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जन्म कुंडली का जीवन पर प्रभाव

  • जिसकी जन्मकुंडली में तुला के सूर्य है, उनको नेत्रविकार, रक्तविकार, दाद, खाज , खुजली आदि चर्मरोग होता है!
  • चंद्रमा जिनका वृश्चिक राशि में होगा, विशेषकर रोगभाव (षष्ठ या अष्टम भाव) — में होगा, उनको शीत, कफ, खांसी, निमोनिया, पथरी का रोग देखा है!
  • मंगल कर्क राशि में 6-8 भाव में रक्तदोष, अर्शरोग उत्पन्न करता है, यदि 28 अंश में कर्क का मंगल किसी भाव में है तो वह उस भाव के प्रभाव की हानि करेगा, सप्तम भाव में स्त्री या पति को तथा दशम भाव में राज्य से व्याधियाँ उत्पन्न करता है, परंतु मकर का मंगल यदि राज्यभाव में है तो राज्य से मान, धन एवं अधिकारप्रद भी होगा!
  • बुध 6-8 वें भाव में मीन राशि का हो तो मधुमेह, पौरुषग्रंथि की समस्या उत्पन्न करते हैं!
  • बृहस्पति कर्क के लग्न एवं केन्द्र में हो तो राज्य, धन, धान्य, मान, प्रतिष्ठा खूब देते हैं और कन्या राशि या मकर राशि के होकर जिस भाव में बैठते हैं, उस भाव की हानि करते हैं!
  • शुक्र कन्या राशि के 6-8 वें भाव में हो तो नेत्र एवं गुप्तरोग , (पानी गिरना, जाला, मोतियाबिंद, धुंध, मधुमेह, स्त्रियों में प्रदररोग,(श्वेतप्रदर) प्रमेह, सुजाक, गर्भाशय संबंधित रोग एवं आंतरिक रोगों की उत्पत्ति के कारक होते हैं!
  • शनि मेष के जिस भाव में होंगे, उसके शुभ फल की हानि करेंगे, यदि पंचम में शनि है तो पुत्रसुख में बाधक रहेंगे, परंतु राज्याधिकार प्रद भी होतें है!!
  • राहु यदि 12 वें भाव में है तो पसली में पीड़ा, विद्याभाव में है तो काँख में पीड़ा, अष्टम भाव में है तो उदर विकार करते हैं!
  • केतु यदि धनभाव में है तो मुखरोग, सहजभाव में है तो बाहुपीड़ा, लग्न में है तो स्त्री को पीड़िप्रद होता है!
  • ग्रहों की उच्च नीच राशियों, अंशो, दृष्टियों पर विचार कर जब फल कहा जाता है तो वह अक्षरशः सत्य ही होता है, ऐसा स्वानुभव है, परंतु अन्तर्ज्ञान , और निदिध्यासनावस्था अत्यावश्यक है l
  • यदि ग्रह अस्त हों या नवांश कुंडली में शत्रु नवांश में चले गए हों या शत्रु राशियों में हों तो अशुभ फल देने लगते हैं।
  • यदि पाप ग्रह शुभ राशियों में बैठे हों या शुभ राशियों के नवांश में बैठे हों तो उनके पाप प्रभाव में कमी आ जाती है।
  • अस्त ग्रह सबसे अधिक खराब फल देते हैं। कुछ ग्रहों की अस्तंगत दोष से मुक्ति मानी गई है। उनमें बुध और शनि विशेष हैं परन्तु व्यवहार में देखने में आता है कि अस्तंगत बुध, बुधादित्य योग के फल तो श्रेष्ठ देते हैं परन्तु चर्मरोग या एलर्जी जैसे रोग भी साथ ही साथ आते हैं।

 

  • ग्रह नीच नवांश में या शत्रु नवांश में या अस्तंगत होते हुए भी अगर षड्बल को प्राप्त कर जाएं अर्थात् बलों की गणना में विभिन्न बल प्राप्त करके एक से अधिक अंक प्राप्त कर लें तो वे भी शुभ फल देने लगते हैं। अच्छी राशि में होने के बाद भी ग्रह का षड्बल यदि कमजोर हो तो फलों में उसी अनुपात में कमी आ जाती है।

 

  • षड्बल में अधिक प्राप्तांक जिस ग्रह ने प्राप्त कर लिए हों, उस ग्रह की दशा यदि जीवनकाल में पड़ जाए तो व्यक्ति के जीवन का चरमोत्कर्ष उस ग्रह की दशा में आता है।

 

  • ज्योतिष के अनुसार शक्तिशाली ग्रह अपनी दशा में अपनी दिशा में ले जाते हैं और अपने विषयों से लाभ कराते हैं।

 

  • बुध और गुरु ग्रह पूर्व दिशा में बलवान होते हैं। सूर्य और मंगल दक्षिण दिशा में, शनि पश्चिम में, शुक्र और चंद्रमा उत्तर दिशा में बलवान होते हैं।
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