80% रोग वात-पित्त के असंतुलन से होते हैं। देशी गाय का घी इन्हें सन्तुलित कर हमें 80% रोगों से बचाता है।
देशी गाय का घी पतले को मोटा व मोटे को पतला करता है यानी शरीर को संतुलित करता है।
देशी गाय का घी हॉरमोन्स को संतुलित रखता है। घी खाने वालों को Hormonal Imbalance की समस्या नहीं होती।
भय : जिनके दिमाग में गर्मी होती है, उन्हें डर अधिक लगता है। घी दिमाग की गर्मी को शांत कर अभय प्रदान करता है।
क्रोध/चिड़चिड़ापन : दिमाग की गर्मी से गुस्सा अधिक आता है। देशी गाय का घी दिमाग की गर्मी को कम कर शान्ति प्रदान करता है, चिड़चिड़ापन दूर करता है।
ईर्ष्या (जलन) : जलन शब्द ही दिमाग में अधिक गर्मी का प्रतीक है। देशी गाय के घी से जलन शांत होती है।
डिप्रेशन : दिमाग में गर्मी बढ़ने से व्यक्ति तनाव को झेल नहीं पाता और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। देशी गाय का घी दिमाग को ठंडा रख तनाव को झेलने की क्षमता को बढ़ाकर डिप्रेशन का शिकार होने से बचाता है।
संतुलित आहार’ यह विज्ञान नहीं, अज्ञान है। भोजन के सबसे महत्त्वपूर्ण गुण हैं : भोजन पौष्टिक व तृप्तिदायक होना चाहिए।
पौष्टिक भोजन शरीर को और तृप्तिदायक भोजन मन को निरोगी रखता है। वही व्यक्ति भ्रष्ट होता है जो अतृप्त होता है। देशी गाय का घी तृप्ति प्रदान करता है।
देशी गाय के घी में जो चिकनाई होती है, उसे स्नेह कहा जाता है। देशी गाय का घी खाने से शरीर व मन दोनों का रूखापन खत्म होता है।
मस्तिष्क का 18-20% भाग चिकनाई से बना है। इसकी कमी से पचासों रोग होते हैं। मस्तिष्क केवल 3.5 माइक्रोन से छोटी चिकनाई को ग्रहण कर पाता है। देशी गाय का बिलौने का घी 3.1 से 3.3 माइक्रोन का होता है, अन्य सभी चिकनाई 4.8 माइक्रोन से अधिक होती हैं
अर्थात् मस्तिष्क के लिए एक ही चिकनाई है – देशी गाय का घी। इसलिए जब तक भारतीय देशी गाय का घी खाते रहे, भारत विश्वगुरु बना रहा।
हाइपर होना आज का तेजी से बढ़ता रोग है। अपने स्थिरता के गुण के कारण देशी गाय का घी धैर्य प्रदान करता है।
देशी गाय का घी धी (बुद्धि / समझ), धृति (धारण करने की क्षमता, Retention Power), स्मृति (Memory) को बढ़ाता है।
चोट, प्रसव या ऑपरेशन के कारण हुए घाव को देशी गाय का घी सबसे तेजी से भरता है।
आयुर्वेद ने देशी गाय के घी को रसायन कहा है अर्थात् घी शरीर पर बढ़ती उम्र का प्रभाव नहीं पड़ने देता।
आयुर्वेद देशी गाय के घी के लिए कहता है – आयुरेव घृतं – घी ही आयु (स्वस्थ जीवन) है। देशी गाय का घी खानेवाले स्वस्थ जीते हैं और पूरी आयु भोगकर स्वस्थ ही मरते हैं।
साधना के प्रारंभ में मन की चंचलता बाधा डालती है, देशी गाय का घी मन को स्थिरता प्रदान कर साधना में सहायक होता है। मन के स्थिर होने पर शरीर में ऊर्जा बढ़ने लगती है, जिससे शरीर जलने लगता है। देशी गाय का घी इस ऊर्जा को संचित कर जलन को तप में बदल देता है।
नोट :
देशी गाय के घी से ये सब लाभ उठाना है तो इस वर्ष सर्दी में यानी गोवत्स द्वादशी (12 नवम्बर) से वसंत पंचमी (16 फरवरी) इन 03 महीनों में प्रतिदिन 100-125 ग्राम बिलौने का घी खाइए।
घी को पचाने के लिए उस पर तुरंत तेज गर्म दूध, कढ़ी, दाल, सूप, काढ़ा, पानी आदि गर्म पेय लें।
सावधानी :
घी पर सादा या ठंडा पानी जहर है और गर्म पानी अमृत। गर्म पानी में ठंडा पानी मिलाने पर वह जहर हो जाता है।
ज्वर (बुखार), कफ (बलगम) और आँव (mucous) में घी-तेल न खायें।
शुद्ध बिलोना पद्धति (mucous) में घी-तेल न खायें।
जय गौमाता