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अर्जुन ने कहा, "हे प्रभु " सबकुछ अगर मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे, ???

द्रौपदी के स्वयंवर में जाते वक्त “श्री कृष्ण” ने अर्जुन  को समझाते हुए कहते हैं कि

हे पार्थ तराजू पर पैर संभलकर रखना,

संतुलन बराबर रखना, लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो उसका खास खयाल रखना,

तो अर्जुन ने कहा, “हे प्रभु ” सबकुछ अगर मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे, ???

 

वासुदेव हंसते हुए बोले, हे पार्थ जो आप से नहीं होगा वह में करुंगा,

पार्थ ने कहा प्रभु ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकता, ???

वासुदेव फिर हंसे और बोले, जिस अस्थिर,  विचलित, हिलते हुए  पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे ,  उस विचलित “पानी” को स्थिर “मैं” रखुंगा !!

 

कहने का तात्पर्य यह है कि आप चाहे कितने ही निपुण क्यूँ ना हो , कितने ही बुद्धिवान क्यूँ ना हो , कितने ही महान एवं विवेकपूर्ण क्यूँ ना हो , लेकिन आप स्वंय  हरेक परिस्थिति के उपर पूर्ण नियंत्रण नहीँ रख सकते .. आप सिर्फ अपना प्रयास कर सकते हो , लेकिन उसकी भी एक सीमा है

और जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभलता है उसी का नाम “विधाता” है … और उसी विधाता ने आपकी सारी जिम्मेदारियां ले रखी हैं , लेकिन आप हो कि सारी जिम्मेवारी खुद ही लिए फिरते हो ..

सारी दुनिया का बोझ आप अपने सर पे लिए फिरते हो तो इसमे किसी का क्या दोष ??

 हमे सिर्फ अपना कार्य करते रहना चाहिए, भगवान क्या कर सकते हैं या क्या करेंगे, ये गहरा विषय है !

उस विधाता ने इतनी बड़ी दुनियाँ बनाई , विशाल समुद्र बनाया , उसमे रहने वाले विशालकाय जीवों के जीवन की डोर बनाई , उनके दाना पानी की व्यवस्था की , हजारों लाखों  टन पानी को समुद्र से उठाकर हजारों मील दूर आवश्कता के स्थान पर बिना किसी साधन के बारिश के रूप में पहुँचाना , एक छोटे से बीज में वृक्ष का विस्तार भर देना , औऱ उसमे किस मौसम में पत्ते गिरेंगे किस मौसम में नये फल फूल आयेंगे ये सब कुछ उस नन्हे से बीज में प्रोग्रामिंग भर देना , उस विधाता ने चींटी से लेकर विशालकाय हाथी जैसे जीवों का दाना पानी उसके व्यवस्था के हिसाब से निर्माण किया है

उसमे विश्वास रखकर कर्म कर !जो तुझे नहीँ दिख रहा है वो उसे दिख रहा है

जो कुछ तुझे मिल रहा है वो तेरे “भूतकाल” का फल है

औऱ भविष्य तेरे वर्तमान के कर्म के  “बीज” पर टिका है !!

इसलिए परेशान हैरान मत हो , जो कुछ मिल रहा है वो तेरे द्वारा ही किया हुआ कर्म का फल है , औऱ उस विधि के विधान में सब नियत है !

यहाँ राजा औऱ रंक सब तेरे कर्मों का फल है , उसे किसी को राजा औऱ किसी को रंक बनाके कुछ नहीँ मिलेगा !!

वो सब तेरे द्वारा बोए गये बीजों का ही प्रत्यक्ष फल है !!

वो सदा परम है !!

वो तेरे साथ अन्याय नहीँ होने देगा विश्वास रख !!

वो शुभ कर्मों में तेरे साथ है , बल्कि वो चाहता है कि तू शुभ कर्म कर तो मैं तेरी हर दुविधा हर लूँ !!

समस्याएँ ना आये ऐसा तो नहीँ होगा लेकिन वो अदिर्ष्या रूप में शूली को काँटे के रूप में औऱ काँटे को रूई के रूप में बदल रहा है , वो नहीँ चाहता कि तुझे दुख दे , आखिर उसको क्या मिलेगा इससे ??

मन को थोड़ा स्थिर करके उसमे श्रध्दा रख …इधर उधर मत भटक .. इंसान औऱ उस विधाता में फर्क पहचान औऱ उसमे हेत लगा !!

अत उसमे पूर्ण विश्वास रख औऱ आगे क़दम बढा !

वो वासुदेव की तरह पानी को स्थिर करेगा !

लेकिन पहला क़दम तो तुझे ही उठाना पड़ेगा

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