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हिन्दू राष्ट्र भारत

हमारे गाँव में एक बरगद का पेड़ हैं। शुद्ध बरगद का पेड़, शुद्ध इसीलिए बोल रहा हूँ कि क्योंकि कुछ साल पहले वो पूर्णतः बरगद नहीं था साथ में महुआ का पेड़ संलग्न था लेकिन अब महुआ का पेड़ बरगद में पूरी तरह से विलीन हो चुका हैं। जब मैं दस साल का था तब बरगद और महुआ के पेड़ आधे-आधे हुआ करते थे । एक दिन उसी पेड़ की छाँव में बैठे-बैठे पापा से आश्चर्यवश पूंछा कि  ये पेड़ थोडा अजीब नहीं हैं, एकदम आधा-आधा , एक तरफ बरगद का तो दूसरी तरफ महुआ का ? या तो इसे पूरा बरगद का होना चाहिए था या फिर पूरा महुआ का। आधा-आधा कैसे,क्या कोई आधे-आधे वाले बीज भी होते हैं ??

 

तो  पापा ने बताया – नहीं बेटा,ये आधे-वाधे वाले कोई बीज नहीं होते । बीज एक ही का होता हैं या तो बरगद का या फिर महुआ का । रही बात इस पेड़ के आधा-आधा होने की तो 25-30 साल पहले ये सिर्फ महुआ का पेड़ हुआ करता था। ये ऊपर तना देख रहे हो ना जहाँ से बरगद अलग और महुआ अलग दिखाई दे रहा हैं वहाँ पे किसी चिड़ियाँ के बीट से बरगद का पौधा ऊगा और वो पौधा इसी महुआ के भरोसे पलता-बढ़ता गया ।

फिर इसके लट निकलने शुरू हो गए और वो लट यहाँ ज़मीन में धँसने लगे और महुए के तने से लिपटने लगे और इस महुए के तने को धीरे-धीरे ढँकने  लगे या यूँ कहे कि इसे लीलना शुरू कर दिया। अभी ये इसे आधा ही लील पाया हैं,हो सकता है आगे 20-25 सालों में ये इसे पूरा निगल जाए और  लोगों को पता भी ना चले कि कभी यहाँ महुआ का भी पेड़ हुआ करता था ।

 

और बिल्कुल हुआ ऐसा ही। अब वहाँ महुआ के पेड़ का नामोनिशां नहीं हैं। अब वो शुद्ध बरगद का पेड़ बन चूका हैं,और धीरे-धीरे विशाल भी होता जा रहा हैं। कभी वहाँ एक तरफ़ महुआ के फूल और कौड़ी(फल) गिरा करते थे तो दूसरी तरफ़ बरगद के फल। लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ बरगद के ही फल गिरते है । हाँ चिड़ियों का रैनबसेरा वही है जहाँ कभी महुआ हुआ करता था। और उन चिड़ियों के बिष्ठों से ज़रूर बरगद के ऊपर दो-चार छोटे-छोटे पौधें(बरगद के नहीं) हैं,लेकिन इतने सक्षम नहीं कि वो बरगद को अक़्वायर कर सके। बस बरगद के ऊपर निर्भर हैं।

 

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये बरगद और महुआ की बात क्यों बता रहा हूँ? बता इसलिए रहा हूँ कि इसका हमसे, आपसे और पुरे भारतवर्ष से सीधा-सीधा संबंध हैं।यहाँ बरगद रूपी मुसलमान हैं और महुआ रूपी हिन्दू।1400 साल पहले इस्लाम का बीजारोपण भारतवर्ष में हुआ फिर यहाँ सींचता गया फलता-फूलता बढ़ता गया ।इसकी जड़े ज़मीन में धंसती गई और आकार बढ़ता गया और बढ़ता ही जा रहा हैं। कहने में ज़रा भी अतिश्योक्ति नहीं हो रही कि यदि इनकी टहनियों से निकलती लटाओं को ज़मीन में धंसने से रोका नहीं गया तो ये पुरे के पुरे महुआ को कुछेक वर्षों में लील जायेगा। और आने वाली पीढ़ीयां कभी जान ना पायेगी की यहाँ कभी महुआ का पेड़ हुआ करता था।

 

जो कोई भी मुसलमान ये कहते हुए दिखाई दे कि हमसब भाई-भाई हैं, गंगा-जमुनी तहज़ीब हैं, आदि आदि फलाना ढिमकाना , यकीन मानिए ये अभी आधी-आधी वाली फेज में हैं मतलब एक तरफ़ महुआ का फल गिर रहा हैं तो दूसरी तरफ़ बरगद का। लेकिन बरगद उसकी विकास को धीमा कर अपनी विकास दिन दुनी रात चौगुनी कर रही हैं और महुआ उसमे विलीन होता जा रहा हैं। जो कोई कहता है कि अरब मुल्कों में कितने ही हिन्दू काम कर रहे हैं, रोजी-रोटी कमा रहे हैं , परिवार पाल रहे हैं और ख़ुशी-ख़ुशी रह रहे हैं, उन्हें कोई समस्या नहीं होती वहाँ पे। तो सुनो… वें लोग वटवृक्ष बन जाने के पश्चात उसके ऊपर उगे छोटे-मोटे पौधें है, जिनसे विशाल वटवृक्ष बन चुके बरगद को कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं हैं। अभी भी वक़्त हैं,क्योंकि भूतकाल में हमनें इनकी जड़ों को ज़मीन में धँसने दिया हैं परिणामतः वें अपनी अलग बरगद की पहचान लिए हमसे कट गए। लेकिन उसकी कुछ टहनियाँ यहाँ बची रह गई और आज पुनः उन टहनियों से जड़ें निकलना प्रारंभ हो गया है व पुनः ज़मीन में धंसने को लालायित। कृपया इन्हें ज़मीन में ना धंसने दे

इसका उपचार तुरंत करें कानूनी रूप से या शारीरिक रूप से या जिस्मानी रूप से आप ताकतवर बन लड़ना तो आपको पड़ेगा ही हर हाल में हर कीमत पर 14 सौ साल पहले जो गजवा ए हिंद की शुरुआत हुई थी वह अभी तक शुरू है और तब तक शुरू हो रहेगा जब तक भारत पूर्ण रूप से इस्लामिक राष्ट्र नहीं बन जाता अभी आपने टीवी पर न्यूज़ सनी कि भारत में हिंदुओं की जनसंख्या में काफी गिरावट हुई है अब आप अपनी जगह पर सोचो आप एक भाई हो या दो भाई हो दो के बाद एक ही रहेगा वे लोग गाय भैंस बकरा और इंसान को काटने की प्रैक्टिस कर रहे हैं रोज कर रहे हैं आप देख रहे हो अब सोचो इस हिंसक भीड़ से आप अपने आप को कैसे बचाओगे आप अकेले हो आपका पड़ोसी भी आपकी मदद नहीं कर पाएगा जब इस्लामिक भीड़ आपके दरवाजे पर अल्लाह हू अकबर के नारों के साथ आएगी तब आपको हिंदुत्व भी नहीं याद आएगा आपकी जान बचाने के लाले पड़ेंगे कश्मीर में यही हुआ हिंदुओं को मार-मार कर वहां से

 

निकाल दिया गया दिल्ली में आज भी सड़क के किनारे घूमते मिलते हैं किस दुनिया में जी रहे हो आप लोग भारत का तेजी से इस्लामीकरण शुरू है बचा सकते हो तो बचा लो अब आपके ही सोच के ऊपर है आपका एक सही निर्णय आपको विजेता के रूप में स्थापित कर सकता है

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