@सौ विदुला जोगलेकर
चैफिया पेड़ हटाओ…
घर के पीछे खुली जगह में उगी घास हटाने आए बुजुर्ग चाचा बोले, अब यह दोबारा नहीं फटेगी…
मैंने तुमसे पिछली बार कहा था…ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए।उगा आलम को काबू में रखा गया.खिड़की से देख रही सास सुन रही थी…अरे पापा आप तो पिछले साल से कह रहे हैं, हम तो पिछले चार-पांच साल से कह रहे हैं…पर सुनो तो सही. सत्य!
यदि वे उसे हटाकर दूसरा लगा देते तो वह फूलों वाला पेड़ बन गया होता। लेकिन जो उस पेड़ को सींचता है, उससे बात न करना ही बेहतर है। बहस तो तब होती है… उसने खिड़की से दूर हटते हुए कहा।अंकल वो पेड़ बड़ा हो गया है, मुझे भी दिख रहा है… पता है… लेकिन मैं उसे जड़ से नहीं हटाता… जाने क्यों… मुझे लगता है कि वो फिर कभी उग आएगा… सफ़ेद चाफा फिर से खिलेगा…दादा (मेरे ससुर) लवलाय ते… क्योंकि मुझे चाफा पसंद है! वह अचानक चला गया और पेड़ पर अपने आप फूल आने लगे। उसके लगाए हुए आम, बैंगनी जसवंद, मोगरा, फल तेजी से बढ़े, खूब फूल आए…वे मुझसे कहते थे…जब तुम आम तोड़ो तो मुझे याद रखना…दादाओं को पेड़ लगाना चाहिए और बच्चों और पोते-पोतियों को फल चखना चाहिए!उसकी याद तब आती है जब वह पीछे के बगीचे में जाता है…लेकिन उठे हुए भूसे से हाथ हटाते समय एक आह निकल जाती…चाफ़ा मांगो! मुझे बहुत पसंद है। और मेरी साधारण इच्छाओं का सम्मान करने के लिए, वे एकत्र होने में सक्षम थे। इतने समय तक मैं दो बच्चों का पिता था… अब मैं एक बेटी का पिता भी हूं…!उन्होंने बहू, बेटी, गृहलक्ष्मी जैसे कई तरीकों से मेरे नारीत्व का सम्मान किया। उनमें से एक है यह चाफा…।यह साधारण रंग और गंध वाला पांच पंखुड़ियों वाला फूल हैचार दिनों तक पेड़ पर तरोताजा रहता है। ज्यादा रख-रखाव की उम्मीद किए बिना। मानसून में अकेले, अपने आप में लीन।तुम फिर टूटना चाहते हो… मैं चफ़े को डांटता था, वो चफ़े का पेड़ मेरी ज़िद की निशानी है!लगभग सात या आठ वर्षों से, मेरी ही ऊंचाई के बराबर, वह आम के पेड़ के बगल में चाफा व्रतस्थ योगी की तरह खड़ा था। कोई शाखा या पत्तियां नहीं… फूल एक लंबी कहानी हैं…
और…और…एक दिन…पेओनी के फूल चुनते समय…उस एकडंडी के अंत में… मुझे ऐसा लगा जैसे कोई हरी-सफ़ेद कली फूट गई हो…. मैंने आम के फूलों को थैले में आम के पेड़ पर छोड़ दिया… मैं चाफ्या के पास गया… मुझे विश्वास नहीं हो रहा है …लेकिन ऊपर से एक नाखून जितना बड़ा लाल रंग का पलव बाहर झाँक रहा था।मेरी आँखों में आँसू आ गये… मैंने अपना हाथ उस चफ़ी के गोल-मटोल शरीर पर फिराया जो मेरी अंतरतम इच्छा को जानता था,पत्ते में वापस… मैं अजीजी के साथ उस पर झुक गई। जहां उसने इतने वर्षों से मेरी इच्छा को समझा, उसके शरीर ने इस स्पर्श को समझा होगा। कलियाँ फूट गईं।और शुरू हो गया ठंड का मौसम…शिशिरा के पतझड़ में आये पत्ते झड़ गये…!सैडाफ़्टिंग चाफ़ा अकेले खड़े हैं! लेकिन मन में आशा की एक किरण जगी… दो-तीन पत्तों में टूट गई, मतलब फिर टूटेगी… मृत चेतना में नव जागृत चेतना मन को बहुत व्यस्त रखती है।लेकिन फिर मैंने हर दिन उस पेड़ पर नजर रखना शुरू कर दिया। केवल पानी जो अन्य पेड़ों के साथ लगाया गया था और मेरे दिल में पेड़ के प्रति गहरी आस्था थी… इतनी बड़ी पूंजी पर… पांच या छह साल बाद, पेड़ धीरे-धीरे जागे और पत्तियाँ, शाखाएँ… फूल भी। डेढ़ साल में साल आने लगा। अब पूरी पत्तियों में चैफा खिल रहा है…उभरने से लेकर खिलने तक की इस यात्रा में मैं अपना सम्मान महसूस करता हूं। यदि आपकी इच्छाएँ, जुनून, कर्म अच्छे, पवित्र इरादों पर आधारित हैं… तो यह स्वचालित रूप से कहीं न कहीं व्यवहार में दर्ज हो जाता है… और कभी-कभी इच्छा पूरी भी हो जाती है। बस स्थापना सकारात्मक होनी चाहिए…बस इतना ही…! @सौ विदुला जोगलेकर