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वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रहों की दशा देखकर ऐसे करें प्रॉपर्टी में निवेश

जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद तथा भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव तथा उसका स्वामी ग्रह…

 

जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद तथा भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव तथा उसका स्वामी ग्रह शुुभ राशि में, शुभ ग्रह या अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो, किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट न हो तो जमीन संबंधी व्यापार से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भूमि का कारक ग्रह मंगल है। अत: कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा मंगल की शुभ स्थिति से भूमि संबंधी व्यापार से फायदा होगा।

 

प्रॉपर्टी में मंदी को देखकर लोग निवेश कर रहे हैं। लेकिन क्या यह समय उनके अनुकूल है। अगर ग्रहों की चाल अपनी राशि के अनुसार सही नहीं है तो जरा सोचने की जरुरत है। ऐसे में ग्रह दशा किसी पंडित या जानकार से दिखाकर ही प्रॉपर्टी में निवेश करें। भूमि के व्यापार में जमीन का क्रय-विक्रय करना, प्रॉपर्टी में निवेश कर लाभ में बेचना, बिचौलिया की तरह काम करना तथा कॉलोनाइजर के रूप में स्कीम काटकर बेचना इत्यादि शामिल होता है।

भूमि से संबंधित ग्रहों का शुभ संयोग कुंडली के धन (द्वितीय) तथा आय (एकादश) भाव से भी होना आवश्यक है।

 

चतुर्थ भाव का स्वामी एवं मंगल उच्च, स्वग्रही अथवा मूल त्रिकोण का होकर शुभ युति में हो तथा धनेश, लाभेश से संबंध बनाए तो प्रॉपर्टी के कारोबार से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव का स्वामी धनेश, लाभेश, लग्न अथवा दशम भाव के स्वामी से राशि परिवर्तन करे तो, उस व्यक्ति को भूमि के क्रय-विक्रय से धन लाभ होता है।

 

प्रॉपर्टी में मंदी को देखकर लोग निवेश कर रहे हैं। लेकिन क्या यह समय उनके अनुकूल है। अगर ग्रहों की चाल अपनी राशि के अनुसार सही नहीं है तो जरा सोचने की जरुरत है।

 

 

 वैदिक ज्योतिष के अनुसार कोई व्यक्ति अपना घर बना पाएगा या नहीं, इसके लिए निम्न ज्योतिषीय योगों का ध्यान रखा जाता है।

 

 

किसी व्यक्ति की संपत्ति का विश्लेषण करने के लिए कुंडली के चतुर्थ भाव का अध्ययन किया जाता है। चतुर्थ भाव अचल और चल संपत्तियों का मुख्य भाव है। इसी भाव से संपत्ति की खरीद और बिक्री दोनों को देखा जा सकता है। पाराशर होरा शास्त्र को वैदिक ज्योतिष की भागवत गीता माना जाता है इस शास्त्र में ऐसे कई योग है जो घर खरीदने के विषय में बताते है। चौथा भाव संपत्ति, मन की शांति, माँ, गृह जीवन, स्व-संप्रेषण, पैतृक गुण, सामान्य खुशी और कुछ अन्य विषयों का भाव है। इसके साथ ही यह मुख्य रुप से संपत्ति का भाव भी है।

 

  • यदि चतुर्थ भाव का स्वामी लग्न स्वामी के साथ हो और आय भाव हो तो व्यक्ति के पास कई घर हो सकते हैं।

 

  • यदि पराक्रम भाव में बुध स्थित हो और चतुर्थ भाव का स्वामी भी सुस्थिर हो तो व्यक्ति सुंदर घर का निर्माण कराता है।

 

  • यदि चतुर्थ भाव का स्वामी स्व-नवांश में हो या उच्च राशि का हो तो जातक को भूमि, वाहन, गृह आदि का स्वामित्व प्राप्त होता है।

 

  • जो ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित हों उन ग्रहों के पास भी संपत्ति देने की शक्ति होती है।

 

  • यदि चतुर्थ भाव का स्वामी मित्रराशि में स्थित हो, नवांश या लग्न दोनों कुंड्लियों में हो तो घर के योगों में यह शुभ योग है।

 

  • त्रिकोण भाव में नवमेश का होना और चतुर्थेश का अपने मित्र की राशि में होना एक अच्छा घर दे सकता है।

