटोत्सव

वैशाख माह शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माँ सीता का प्राकट्य हुआ था. इस पर्व को जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है. माता सीता अपने त्याग एवं समर्पण के लिए पूजनीय हैं. सीता नवमी के दिन सुहागिन महिलाएँ अपने घर की सुख शान्ति और अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं।

 

देवी सीता को लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है जो मिथिला में प्राकट्य हुआ था. उन्हें राजा जनक की पुत्री होने से उनको जानकी, भूमि से प्राकट्य होने के कारण भूमिजा तथा मिथिला में होने से मैथिली नामों से भी जाना जाता है।

पृथ्वी से देवी सीता का प्राकट्य होने के कारण जानकी नवमी के दिन देवी सीता के साथ देवी पृथ्वी की भी पूजा होती है।

 

वाल्मिकी रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बहुत दु:खी हो गए थे, तब इस समस्या का समाधान पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर सोने का हल चलाने का सुझाव दिया. ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक ने सोने के हल से धरती जोतने लगे।

 

तभी उन्हें धरती में से सोने की सन्दूक में एक सुन्दर कन्या मिली. राजा जनक की कोई सन्तान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई. राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।

माता सीता का विवाह भगवान श्रीराम के साथ हुआ. लेकिन विवाह के पश्चात वे राजसुख से वंचित रहीं. विवाह के तुरन्त पश्चात् १४ वर्षों का वनवास और फिर वनवास में उनका रावण के द्वारा अपहरण हुआ. लंका विजय के पश्चात् जब वे अपने प्रभु श्रीराम के साथ अयोध्या वापस लौटीं तो उनके चरित्र पर सवाल उठाए गए।

 

यहाँ तक कि उन्हें अग्नि परीक्षा भी देनी पड़ी, परन्तु फिर भी उनके भाग्य में वो सुख नहीं मिल पाया, जिसकी वे हकदार थीं. उन्होंने अयोध्या से बाहर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहकर लव-कुश को जन्म दिया और उनका पालन-पोषण किया।

 

अन्त में माँ जानकी धरती माँ के भीतर समा गईं. सनातन संस्कृति में माता सीता अपने त्याग एवं समर्पण के लिए सदा के लिए अमर हो गईं।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×