यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ति का कोई उपाय है।
श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में , महाराज राजा परीक्षित जी ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न किया
बोले भगवन – आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं।
प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं ,जैसे चींटी मर गयी,हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं । और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं ।
तो उस पाप से मुक्ती का क्या उपाय है भगवन ।
आचार्य शुकदेव जी ने कहा -राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए ।
महाराज परीक्षित जी ने कहा, भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोंचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं ।
यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं ।
1 पहली यज्ञ है -जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए
2 दूसरी यज्ञ है राजन -चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए।
3 तीसरी यज्ञ है राजन्-पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।
4 चौथी यज्ञ है राजन् -आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।
5 पांचवीं यज्ञ है राजन्- भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी गुड़ मिलाकर
अग्नि को भोग लगाओ।
राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे ।
राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है ।
हमे उसका दोष नहीं लगता ।उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।
राजा ने पुनः पूछ लिया ,भगवन यदि
गृहस्त में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।
तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं
राजन्
नरक से मुक्ती पाने के लिए हम प्रायश्चित करें। कोई ब्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है।कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है।कोई ब्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है।लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन्!
राजन् केवल भजन से ही
जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य है ।
इस लिए हे राजन् !—– सुनिए
राजन् किसी को पता नही की जो स्वास अंदर जा रही है वो लौट कर वापस आएगी की नही ।
इस लिए सदैव हरी नाम जपते रहो ।
मैं तो जी महराज आप सबसे यह निवेदन करना चाहूँगा की, रामनाम को लेने के लिए कोई भी नियम की जरूरत नही होती है।
कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते भगवन् नाम लेते रहो।