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चंद्रग्रहण सम्बंधित महत्त्वपूर्ण बातें

* ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए ।*

 

* भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना होता है । यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना फल दायी होता है ।*

 

* ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, मंत्र जप न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है ।*

  

* ग्रहण के समय उपयोग किया हुआ कपड़े, आसन, माला, गोमुखी ग्रहण पूरा होने के बाद गंगा जल में धो लेना चाहिए ।*

ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है । 

 

🌒 ग्रहणकाल में गर्भवती महिलायें क्या करें, क्या ना करें ?

 

🔹गर्भिणी के लिए ग्रहण के कुछ नियम विशेष पालनीय होते हैं । इन्हें कपोलकल्पित बातें अथवा अंधविश्वास नहीं मानना चाहिए, इनके पीछे शास्त्रोक्त कारण हैं ।

 

🔹ग्रहण के प्रभाव से वातावरण, पशु-पक्षियों के आचरण आदि में परिवर्तन दिखाई देते हैं इससे स्पष्ट है कि मानवीय शरीर तथा मन के क्रिया-कलापों में भी परिवर्तन होते हैं ।

 

🔹ग्रहणकाल में कुछ कार्य करने से आशातीत लाभ होते हैं और कुछ से अत्याधिक हानि । सभी उन्हें न भी समझ सकें परंतु उनका पालन करना अति आवश्यक है इसलिए हमारे हितैषी ऋषि-मुनियों के द्वारा इन कार्यों का नियम के रूप में समाज में प्रचलन किया गया है । ध्यान रहे, इन नियमों से गर्भवती को भलीभाँति अवगत करायें परंतु भयभीत नहीं करें । भय का गर्भ पर विपरीत असर पड़ता है ।

👉 ग्रहण के दौरान गर्भिणी को लोहे से बनी वस्तुओं से दूर रहना चाहिए । वह अगर चश्मा लगाती हो और चश्मा लोहे का हो तो उसे ग्रहणकाल के दौरान निकाल देना चाहिए ।

 

👉 बालों पर लगी पिन या शरीर पर धारण किये हुए नुकीली गहने भी उतार दें । चाकू, कैंची, पेन, पेंसिल, सुई जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग कदापि न करें । किसी भी लोहे की वस्तु, बर्तन, दरवाजे की कुंडी, ताला आदि को स्पर्श न करें ।

 

👉 ग्रहण काल में भोजन बनाना, साफ-सफाई आदि घरेलू काम, पढ़ाई-लिखाई, कम्प्यूटर वर्क, नौकरी या बिजनेस आदि से संबंधित कोई भी काम नहीं करने चाहिए क्योंकि इस समय काम करने से शारीरिक और बौद्धिक क्षमता क्षीण होती है ।

 

👉 ग्रहणकाल में घर से बाहर निकलना, यात्रा करना, चन्द्र अथवा सूर्य के दर्शन करना निषिद्ध है ।

 

👉 ग्रहणकाल के दौरान पानी पीना, भोजन करना, लघुशंका अथवा शौच जाना, सोना या स्नान करना, वज्रासन में बैठना भी निषिद्ध है । ग्रहणकाल से 4 घंटे पूर्व इस प्रकार अन्न-पान करें कि ग्रहण के दौरान शौचादि के लिए जाना न पड़े ।

 

👉 ग्रहण के दौरान सेल्युलर फोन (मोबाइल) से निकले रेडिएशन्स से शिशु में स्थायी विकृति या मानसिक तनाव उत्पन्न हो सकता है अत: इस समय मातायें फोन से दूर रहें ।

 

👉 सूर्यग्रहण में 4 प्रहर (12 घंटे) पहले से सूतक माना जाता है । जो गर्भवती माताएँ हैं वे ग्रहण से 1 से 1.5 प्रहर (4 से 4.30 घंटे) पहले तक खा-पी लें तो चल सकता है ।

 

👉 गर्भवती ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला व चोटी में कुश धारण कर लें ।

 

👉 ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर पेट पर गोलाई से लेप करें । देशी गाय का गोबर उपलब्ध न हो तो गेरु मिट्टी अथवा शुद्ध मिट्टी का ही लेप कर लें, इससे ग्रहण के दुष्प्रभाव से गर्भ की रक्षा होती है ।

 

👉 कश्यप ऋषि कहते हैं – चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण का ज्ञान होने पर गर्भिणी को गर्भवेश्म अर्थात घर के भीतरी भाग (अंत: पुर) में जाकर शान्ति होम आदि कार्यों में लगकर चन्द्र तथा सूर्य की ग्रह द्वारा मुक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।

 

👉 गर्भिणी सम्पूर्ण ग्रहण काल में कमरे में बैठकर यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ भगवन्नाम जप रूपी यज्ञ करें । ॐ कार का दीर्घ उच्चारण करें । अगर लम्बे समय तक नहीं बैठ पाये तो लेटकर भी जप कर सकती है । जप करते समय गंगाजल पास में रखें । ग्रहण पूर्ण होने पर माला को गंगाजल से पवित्र करे व स्वयं वस्त्रों सहित सिर से स्नान कर लें ।

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