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माघ मास का माहात्म्य अठ्ठाईसवाँ अध्याय

वशिष्ठजी कहने लगे कि हे राजा दिलीप! बहुत से जन-समूह सहित अच्छोद सरोवर में स्नान करके सुखपूर्वक मोक्ष को प्राप्त हो गए तब लोमशजी कहने लगे संसार रूपी इस तीर्थ राजा को सब श्रद्धापूर्वक देखो। यहाँ पर तैंतीस करोड़ देवता आकर आनंदपूर्वक रहते हैं। यह अक्षय वट है जिनकी जड़े पाताल तक गई हैं और मार्कण्डेय ऋषि प्रलय के समय भगवान इसी अक्षय वट का आश्रय लेते हैं। यही शिवजी की प्रिय भगवती भागीरथी है, जिसकी सिद्ध लोग सेवा करते हैं। यह गंगा स्वर्ग के हेतु पताका है, इसका जल पीकर मनुष्य मुक्त हो जाते हैं। हे मुनि! सभी प्राणी इस नदी को यमुना से मिली हुई पाते हैं इसका संगम बड़े पुण्य से प्राप्त होता है। इसके स्नान से जन्म मृत्यु रूपी दावानल से कोई नहीं तपता परंतु ज्ञान प्राप्त करके मुक्त हो जाता है। यहां पर स्नान करने से सभी प्राणी बिना ज्ञान के भी मुक्त हो जाते हैं। इसलिए ब्रह्माजी ने यहां यज्ञ करने की इच्छा की थी।

इसी संगम में भगवान विष्णु ने स्त्री प्राप्ति की इच्छा से स्नान करके लक्ष्मीजी को प्राप्त किया। यहां पर त्रिशूलधारी शिवजी ने त्रिपर दैत्य को मारा था और प्राचीन काल में उर्वशी स्वर्ग से गिरी थी तथा स्वर्ग पाने की इच्छा से यहां पर ही उसके स्नान करने से नहुष कुल के राजा ययाति ने वंशधर पुत्र प्राप्त किया। यहां पर इंद्र ने प्राचीन काल में धन की इच्छा से स्नान किया था और माया से कुबेर के सब धन को प्राप्त किया था। प्राचीन काल में नारायण तथा नर ने हजारों वर्ष तक प्रयाग में निराहार रहकर उत्तम धर्म किया था। यहाँ से जैगाषव्य सन्यासी ने महादेव जी जैसी शक्ति वाले से विजय पाई थी तथा अणिमा आदि योग के अति दुर्लभ ऐश्वर्य प्राप्त किए थे। इसी क्षेत्र में तपस्या करके श्री भारद्वाज सप्त ऋषियों में सम्मिलित हुए। जिन्होंने भी यहां स्नान किया सबको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसलिए हमारे विचार से तुम त्रिवेणी में स्नान करो। इस स्नान से पहले किए हुए। तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे और सम्पूर्ण वैभवों को प्राप्त हो जाओगे।

ऋषि के इस प्रकार के सत्य वचन सुनकर सब ही त्रिवेणी में स्नान करने लग गए और उसी स्नान करने से सबकी पिशाचता नष्ट हो गई। शाप से विमुक्त होकर उन्होंने अपना शरीर धारण कर लिया। वेदनिधि ने अपनी संतान को देखकर प्रसन्नचित्त होकर लोमशजी को संतुष्ट किया और कहा कि आपके अनुग्रह से ही श्राप से विमुक्त हुए। अब आप इन बालकों के योग्य धर्म को कहिए। लोमशजी ने कहा कि इस युवा कुमार ने वेदों का अध्ययन समाप्त कर लिया है। इसलिए इन कन्याओं के प्रीतिपूर्वक कर कमलों को ग्रहण करें तब लोमशजी तथा अपने पिताजी की आज्ञा से इस ब्रह्मचारी ने पाँचों कन्याओं से विवाह किया। इन कन्याओं के सब मनोरथ पूर्ण हुए।

जिसके घर में लिखा हुआ यह माहात्म्य पूजा जाता है वहां नारायण ही पूजे जाते हैं। पुष्कर तीर्थ में, प्रयाग में, गंगा सागर में, देवालय में, कुरुक्षेत्र में तथा विशेष करके काशी में इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। पुष्कर तीर्थ में ग्रहण के अवसर पर इसके पाठ का दुगना फल मिलता है और मरने पर वैष्णव पद को प्राप्त होता है।

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