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चैत्र शुक्ल त्रयोदशी: मदनोत्सव, प्रदोष व्रत और पारंपरिक पूजन विधियाँ

चैत्र शुक्ल त्रयोदशी

काम त्रयोदशी

चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मदन (कामदेव) के प्रतिनिधि के रूप में दमन वृक्ष की पूजा की जाती है।

चैत्रावली

यह एक प्राचीन उत्सव है, जिसे मदनभंजनी भी कहा जाता है। इसमें चैत्र शुक्ल त्रयोदशी की रात को किसी बाग़ में मदन और रति की स्थापना की जाती थी, और चतुर्दशी को उनकी पूजा की जाती थी। यह उत्सव गीत, वाद्य संगीत और कभी-कभी अश्लील शब्दों के प्रयोग के साथ मनाया जाता था। अगले दिन सुबह कीचड़ फेंकने का खेल खेला जाता था।

 

प्रदोष व्रत

यह अत्यंत प्रशंसनीय और सभी को करने योग्य व्रत है। प्रत्येक महीने की शुक्ल और कृष्ण त्रयोदशी को यह व्रत किया जाता है। इस व्रत की एक विशेषता यह है कि:

  • संतान प्राप्ति के लिए ‘शनि प्रदोष’
  • ऋण मुक्ति के लिए ‘भौम प्रदोष’
  • शांति व रक्षा के लिए ‘सोम प्रदोष’

अधिक फलदायक माने गए हैं। इसके अलावा, आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए ‘अर्क प्रदोष’ श्रेष्ठ माना गया है।

इस व्रत को करने वाले को उस दिन सूर्यास्त के समय फिर से स्नान करना चाहिए, फिर भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए:

भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते ।

रुद्राय नीलकंठाय शर्वाय शशिमौलिने ॥

उग्रायोग्राघनाशाय भीमाय भवहारिणे ।

ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नमः ॥

इसके बाद भोजन करना चाहिए। यदि कृष्ण पक्ष की प्रदोष त्रयोदशी शनिवार को पड़े, तो वह विशेष फलदायी मानी जाती है।

मदनोत्सव

यह एक तिथि विशेष व्रत है, जो चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को किया जाता है। इसमें कामदेव की मूर्ति या चित्र की विधिवत मंत्रों सहित पूजा की जाती है। फिर दो गायों का दान किया जाता है। उसी दिन पत्नी अपने पति को कामदेव मानकर उसकी पूजा करती है। रात को नृत्य, नाट्य आदि करके जागरण किया जाता है। इस व्रत से दुःख और रोगों से मुक्ति, कीर्ति और संपत्ति की प्राप्ति होती है। इस व्रत की अवधि कई वर्षों तक होती है। मान्यता है कि इसी तिथि को मदन (कामदेव) का पुनर्जन्म हुआ था।

 

मदन पूजा

यह व्रत चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को किया जाता है। इस दिन स्नान कर ऊँचे वस्त्र पर मदन देव की मनोहारी मूर्ति स्थापित कर गंध-पुष्पों से पूजा की जाती है:

नमो रामाय कामाय कामदेवस्य मूर्तये ।

ब्रह्माविष्णुशिवेन्द्राणां नमः क्षेमकराय वै ।

इस मंत्र के साथ घी में तले हुए मोदक का नैवेद्य अर्पण करें। रात को जागरण कर अगले दिन पारण करें। ऐसा करने से पति, पुत्र आदि से संबंधित अखंड सुख की प्राप्ति होती है।

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