रामायण के सुन्दर कांड और तुलसीदास की हनुमान चालीसा में बजरंगबली के चरित्र पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
हनुमान जी के बारे में तुलसीदास जी लिखते हैं –
इसके बाद उन्होंने स्वयं को लघु रूप में कर लिया जिससे सुरसा प्रसन्न और संतुष्ट हो गईं अर्थात केवल सामर्थ्य से ही जीत नहीं मिलती है “विनम्रता” से समस्त कार्य सुगमतापूर्वक पूर्ण किए जा सकते हैं।
यहां गुरु हनुमान हमें सिखाते हैं कि “अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।”
तुलसीदास जी ने हनुमान जी की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण इस पर किया है –
तुलसीदास जी हनुमान चालीसा में लिखते हैं –
सीता के सामने उन्होंने स्वयं को लघु रूप में रखा क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे परन्तु संहारक के रूप में वे राक्षसों के लिए काल बन गए।
एक ही स्थान पर अपनी शक्ति का दो अलग-अलग तरीके से प्रयोग करना हनुमान जी से सीखा जा सकता है।
रामभक्त हनुमान अपनी भावनाओं का संतुलन करना जानते थे इसलिए उन्होंने सीता माता को उचित समय (एक महीने के भीतर) पर आकर ससम्मान वापिस ले जाने के लिए आश्वस्त किया।
आत्ममुग्धता से कोसों दूर सीता जी का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुंचे श्री हनुमान की प्रत्येक ओर प्रशंसा हुई लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु राम को नहीं सुनाया। यह हनुमान जी का बड़प्पन था जिसमें वह अपने बल का सारा श्रेय प्रभु श्री राम के आशीर्वाद को दे रहे थे। प्रभु श्रीराम के लंका यात्रा वृत्तांत पूछने पर हनुमान जी को जो कहा उससे भगवान राम भी हनुमान जी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए।
इसी के बलबूते हनुमान जी ने अष्ट सिद्धियों और सभी नौ निधियों की प्राप्ति की।