स्कन्दपुराण के अनुसार
सप्तसागरपर्यंतं भूदानाद्यत्फलं भवेत्।।
शालिग्रामशिलादानात्तत्फलं समवाप्नुयात्।।
शालिग्रामशिलादानात्कार्तिके ब्राह्मणी यथा।।
सात समुद्रों तक की पृथ्वी का दान करने से जो फल प्राप्त होता है, शालिग्राम शिला के दान से मनुष्य उसी फल को पा लेता है। अतः कार्तिक मास में स्नान तथा श्रृद्धापूर्वक शालिग्राम शिला का दान अवश्य करना चाहिए।
शालिग्राम नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को कहते हैं। ये भगवान विष्णु का ही एक स्वरुप कहलाते है। तुलसी के श्राप स्वरुप भगवान विष्णु को शालिग्राम बनना पड़ा था। हिंदू धर्म में देव प्रबोधनी एकादशी या देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह की परंपरा है।
1 स्वयंभू होने के कारण शालिग्राम की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर या मंदिर में सीधे ही पूज सकते हैं।
2 शालिग्राम अलग-अलग रूपों में पाए जाते हैं, कुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है ये पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं।
3 भगवान शालिग्राम का पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।
4 श्री शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप ,दुःख और रोग दूर हो जाते हैं।
5 तुलसी शालिग्राम विवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है।
6 पूजन में श्री शालिग्राम जी को स्नान कराकर चंदन लगाकर तुलसी दल अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना चाहिए। यह उपाय मन, धन व तन की सारी कमजोरियों व दोषों को दूर करने वाला माना गया है।
7 पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर सारे तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। इनके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है।
8 भगवान शिव ने भी स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय में उल्लेख है कि जहां भगवान शालिग्राम की पूजा होती है वहां भगवान विष्णु के साथ भगवती लक्ष्मी भी निवास करती है।
9 पुराणों में यह भी लिखा है कि शालिग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल पा लेता है।
10 जो निरंतर शालिग्राम शिला का जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य व पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है।
11 मृत्युकाल में इनके चरणामृत का जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है।
12 जिस घर में शालिग्राम का रोज पूजन होता है उसमें वास्तु दोष और बाधाएं अपने आप समाप्त हो जाती हैं।
शालीग्राम की कथा विष्णु को श्राप क्यों मिला ? देवउठनी एकादशी पर शालिग्राम पूजन का महत्व और लाभ👇
भगवान विष्णु को कई स्थानों में काले पत्थर के रूप पूजा जाता है। यही नहीं सत्य नारायण की पूजा के समय पंडित जी एक काला पत्थर साथ में रखते हैं जो विष्णु जी की मूर्ति के पास रखा जाता है और फिर पूजा शुरु की जाती है। इसे पत्थर को शालिग्राम के नाम से जाना जाता है। यह श्राप इतना शक्तिशाली था जिसने भगवान विष्णु को पत्थर में बदल दिया। यह उन्हें स्वीकार करना पड़ा क्योंकि यह उनकी सबसे प्रिय भक्त वृंदा ने उन्हें दिया था। यह शालिग्राम पत्थर केवल गंडक नदी के तट के पास पाया जाता है।
यह आमतौर पर काले या लाल रंग में मिलता है और बाक्स में रखा जाता है। जो कोई भी यह शालिग्राम पत्थर अपने घर में रखता है उसे पूजा और साफ़ सफाई का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। यह कहानी है अहंकार, भक्ति, प्रेम और विश्वासघात की, जिसमें भगवान ने भक्त के साथ धोखा किया और जिसकी वजह से उन्हें श्राप मिला। आइये जानते हैं इसकी पूरी कहानी। जालंधर: शिव का एक भाग एक समय जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर था। जो शिव की तीसरी आँख से उत्पन्न हुआ था। यही कारण था कि वह अत्यंत शक्तिशाली योद्धा था। इसका विवाह वृंदा नामक कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। इसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया था। जालंधर और शिव का युद्ध इसने एक युद्ध में भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। अपने अजेय होने पर इसे अभिमान हो गया और स्वर्ग के देवताओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे।
क्योंकि जालंधर को तभी हराया जा सकता जब पत्नी वृंदा पवित्रता को भांग कर दिया जाए। वृंदा: विष्णु की सबसे बड़ी भक्त एक असुर की बेटी और पत्नी होने के बावजूद वह भगवान विष्णु की भक्त थी। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और उन पर उसे पूरा विश्वास करती थी। विष्णु का विश्वासघात सभी देवताओं ने देखा कि शिव भी उसे हरा नहीं पाये तो वे विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलांधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गयी और वह युद्ध में मारा गया।
वृंदा का अभिशाप जब वृंदा ने भगवान विष्णु को छुआ तब उसे पता चला कि वह जालंधर नहीं है। और उसने पूछा कि वह कौन हैं। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे इसलिए वृंदा के शाप को जिवित रखने के लिए उन्होनें अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।
तुलसी भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं। शालीग्राम तुलसी का विवाह वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला।
वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।