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व्रत-उपवास में छिपा है स्वास्थ्य

योग शास्त्रों के अनुसार 72 करोड 72लाख 10 हजार 201 नाड़ियां हमारे शरीर में मानी गई है। इन नाडियों का प्रतिदिन शोधन कैसे किया जाए, इसके लिए योग में नाड़ी शोधन प्राणायाम, अनुलोम विलोम इत्यादि की व्यवस्था की गई है, लेकिन योग- प्राणायाम करना हर व्यक्ति के लिए इतना आसान भी तो नहीं है । इसीलिए हजारों वर्षों से हमारे आयुर्वेद महर्षियों ने इन नाडियों की शुद्धि के लिए लंघन, व्रत उपवास इत्यादि की व्यवस्था की और स्वास्थ्य के लिए अमृत्तुल्य इस ज्ञान को धर्म से जोड़ दिया। इसीलिए हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति में श्री कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्रि, दीपावली, करवा चौथ, गणेश चतुर्थी, शरद पूर्णिमा इत्यादि के शुभ अवसर पर व्रत रखे जाते हैं।

आयुर्वेद में व्रत और उपवास को लंघन शब्द से परिभाषित किया गया है।

 

चरक महाराज लिखते हैं कि लंघन करने से शरीर में लघुता पैदा होती है, इसीलिए इसका नाम लंघन पड़ा।

 

महर्षि चरक ने वमन, विरेचन, वस्ति, प्यासा रहना धूप का सेवन करना वायु सेवन करना और पाचक औषधियां का सेवन करना, व्यायाम करना इतने प्रकार के लंघन बताएं हैं।

 

यहां पर मूल श्लोक अवलोकन है-

 

चतुष्प्रकारा संशुद्धि:पिपासा मारुतातपौ।

पाचनान्युपवासश्च,व्यायामश्चैति लंघनम। च.सू.22/18

 

चिर यौवन प्रदान करता है उपवास-रूसी वैज्ञानिक व्लादीमीर अपने अनेक वर्षों के अनुसंधानों के बाद लिखते हैं कि उपवास के द्वारा फिर से युवा होना और अपने युवक को बहुत दिनों तक बनाए रखना संभव है।

 

जो लोग हमारी सनातन संस्कृति की बातों को अवैज्ञानिक मानते हैं, उन्हें नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. योशिनोरी ओसूमी की बात तो मान ही लेनी चाहिए। उनकी आटोफेजी में दम है, जिसका अभिप्राय यह है कि भूखा शरीर क्षतिग्रस्त एवं कैंसर कोशिकाओं को भक्षण करता है। इसका अभिप्राय हुआ कि व्रत के द्वारा हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कैंसर कोशिकाएं नष्ट होती हैं।

 

इसलिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए सप्ताह में एक दिन व्रत अवश्य रखें। 

 

विशेषज्ञों के द्वारा किए गए इस अनुसंधान का यह निष्कर्ष था कि एकादशी का व्रत रखोगे तो कैंसर कभी नहीं होगा। अगर कोई व्यक्ति साल भर में कम से कम 20 दिन 10 घंटे बिना खाए पिए रहता है, उसे कैंसर होने की संभावना 90% तक कम होती है, क्योंकि जब शरीर भूखा होता है तो शरीर उन सेल्स को नष्ट करने लगता है, जिन से कैंसर पैदा होता है। निस्संदेह सनातन धर्म की वैज्ञानिकता का कोई जवाब नहीं।

 

सप्ताह में 1 दिन व्रत रखने की बात एक हकीम साहब लगभग सौ बरस पहले कुछ इस अंदाज में कह कर गए-

हर सालै मसल, हर माह में कै।

हर हफ्ते फांका, हर दिन मैं।

अर्थात साल में एक बार जुलाब का सेवन करें और अपने पेट की सफाई करें। महीने में एक बार वमन करें जिसे योग में गजकरणी भी कहा जाता है। हर हफ्ते फांका का अभिप्राय है सप्ताह में एक बार व्रत रखें। हर दिन मैं का मतलब है आयुर्वेदिक आसव, अरिष्ट, सुरा इत्यादि का नियमित सेवन करें।

 

बदहजमी की रामबाण दवा है फांका-

 

एक दूसरे हकीम साहब की कविता भी अवलोकनीय है-

जहां तक काम चलता हो गिजा से। तो वहां तक चाहिए बचना दवा से।

 

जो बदहजमी में तू चाहे अफाका ।

तो दो एक वक्त कर ले तू फांका।

गिजा=आहार अर्थ सुस्पष्ट है।

 

व्रत के दौरान चाय पीना कैंसर को आमंत्रण-

 

ध्यान दीजिए-शराब से कुछ घर बर्बाद हुए और चाय ने पूरा देश बर्बाद कर दिया। आजकल अनेक महिलाएं चाय पीने की बहुत शौकीन हैं। जिन महिलाओं को अपना वजन बढ़ाना है, उन्हें तो खूब चाय पीनी चाहिए, बहुत सारी महिलाएं तो ऐसी हैं जो व्रत उपवास में भी चाय खूब पीती हैं।

 

महाभारत में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि जल, मूल, फल, दूध, हविर्भाग, ब्राह्मणों की इच्छा तथा गुरु के वचन के अनुसार किया हुआ कर्म या भक्षण  किया हुआ द्रव्य एवं औषधि का सेवन करना – यह सब व्रत नाशक नहीं है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस सूची में चाय के सेवन करने की अनुमति का उल्लेख कहीं भी नहीं है।

 

एक लोक कहावत में भी व्रत उपवास की महिमा बखूबी बताई गई है-

 

जुर-जाचक अरु पांवणा, इनको यही उपाय।

लंघन तीन कराई दे, फेर कबहुं नहीं आए।

जुर- हल्का बुखार जाचक यानी भिखारी और पावणा अर्थात मेहमान, इन तीनों का एक ही उपाय है कि इनको तीन बार अर्थात तीन समय लंघन करा दें या भोजन नहीं दें, तो यह फिर वापस कभी लौट कर नहीं आते हैं।

 

आयुर्वेद महर्षि चक्रपाणि दत्त ने भी कुछ ऐसी ही मिलती-जुलती बात कही है उनके अनुसार नेत्र रोग पेट के रोग जुकाम वर्ण अर्थात शरीर में होने वाला कोई जख्म और बुखार यह पांच लोग 5 दिन लंघन करने से ही अच्छे हो जाते हैं।

 

अक्षिकुक्षिभवा योगा:, प्रतिश्याय व्रण ज्वरा:।

पंचैते पंच रात्रेण, प्रशमं यांति लंघनात।

 

क्यों रखते हैं इन तिथियों को उपवास ?

 

शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या को क्या पिंडे तथा ब्रह्मांडे के सिद्धांत के अनुरूप मनुष्य के शरीर में पित्त दोष शुरू हो जाता है तथा वायु नामक दोष बढ़ जाते हैं वायु और कफ दोषों के बढ़ जाने से शरीर में तीनों दोषों का असंतुलन पैदा हो जाता है और सर्दी जुकाम इत्यादि विकार पैदा होने लगते हैं, यही कारण है कि सभी धर्म शास्त्रों में शुक्ल तथा कृष्ण पक्षों की उपरोक्त तिथियों को उपवास रखने या अल्प भोजन करने की महत्वपूर्ण सलाह दी गई है। इस नियम का पालन करने से कोई भी जातक बीमार होने से बच सकता है।

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