भद्रा पूर्णिमा को सदैव उपस्थित होती है, केवल इसका कालखंड भिन्न हो सकता है। यह नियम वर्षों से चला आ रहा है, किंतु वर्तमान में कुछ व्यक्तियों द्वारा धार्मिक विषयों, त्यौहारों एवं उत्सवों में अनावश्यक रूप से नियमों का उल्लेख करके उनसे उत्पन्न होने वाले दोष एवं संभावित कष्टों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। इसका उद्देश्य समाज में भय उत्पन्न करना या भ्रम फैलाना प्रतीत होता है।
वास्तव में, इन नियमों में स्थान, प्रांत, गोत्र शाखा, परंपरागत पद्धतियों आदि के आधार पर कुछ उपनियम एवं वैकल्पिक उपाय भी उपलब्ध होते हैं। इन उपनियमों के प्रभाव से दोष एवं कष्ट न्यून हो जाते हैं या समाप्त हो जाते हैं, जिससे वे नियम अधिक सौम्य होकर दोषकारक नहीं रहते। फिर भी, अपूर्ण एवं एकतरफा नियमों को प्रचारित करने वालों की मंशा क्या है, यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, परंतु यह निश्चित रूप से अनुचित एवं अयोग्य है।
रक्षाबंधन एवं भद्रा अशुभता विषयक शास्त्रीय दृष्टिकोण
शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि भद्रा दोष का प्रभाव विभिन्न ग्रह-स्थितियों एवं ज्योतिषीय नियमों पर निर्भर करता है।
श्लोक:
कुंभकर्कद्वये मयेऽब्जे स्वर्गेऽजात्त्रयेऽलिगे स्त्रीधनुर्जूकनकेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलम् ॥
इसका तात्पर्य यह है कि:
श्लोक:
रात्रिभद्रा यदान्हि स्याद्दिवाभद्रा यदानिशि। न तत्र भद्रा दोषः स्यात्सा भद्रा भद्रदायिनी।।
इसका अर्थ यह है कि यदि भद्रा दिन में प्रारंभ होकर रात तक बनी रहे, या रात में प्रारंभ होकर दिन तक बनी रहे, तो वह दोषकारक न होकर शुभ फलदायिनी होती है। यदि सूर्य के रहते भद्रा प्रारंभ होकर चंद्रमा के समय समाप्त होती है, या चंद्रमा के रहते प्रारंभ होकर सूर्य के समय समाप्त होती है, तो उसमें कोई दोष नहीं होता।
यह निष्कर्ष मुहूर्त चिंतामणि टीका, ज्योतिष पियूषधारा, ब्रह्मयामल एवं मुहूर्त गणपति जैसे ग्रंथों से प्राप्त हुआ है।
श्लोक:
दिवा परार्धजा विष्टि: पूर्वार्धौत्था यदा निशि। तदा विष्टि: शुभायेति कमलासन भाषितम्।।
अर्थात, यदि दिन की भद्रा रात में प्रारंभ हुई हो, अथवा रात की भद्रा दिन में प्रारंभ हुई हो, तो वह दोषकारक नहीं होती, बल्कि शुभ फलदायिनी होती है, जैसे कि कमल पर स्थित देवी की कृपा से आनंद की अनुभूति होती है।
लल्लाचार्य शु शु प्र चिंतामणि टीका, गोविंदाचार्य रत्नमाला टीका
मकरेस्थ भद्रा पाताले भूम्यां धनापगामिनी …
अर्थात, मकर राशि में स्थित भद्रा पाताल में होती है, जिससे वह पृथ्वी पर धनदायक मानी जाती है। इसका उल्लेख दैवज्ञ गणपति – करण प्रकरण में भी मिलता है।
भद्रा दोष निवारण उपाय
“छाया सूर्य सुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनी ।
पूजितासि यथाशक्त्या भदे भद्रप्रदा भव ॥”
भद्रा को शुभ बनाने हेतु उपाय
भद्रा को शुभ बनाने के लिए इन 12 नामों का उच्चारण करते हुए उसकी प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही, शिव-शंकर और विष्णु के नामस्मरण एवं प्रार्थना करने से भद्रा दोष नहीं लगता।
धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना।
कालरात्रिः, महारुद्राः, विष्टिः, कुलपुत्रिका।।
भैरवी च महाकाली, असुराणां क्षयंकरी।
द्वादशैव तु नामानि, प्रातरुत्थाय यः पठेत्।।
विष्टि अर्थात भद्रा एक करण का नाम है।
यह चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा, कृष्ण तृतीया, कृष्ण सप्तमी, कृष्ण दशमी, कृष्ण चतुर्दशी के दिन होती है।
वार के अनुसार इसके नाम बदलते हैं: