‘दशहरा’ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “दस को हरने वाली [तिथि]”। “दश हरति इति दशहरा”। ‘दश’ कर्म उपपद होने पर ‘हृञ् हरणे’ धातु से “हरतेरनुद्यमनेऽच्” (३.२.९) सूत्र से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘दश + हृ + अच्’ हुआ, अनुबन्धलोप होकर ‘दश + हृ + अ’, “सार्वधातुकार्धधातुकयोः” (७.३.८४) से गुण और ‘उरण् रपरः’ (१.१.५१) से रपरत्व होकर ‘दश + हर् + अ’ से ‘दशहर’ शब्द बना और स्त्रीत्व की विवक्षा में ‘अजाद्यतष्टाप्’ से ‘टाप्’ (आ) प्रत्यय होकर ‘दशहर + आ’ = ‘दशहरा’ शब्द बना।
संस्कृत में यह शब्द गङ्गादशहरा के लिये और हिन्दी और अन्य भाषाओं में विजयादशमी के लिये प्रयुक्त होता है। दोनों उत्सव दशमी तिथि पर मनाए जाते हैं।
‘स्कन्द पुराण’ की ‘गङ्गास्तुति’ के अनुसार ‘दशहरा’ का अर्थ है “दस पापों का हरण करने वाली”। पुराण के अनुसार ये दस पाप हैं
१) “अदत्तानामुपादानम्” अर्थात् जो वस्तु न दी गयी हो उसे अपने लिये ले लेना
२) “हिंसा चैवाविधानतः” अर्थात् ऐसी अनुचित हिंसा करना जिसका विधान न हो
३) “परदारोपसेवा च” अर्थात् परस्त्रीगमन (उपलक्षण से परपुरुषगमन भी)
ये तीन “कायिकं त्रिविधं स्मृतम्” अर्थात् तीन शरीर-संबन्धी पाप हैं।
४) “पारुष्यम्” अर्थात् कठोर शब्द या दुर्वचन कहना
५) “अनृतम् चैव” अर्थात् असत्य कहना
६) “पैशुन्यं चापि सर्वशः” अर्थात् सब-ओर कान भरना (किसी की चुगली करना)
७) “असम्बद्धप्रलापश्च” अर्थात् ऐसा प्रलाप करना (बहुत बोलना) जिसका विषय से कोई संबन्ध न हो
ये चार “वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्” अर्थात् चार वाणी-संबन्धी पाप हैं।
८) “परद्रव्येष्वभिध्यानम्” अर्थात् दूसरे के धन का [उसे पाने की इच्छा से] एकटक चिन्तन करना
९) “मनसानिष्टचिन्तनम्” अर्थात् मन के द्वारा किसी के अनिष्ट का चिन्तन करना
१०) “वितथाभिनिवेशश्च” अर्थात् असत्य का निश्चय करना, झूठ में मन को लगाए रखना
ये तीन “मानसं त्रिविधं स्मृतम्” अर्थात् तीन मन-संबन्धी पाप हैं।
जो तिथि इन दस पापों का हरण करती है वह ‘दशहरा’ है। यद्वा ‘दश रावणशिरांसि रामबाणैः हारयति इति दशहरा’ जो तिथि रावण के दस सिरों का श्रीराम के बाणों द्वारा हरण कराती है वह दशहरा है। रावण के दस सिरों को पूर्वोक्त दस शरीर, वाणी, और मन संबन्धी पापों का प्रतीक भी समझा जा सकता है।
विजया दशमीके दिन बच्चों का अक्षरारम्भ (सरस्वती पूजन) कराया जाता है दक्षिण भारत में।
इस शुभ दिनके प्रमुख कृत्य हैं
अपराजिता पूजन
शमीपूजन
सीमोल्लंघन
नीराजन
खंजन पक्षी का दर्शन
दशहरा या”दसेरा”शब्द ‘दश’ एवं ‘अहन्’ से ही बना है |
देवीभागवत तथा कालिका पुराण के अनुसार श्रीराम जी ने आश्विन मास में देवी का व्रत किया और आशीर्वाद प्राप्त कर रावण का वध किया ।
महाभारत में रावण वध का वर्णन इस प्रकार है –
मुक्तमात्रेण रामेणदूराकृष्टेन भारत||29||
स तेन राक्षसश्रेष्ठ: सरथ: साश्वसारथि:|
प्रजज्वाल महाज्वालेनाग्निनाभिपरिप्लुत:||30||
महाभारत[{वनपर्व 290}]
मार्कण्डेय युधिष्ठिर को रामकथा सुना रहे हैं; उसीप्रसंग के उपर्युक्त श्लोक हैं |
इससे रावणदहन के बारेमें संकेत प्राप्त होता है |
श्लोकार्थ:—
युधिष्ठिर! श्रीराम द्वारा छोड़े हुए उस बाणके लगते ही रावण रथ, घोड़े, सारथि सहित इस प्रकार जलने लगा मानो भयंकर लपटों वाली आग के लपेट में आ गया हो ||
#नवरात्र_और_दशहरा_उत्सव-
भारत में दशहरा के दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं। इस अवसर पर मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। नवरात्रि और दशहरा भारत के विभिन्न भागों में अलग- अलग ढंग से मनायी जाती है-
#विजयादशमी/ #दशहरा – आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि
श्रीराम ने आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को लंका आक्रमण प्रारंभ किया था तभी से आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि विजयादशमी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इसीलिए प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र में शक्ति उपासना तथा रामलीला का महानुष्ठान साथ-साथ चला आ रहा है।
माँ दुर्गा ने महिषासूर से लगातार नौ दिनों तक युद्ध करके दशहरे के दिन महिषासुर का वध किया था। इसीलिए नवरात्रि के बाद इसे विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है।
वह स्वप्नानुसार रात में ही ढेर सारे शमी के पत्ते ले आया। जब सुबह हुई तो राजा ने देखा कि वे सभी शमी के पत्ते , स्वर्ण के पत्ते बन गए थे। राजा ने उन स्वर्णपत्तों से ब्राम्हण को दक्षिणा देकर विदा किया।जिस दिन राजा शमी के पत्ते अपने घर लाया था, उस दिन विजयादशमी थी, इसलिए ये मान्यता हो गई कि शमी के पत्ते दशमी को घर लाने से घर में सोने का आगमन होता है।
सिमालंघन महोत्सव मनाया जाता है। सायंकाल में सभी शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘स्वर्ण’ लूटते हैं, फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
टीवी में जगदम्बा दुर्गा माँ पर बहस देखी, संसद में भी । सालों से यह विवाद मेरी जानकारी में है। जो भी टकराया, उसे निरुत्तर होना पडा। आपके लिए कुछ बातें…
दुर्गा माता की पूजा का तथाकथित सेक्युलर पक्ष देखना हो तो यह जानिए कि दुर्गा माता के मुसलमान भक्तों की भारी तादाद है। कुछ का नाम ले रहा हूँ, सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ स्व. अल्लाउद्दीन खाँ मैहर की शारदा भवानी के अनन्य भक्त थे। अम्बाजी माउन्ट आबू गुजरात जाइए। पहाड़ चढिए , वहाँ एक मुसलमान भक्त का मजार मिलेगा। विंध्याचल में भदोही के एक मुसलमान परिवार की ओर से हर नवरात्रि में चढावा आता है माता ने उस गरीब को अमीर बनाया था। कामाख्या के एक मुसलमान भक्त का नाम है इस्माइल जोगी। सिक्खों में दुर्गा के उपासक गुरू गोविन्द सिंह की पँक्ति है- देहु शिव वर मोहि..
बौद्धों-जैनों की तांत्रिक शक्ति पूजा का भेद खोलूँ तो पोस्ट लम्बा हो जाएगा। दुनिया भर की संस्कृतियों में शक्ति पूजा का विवरण भी मिलेगा। नृतत्त्व / anthropology की दुनिया छान मारूँ तो कोई देश खाली नहीं बचेगा।
आज जिन्हें ट्राइबल/ अनुसूचित जन जाति कहा जा रहा है- उन वनवासियों की दुर्गा को देखना हो तो देवली मंदिर, राँची जाइए। वनदुर्गा वनों में ही रहती है। वन्य ग्रामीणों की शक्ति पूजा का विवरण बहुत विस्तृत है। उनमें बच्चियों को ” माइयाँ ” कहा ही जाता है, जिसमें कन्या पूजन का भाव छिपा है। पूर्वांचल में स्त्रियों की प्रधानता शाक्त संस्कृति की देन है।
सामाजिक न्याय देखना हो तो महाशक्ति की पूजा का विधान देखिए। इसमें क्रमशः पाँच स्तरों में पूजा होती है। सबसे पहली पूजा शूद्रा रूप की होती है, फिर वैश्या, क्षत्रिणी , ब्राह्मणी रूपों की और अंत में सर्वेश्वरी रूप की। दुर्गा सर्व समावेशिनी है। असुर और देवता सभी उसकी आराधना करते हैं। माता के दरबार में कोई छुआछूत नहीं चलता। गाँव की काली माई हों या छठी माई की पूजा वहाँ कोई भेद-भाव नहीं चलता।
राष्ट्र भक्ति की नजर से भी देखिए कि दुर्गा कौन हैं ? ‘वन्दे मातरम् ‘ से स्वाधीनता की अपराजेय घोषणा की जाती है, यह घोषणा किस शक्ति की कृपा से की जाती है। ‘वन्दे मातरम्’ राष्ट्र दुर्गा की जयकार ही है। बंकिम का राष्ट्र गीत किस की आराधना है ? सेक्युलर संविधान के प्रवक्ताओं ने कभी सोचा क्यों नहीं ?
दुर्गा रूप तुलजा भवानी ने किस काम के लिए शिवाजी के हाथों में तलवार दिया ?
स्वामी विवेकानन्द से जान लेते- उन्होंने कन्याकुमारी में ध्यानस्थ होकर देखा था- भारत माता के रूप में सिंहासनारूढ दुर्गा को। महर्षि अरविन्द से जान लेते कि “भवानी भारती” कौन है। यह बात भगिनी निवेदिता भी बता देंगी, पूछो तो सही- सेक्युलरो।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडवार से भी हम जान सकते हैं कि विजया दशमी / दशहरा के दिन ही क्यों संघ का शुभारंभ हुआ था।
राष्ट्र की अस्मिता से टक्कर का मतलब है- “विनाशकाले विपरीत बुद्धि।”
जय दुर्गे !! क्षमस्व मे परमेश्वरि !!