क्षीर सागर मेरु पर्वत और दानव और देवताओ द्वारा प्रसिद्द समुद्र मंथन की घटना जो हजारो वर्षो से भारत के प्रत्येक घरो में ब्रह्म मुहूर्त के दौरान भी घटित होती रही है अर्थात गोमाता के दूध से बना दही और उसमे मंथन की प्रक्रिया से निकला हुआ मक्खन और उससे निर्मित घृत, यह सृष्टि की सबसे बड़ी खोज है।
कैसे……………?
इसी खोज की प्रेरणा से पिछले दिनों “बिग बैंग थ्योरी” निकली गयी और बतलाया गया की सृष्टि के निर्माण में लगे हुए सूक्ष्म कण ही विष्णु और शिव ऊर्जा है।
इन दोनों उर्जाव के स्वरुप के लिए एक ब्रह्म ऊर्जा है जो अदृश्य है इस अदृश्य ऊर्जा में प्रज्ञा रुपी चेतना है सृष्टि में इस उर्जा की अधिकता केवल देसी गाय के दूध से वैदिक प्रक्रियाओ द्वारा निकाले गए मक्खन में है इसीलिए मक्खन रूपी गव्य ही इस सृष्टि में साक्षात् ब्रह्म ऊर्जा है जिसे धारण कर जीव जगत बुद्धिशाली, बलशाली और सृष्टि को संतुलित रखने वाली चित्त प्रवृति वाला होता है।
विषय विस्तार से :-
क्या हमने कभी कल्पना की है की सृष्टि उदय के बाद वह कौन होगा जिसने पहली बार दूध से दही बनाने की प्रक्रिया खोजी होगी।
दही को मथ कर उसमे से मक्खन निकला होगा और मक्खन को अग्नि पर तपाकर उसमे से सृष्टि का सबसे सुद्ध अग्नि-घृत की खोज की होगी।
गोमाता इस सृष्टि को उसके संतुलन के लिए तीन महाभूत प्रत्यक्ष रूप में देती है गोबर रुपी मिटटी महाभूत, मूत्र रुपी वायु महाभूत और दूध रुपी जल महाभूत लेकिन सृष्टि के निर्माण में दो और महाभूत है अग्नि और आकाश। इन दोनों की ख़ोज ही क्षीर सागर, मेरु पर्वत और देव दानवो द्वारा की गयी मंथन क्रिया है इसमें क्षीर सागर दूध से भरा घड़ा है मेरु पर्वत उस दही को मथने वाली मथनी है और हमारे दो हाथ जिनसे यह क्रिया होती है उसमे एक देव हस्त (पुण्य) है और दूसरा दानव हस्त (पाप) है।
इस मंथन की क्रिया में मथनी का एक बार पृथ्वी की दिशा में घूमने से और दूसरी बार विपरीत दिशा में घूमने से दही के परमाणु आपस में टकराते है और परमाणुओं का सामूहिक रूप से विखंडन होता है। उस विखंडन से निकले हुए दही के प्रोटोन (Proton) आपस में तेज़ गति से टकराते है और उनका विखंडन भी होता है । यही पर सृष्टि के निर्माण में लगे हुए तीनो ऊर्जाओ का अलग होना और फिर सम्मिलित होने की प्रक्रिया काफी देर तक चलती है । इस क्रिया के फलस्वरूप ही दही अपने अन्दर छिपे हुए अग्नि को जल के साथ मिश्रित कर मक्खन के रूप में बाहर निकाल देता है।
यह मक्खन जो सहज रूप से अर्द्धतरल के रूप में दीखन है यह वास्तव में सृष्टि का ऐसे अद्भुत पदार्थ है जिसमे दो विरुद्ध महाभूतो का समावेश है – अग्नि और जल। जो कभी साथ रहने की प्रकृति वाले नहीं है लेकिन मक्खन में साथ-साथ रहते है इसी मक्खन को जब हम अग्नि पर तपाते है तब उसमे से जल वाष्प के रूप में उड़ जाता है और सृष्टि की शुद्ध अग्नि जो अग्नि महाभूत के नाम से जाना जाता है वह हमे प्राप्त होता है। इस घृत को जलने से जो लौ बनती है और उस से निकलने वाली प्रकाश की किरणें सूर्य नारायण की किरणों के सदृश्य है जिसमे सृष्टि के सञ्चालन की दो ऊर्जाए “प्रज्ञा एवं क्रिया ऊर्जा” का समावेश होता है। ऐसे घृत से जलता हुआ दीपक सौर मंडल के सूरज का एक छोटा हिस्सा है । इस प्रकार से बना 10 ml घृत यदि किसी दीपक में जले तब उससे सोलह सौ लीटर अशुद्ध वायु का रूपांतरण प्राण वायु (ऑक्सीजन) रूप में होता है।
