90 के दशक में गांवों में या सामान्यता हर घरों में हैंड सैनीटाइजर नहीं हुआ करते थे और साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था तो उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी वह थी चूल्हे की राख जो बनती थी लकड़ी और गोबर के कण्डों के जलाये जाने से जिसका प्रयोग बर्तन साफ करने में भी किया जाता था।
चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि वह उस जमाने का हैंड सैनीटाइजर थी और बर्तन साफ करने का सुरक्षति तरीका ?
चूल्हे की राख का संगठन है ही कुछ ऐसा। आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें।
राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं जो पौधों में उपलब्ध होते हैं। ये सभी मेजर और माइनर एलिमेंट्स पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से।
सबसे अधिक मात्रा में होता है कैल्शियम। इसके अलावा होता है पोटेशियम, अल्युमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन, फॉस्फोरस, मैगनीज, सोडियम और नाइट्रोजन कुछ मात्रा में जिंक, बोरोन, कॉपर, लैड, क्रोमियम, निकल, मोलीब्डीनम, आर्सेनिक, कैडमियम, मरकरी और सेलेनियम भी होता है।
राख में मौजूद कैल्शियम और पोटेशियम के कारण इसकी पीएच 9 से 13.5 तक होती है इसी पीएच के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर और उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है या बर्तन साफ करता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है। जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का खात्मा।
आइये अब मनन करें सनातन के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है।
सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है।
मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है। मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है।
जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटेन्ट का काम करती है। इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में बढोत्तरी होती है।
वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फेक्शन पर्पज के लिए लो कोस्ट एकोफ़्रेंडली विकल्प है जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमेंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है।
सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है।