ध्यान दे हम एक दिन योग करके योगी नही हो सकते। प्रत्येक दिन यमनियमों के साथ योग का अभ्यास करके ही हम लाभान्वित हो सकते है।
“योग” का अर्थ बहुत व्यापक है| तंत्रागमों, योग शास्त्रों, भगवद्गीता, विष्णु पुराण, व बौद्ध-दर्शन आदि में “योग” शब्द को परिभाषित किया गया हैं।
गीता के अनुसार …..
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||
अथार्त हे धनञ्जय तू आसक्तिका त्याग करके सिद्धिअसिद्धिमें सम होकर योगमें स्थित हुआ कर्मोंको कर क्योंकि समत्व ही योग कहा जाता है।
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते| तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्||२:५०||
अथार्त बुद्धि ( समता ) से युक्त मनुष्य यहाँ जीवित अवस्थामें ही पुण्य और पाप दोनों का त्याग कर देता है। अतः तू योग ( समता ) में लग जा क्योंकि योग ही कर्मों में कुशलता है।
विष्णुपुराण के अनुसार ….
योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने|
अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है|
सांख्य दर्शन के अनुसार ….
पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते|
अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है|
तंत्र शास्त्रों के अनुसार- कुण्डलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन ही योग है|
आपका जीवन शुभ और मंगलमय हो