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बृहस्पति का राशि परिवर्तन

गुरु या बृहस्पति को देवगुरु और सुरगुरु के नाम से भी जाना जाता है। गुरु सौरमंडल का विशालतम एवं भारी ग्रह है इसलिए इसे गुरु नाम दिया गया है। गुरु का अर्थ ही होता है “विशाल” यह इतना विशाल है कि सौरमंडल के सभी ग्रह इसमें समा सकते हैं। यह सूर्य की परिक्रमा 4332.59 दिन या 11.862 वर्ष में करता है औसत रूप से गुरु एक राशि पर 360.96 दिन रहता है। यह अवधि एक बार्हस्पत्य वर्ष (Jovian year) मानी जाती है जो कि एक संवत्सर की अवधि है।

गुरु का नाम सुनते ही धन, समृद्धि, शालीनता, लाभ, विवाह, पुत्र लाभ, उच्च शिक्षा, सभ्यता, संस्कृति, धर्म परायणता, अध्यात्म, गुरुत्व आदि शुभ फल मन मस्तिष्क में छा जाते हैं परंतु गुरु सदैव सभी को शुभ फल ही देता हो यह बात सत्य नहीं है। गुरु जन्म कुंडली में अपने स्थिति के अनुसार और गोचर में भाव तथा राशियों के अनुसार अपना शुभ या अशुभ फल प्रदान करता है। गुरु एक राशि पर लगभग एक वर्ष तथा एक नक्षत्र पर पांच से साढ़े 5 माह तक भ्रमण रत रहता है। इसलिए गुरु का गोचर जातक के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। वैसे तो गुरु का गोचर फल जन्म राशि से द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम और एकादश भाव में भ्रमण करते हुए शुभ तथा इसके विपरीत अन्य भाव में इसके सामान्यत: अशुभ फल प्राप्त होते हैं। सर्वाधिक अशुभ फल जन्म राशि से तृतीय राशि में गोचर करते हुए प्राप्त होता है।

 

देवगुरु बृहस्पति का गोचर वृषभ राशि में 1 मई 2024 की दोपहर 2:29 पर होने जा रहा है। बृहस्पति 14 मई 2025 तक इसी राशि में रहेंगे। हालांकि इस बीच में बृहस्पति 3 मई 2024 को रात में 10:08 पर वृषभ राशि में अस्त हो जाएंगे और यह अस्त की स्थिति विवाह आदि शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं रहती है।

 

बृहस्पति का वृषभ राशि में गोचर का प्रभाव

 

देवगुरु बृहस्पति का दैत्य गुरु शुक्राचार्य के वृषभ राशि में गोचर बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन है। देवगुरु अपने मित्र मंगल की राशि से निकाल कर शत्रु शुक्र की राशि में प्रवेश करेंगे तो यहां पर शनि की तीसरी दृष्टि से मुक्त भी हो जाएंगे। गुरु ग्रह को विस्तार, प्रगति और ज्ञान का कारक माना जाता है और शुक्र को प्रेम, आनंद, सुख समृद्धि, भोग विलास, तथा सुख सुविधाओं का ग्रह माना जाता है। वृषभ राशि शुक्र की स्थिति राशि है इसमें गुरु का गोचर स्थिरता का द्योतक है। गुरु किसी व्यक्ति के जीवन में करियर से लेकर अध्यात्म समेत अधिकांश क्षेत्रों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। हालांकि बृहस्पति का वृषभ राशि में गोचर स्वयं को जानने की अवधि साबित होगी। इसके परिणाम स्वरूप आप अपने रुचि को जानने समझने में सक्षम होंगे तथा अपने करीबियों के साथ रिश्तों को मजबूत कर सकेंगे

 

ज्योतिष शास्त्र में जब गुरु ग्रह अपना राशि परिवर्तन करते हैं, तब यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे प्रगति, प्रेम जीवन, स्वास्थ्य, परिवार और संतान से मिलने वाले समर्थन आदि को प्रभावित करते हैं। यह अवधि आनंद और वृद्धि की दृष्टि से अच्छी रहने की संभावना है क्योंकि यह आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएगी। बता दें कि जब गुरु ग्रह शुक्र देव की राशि तुला या वृषभ में गोचर करते हैं, तो इनका प्रभाव काफ़ी शक्तिशाली होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण भी होता है।

गुरु ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं। उस भाव से इनकी दृष्टि  पांचवें, सातवें और नौवें भाव पर पड़ती है। काल पुरुष के कुंडली में द्वितीय भाव में गोचर रत बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि छठे, आठवें और दशम भाव पर पड़ेगी। जब गुरु की दृष्टि छठे भाव पर होती है, तो उस समय जातकों को कानून से लेकर स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में बहुत सोच-समझकर चलने की जरूरत होती है। इसके साथ ही, गुरु देव की आठवें भाव पर दृष्टि मानसिक और शारीरिक समस्या देने का काम कर सकती है परंतु आध्यात्मिक क्षेत्र में, अनुसंधान के क्षेत्र में तथा अचानक परिवर्तन के भाव में इसका प्रभाव कुछ अच्छा भी होता है। दशम भाव भाव पर पूर्ण दृष्टि कार्य क्षेत्र में अचानक परिवर्तन के संकेत देती है। बृहस्पति जातक को अच्छे कार्यों को करने के तरफ प्रेरित भी करते हैं।

बृहस्पति का वृषभ राशि में गोचर जातकों के लिए अपार वृद्धि लेकर आता है। ऐसे में, इस गोचर का हर राशि पर अलग-अलग प्रभाव देखने को मिलता है। भौतिक सुखों से दूर करके यह आपकी रुचि को अध्यात्म और दार्शनिक क्षेत्र में बढ़ाते हैं। साथ ही, कार्यों के साथ-साथ स्वयं को जानने-समझने के लिए प्रेरित करते हैं। वृषभ राशि में गुरु ग्रह जातक के जीवन में स्थिरता लेकर आते हैं और मनुष्य को विकास के मार्ग पर ले जाते हैं। हालांकि, वृषभ राशि में गुरु ग्रह की मौजूदगी निजी और पेशेवर जीवन के लिए विशेष शुभ रहेगी। साथ ही लोगों के सामाजिक जीवन का विस्तार होगा और नेटवर्किंग से जुड़े कामों में सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। इन लोगों को करियर के क्षेत्र में ऐसे अनेक अवसरों की प्राप्ति होगी जिसके माध्यम से आप तरक्की की राह पर चल सकेंगे।

वृषभ राशि में गुरु ग्रह का गोचर राजनीति के क्षेत्र में बदलाव लेकर आ सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बृहस्पति को विस्तार का ग्रह कहा गया है। जबकि वृषभ स्थिरता और भौतिकता का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसे में, यह गोचर जातकों को प्रगति के अनेक अवसर प्रदान करेगा। इस दौरान आप साहस से अपने जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों का सामना करेंगे। साथ ही, आप निजी जीवन के साथ-साथ अध्यात्म के क्षेत्र में भी तरक्की हासिल करेंगे।

 

वृषभ राशि में गुरु की मौजूदगी मनुष्य के जीवन में स्थिरता और सुरक्षा लेकर आती है। आप धीमी गति से आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य को पाने में सक्षम होंगे। ऐसे में, आप अपने जीवन का आनंद लेंगे और अपनी जरूरतों एवं इच्छाओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। यह अवधि आपको बुद्धिमान बनाने का काम करेगी और इसके परिणामस्वरूप, आप हर काम को पूरी सावधानी के साथ करते हुए दिखाई देंगे। इस दौरान आप जो भी फैसले लेंगे, वह जोश में लेने के बजाय सोच-समझकर लेने की सलाह दी जाती है।

 

गुरु के वृषभ राशि में गोचर के दौरान लोगों को भोग-विलास और खुद में खोये रहने से बचना होगा जो कि आपके लिए बेहद जरूरी होगा। वृषभ राशि में गुरु ग्रह की उपस्थिति डिज़ाइन से जुड़े क्षेत्रों को भी दर्शाती है जो कि शुक्र ग्रह द्वारा शासित है। साथ ही, यह सुंदरता की प्रसंशा करना, इच्छा, लक्ज़री, प्रकृति से जुड़ाव, सख्त रवैया, कभी-कभार आलस और दृढ़ संकल्प आदि का भी प्रतीक मानी जाती है। इस गोचर के दौरान जातक जीवन में स्थिरता पाने के इच्छुक हो सकते हैं और ऐसे में, आपका विश्वास बेकार के जोख़िम लेने के बजाय स्थिरता पाने में होगा।

 

सब कुछ मिला-जुला कर यदि निर्णय करें तो गुरु का यह राशि परिवर्तन बहुत महत्वपूर्ण है जिसका भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के सभी जातकों के जीवन पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।

 

नोट: उपरोक्त आंकलन केवल बृहस्पति के वृषभ राशि में गोचर का सामान्य एवं स्थूल फल है। विभिन्न राशियों के लिए गुरु के गोचर का क्या शुभ और अशुभ परिणाम होगा? समूह के अन्य विद्वान इस विषय पर प्रकाश डालेंगे।

 

वैसे यहां पर यह उल्लेखनीय है कि विभिन्न जातकों पर गुरु के गोचर का प्रभाव केवल राशि पर भ्रमण के अनुसार ही नहीं बल्कि इसमें जातक के जन्म चक्र में गुरु की स्थिति, जन्म कालीन ग्रहों पर गुरु का भ्रमण, गुरु का वेध तथा प्रतिवेध, जन्म कालीन चंद्र नक्षत्र से गुरु का नक्षत्र भ्रमण के अनुसार फल तथा सबसे महत्वपूर्ण अष्टक वर्ग के अनुसार गुरु का गोचर फल विभिन्न जातकों पर अलग-अलग पड़ता है। नाड़ी  ग्रंथों में गुरु के गोचर का विशिष्ट फल बताया गया है तो वहीं श्री के एन राव ने अपनी पुस्तक ( Planets and children) में गुरु तथा शनि के गोचर के आधार पर संतान प्राप्ति के समय के निर्धारण की तकनीक का प्रतिपादन भी किया है।

आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है यह लेख आप लोगों को बृहस्पति के राशि परिवर्तन पर और अधिक मंथन करने सोचने तथा लिखने के लिए प्रेरित करेगा और सभी विद्वान आगे इस चर्चा को आगे बढ़ाएंगे।

 

इतना लंबा लेख पढ़ने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद और हृदय से साधु बाद।

इस लेख के प्रेरणा स्रोत श्री  सर हैं उनको भी बहुत-बहुत धन्यवाद और प्रणाम।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
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