 

  • यदि चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल या शनि या शुक्र से युक्त हो तो भी जातक को अपना घर प्राप्त हो सकता है।

 

  • घर खरीदने के लिए मंगल, शुक्र, बृहस्पति की दशा अवधि अनुकूल होती है।

 

गृह, भूमि, संपत्ति के लिए निम्न ग्रहों को देखा जाता हैं-

 

  • मंगल – अचल संपत्ति का कारक ग्रह मंगल है। इसका शुभ प्रभाव चतुर्थ भाव चतुर्थेश पर होना एक अच्छे घर का संकेत देता है।
  • शनि – शनि ग्रह है जो भूमि, पुराने घर यानी पुनर्खरीद वाला घर देता है। इसके अलावा शनि गोचर में जब चतुर्थ भाव को सक्रिय करता है तब घर के निर्माण कार्य पूर्ण होते है।

 

  • शुक्र – शुक्र का बली अवस्था में चतुर्थ / चतुर्थेश को प्रभावित करना एक भव्य घर होने का सूचक है।

 

  • 1, 2, 4, 11 घर ऐसे भाव हैं जो जमीन या संपत्ति होने का संकेत देते हैं।

 

  • लग्न भाव, वह भाव है जो व्यक्ति के स्वयं की योग्यता और शारीरिक क्षमता दर्शाता है। शारीरिक रुप से स्वस्थ होने के बाद ही कोई व्यक्ति अपना घर या अपने जीवन की योजनाओं को पूरा कर सकता है।

 

  • दूसरा भाव – यह व्यक्ति के बैंक बैलेंस का भाव है। अगर किसी के पास धन नहीं होगा तो आप घर नहीं खरीद पाएंगे।

 

  • चौथा घर – चौथा भाव संपत्ति, खुशी और वाहनों का भाव होता है। इस प्रकार इस भाव की स्थिति को देश या विदेश, किस स्थान पर संपत्ति होगी यह जानने के लिए देखा जाता है।

 

  • ग्यारहवां घर – यह लाभ और इच्छाओं की पूर्ति का मुख्य भाव है। यह वह भाव है जो यह तय करता है कि आपको खुद के घर की खुशी होगी या नहीं। अपना घर कब प्राप्त होगा इसके लिए महादशा का विचार किया जाता है। किसी व्यक्ति के पास मूलसंपत्ति होगी या नहीं यह महादशा तय करती है।

 

  • चतुर्थेश, द्वितीयेश, एकादशेश और नवमेश की दशाएं व्यक्ति को घर देने में सक्षम होती है।

 

  • अपना घर किस आयु में मिलेगा इसके लिए निम्न रुप से ग्रहों का अध्ययन किया जाता हैं। जब कोई ग्रह बली, उच्चस्थ, मूलत्रिकोण और मजबूत स्थिति में होकर चतुर्थेश, चतुर्थ भाव, आयेश, नवमेश और द्वितीयेश को प्रभावित करें तो ऐसा ग्रह घर देने की योग्यता रखता है। जैसे-

 

  • कम आयु में घर प्रदान करने का कार्य चंद्र ग्रह करता है।

 

  • मध्यम आयु में घर प्रदान करने के लिए सूर्य और मंगल का अध्ययन किया जाता है।

 

  • सूर्य उत्तरायन में और चंद्र जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में घर देता है।

 

  • बुध 32 से 36 की आयु में घर दे सकता है।

 

  • बृहस्पति, शुक्र और राहु कम उम्र में संपत्ति दे सकते हैं।

 

  • शनि संपत्ति 44 की आयु के बाद और केतु 52 साल बाद भी दे सकता है।

 

अन्य योग

 

  • घर हेतु भूमि क्रय करने के लिए, कुंडली का चौथा भाव मजबूत होना चाहिए।

 

  • जमीन या संपत्ति प्राप्त करने के लिए मंगल और चौथा भाव महत्वपूर्ण कारक माना गया है। इसलिए, किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल की स्थिति मजबूत और शुभ होनी चाहिए।

 

  • जब मंगल कुंडली में चौथे भाव के साथ संबंध बनाता है तो व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी जमीन या संपत्ति खरीदने की स्थिति में आता है।
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