यही कारण है की वेदों में सूर्य नारायण की किरणों का नाम “गौ” भी है। वेद कहते है सूर्य की किरणों में ज्योति, आयु और “गौ” यह तीन प्रकृति है। इन तीनो से ही वनस्पति जगत और जीव जगत को यथा संभव उर्जा मिलती है। किरणों में जो “गौ” प्रकृति है उसका शोषण केवल भारतीय नस्ल की गौमाताएं ही कर सकती है। इसीलिए भारत के महर्षियों ने इस जीव को “गौ” कहा और अपने लिए, अपने उपयोग की वनस्पतियों के लिए पृथ्वी और सृष्टि को दीर्घायु बनाने के लिए “गौ” का सानिध्य किया । यजुर्वेद की एक ऋचा में एक प्रश्न है।
“कस्य मात्र न विद्यते”
पृथ्वी और सृष्टि दोनों ही गोमाता के स्वरुप है उनमे कोई भेद नहीं है। दोनों ही एक दूसे के सहायक और परिपूरक है।
इसी क्रिया को आधुनिक विज्ञानं ने समझा और उसे प्रमाणित करने के लिए इस कलयुग का सबसे बड़ा परिक्षण “Big Bang Test” के नाम से वर्ष 2006 में स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर किया। इस परिक्षण में 27 km परिधि की एक सुरंग धरती के गर्भ में बनाया गया। उसमे बड़े बड़े चुम्बकीय ऊर्जा वाले यंत्र जिसे इकोलाईज़र मशीन कहते है लगाये गए। इन मचीनो की मदद से शुद्ध हाइड्रोजन परमाणुओं को तोड़ कर इसके Protons को सूर्या की किरणों के बराबर वेग देकर आपस में टकराया गया।
जिसे प्रोटोन Bombardment कहा गया। इस क्रिया ने protons को तोड़ दिया। इसके तीन खंड हुए जिनमे दो खंडो के पास आकृति मिली। पहली आकृति जिसकी संरचना शिवलिंग की तरह दिखलाई दी और दूसरी संरचना भगवन विशुर के सहस्र रूप की तरह एवं तीसरा खंड एक ज्योति पुंज की तरह निकला और ओझल हो गया। यही ब्रह्मा है जिसकी कोई आकृति नहीं है लेकिन जैसे ही शिव और विष्णु स्वरुप के बीच से निकला प्रोटोन नष्ट हो गया। अर्थात वह ज्योति पूंज ही वह ऊर्जा है जो इस सृष्टि को बांधे हुए है इसीलिए ब्रम्हा रूप यह जgaयोगी पुंज ही इश्वर है जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है। यही कारण है की आधुनिक वज्ञानिको ने पहली बार स्वीकार किया की इश्वर का अस्तित्व है जिसका दर्शन उन्होंने क्षण भर के लिए किया और माना की भारत की धरना
“कण-कण में इश्वर है” यह शाश्वत सत्य है।
इस प्रयोग की प्रक्रियाओ का ज्ञान वैज्ञानिको को भारत के उन घरो से मिला जहाँ आज भी ब्रह्म मुहूर्त में दही मंथन की क्रिया होगा है। मक्खन रुपी आण्विक ऊर्जा निकली जाती है। इसी आण्विक ऊर्जा के सेवन से भारत भूमि पर ऋषि और क्रन्तिकारी पैदा होते आये लेकिन दुर्भाग्य हम भारतवासियों का की सृष्टि के इस उत्क्रष्ट अनुसंधान हमने खोया यही कारण है की आज के भारत में ऋषि व्यक्तित्व और भगवन श्री कृष्ण जैसे क्रन्तिकारी व्यक्तित्व जन्म नहीं ले रहे।
भारत का भविष्य इस पर निर्भर
जब भारत के बच्चो को दोबारा मक्खन रूपी ब्रह्म उर्जा और गोमाता का सानिध्य प्राप्त होगा तभी इस धरती पर फिर से ऋषि और वीर पुरुष पैदा होंगे।
यदि भारत को समृद्ध और शक्तिशाली, ऋषियों-क्रांतिकारियों का देश बनाना है तो इस आण्विक परिक्षण के लघु रूप को घरो में स्थापित करना होगा, इसी माखन को परमात्मा श्रीकृष्ण अमृत कहा करते थे।