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अनंत चतुर्दशी और गणेश विसर्जन की हार्दिक शुभकामनाए

इस दिन भगवान विष्णु शेषनाग, यमुना नदी की पूजा की जाती है. भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है. गणेश चतुर्थी से आरंभ हुआ गणेश उत्सव इस दिन समाप्त होता है. लोग गणपति विर्सजन करते हैं.

व्रत विधि

ध्यान रहे कि अनंत की डोरी अगर महिला बांध रही है तो वह बाएं हाथ पर बांधे और पुरुषों को अपने दाएं हाथ पर अनंत की डोरी बांधनी चाहिए.

  1. प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत करने का संकल्प लें.
  2. अनंत चतुर्दशी का पूजन यमुना नदी या किसी जलाशय के किनारे किया जाता है. लेकिन यदि आसपास कोई नदी नहीं है तो घर में एक कलश में जल भर कर उसे यमुना नदी मानकर उसकी पूजा की जा सकती है.
  3. पूजा के स्थान पर कलश में यमुना स्वरूपी जल भर कर स्थापित करें.

4. इसके बाद शेष नाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की कोई फोटो या मूर्तस्थापित करें.

  1. इसके बाद एक सूत्र लें और उसमें 14 गांठें लगा दें.
  2. इसके बाद ॐ अनंताय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा करें. पूजा करने

के बाद अनंत सूत्र का मंत्र पढ़कर पुरुष अपने दाहिने हाथ पर और स्त्री बाएं हाथ पर बांध लें.

  1. अनंत व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
  2. पूजन के बाद ब्राह्मण या जरूरतमंदों को भोजन कराएं और परिवार में प्रसाद बांटें.

 

अनंत सूत्र का मंत्र

 

अनंत सागर महासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव ।

 

अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते ॥

 

अनन्त चतुर्दशी  विशेष

 

व्रत की महिमा

 

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है।

 

इस दिन भगवान विष्णु की कथा, पूजा के लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए। पूर्णिमा का सहयोग होने से इसका बल बढ़ जाता है। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

 

जैसा इस व्रत के नाम से प्रतीत होता है कि यह दिन उस अंत न होने वाले सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु की भक्ति का दिन है।

 

यूं तो यह व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिए और हरि की लोककथाएं सुननी चाहिए। लेकिन संभव ना होने पर घर में ही स्थापित मंदिर के सामने हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है- ‘हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनंत के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है।’

 

कैसे करें पूजा

 

प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें। कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है। इसके आगे कुंकूम, केसर या हल्दी से रंग कर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला ‘अनंत’ भी रखा जाता है। कुश के अनंत की वंदना करके, उसमें भगवान विष्णु का आह्वान तथा ध्यान करके गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें।

 

इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे (14 गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है) लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता है। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँधते हैं। पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत बाँधती है। यह अनंत हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देता है। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता है। इस दिन नये धागे के अनंत को धारण कर पुराने धागे के अनंत का विसर्जन किया जाता है ।

 

 

 

 

 

अनंत चर्तुदशी पूजा

 

 चतुर्दशी तिथि  में राहुकाल को छोड़कर किसी भी समय पूजन किया जा सकता है।

 

 

पूजन सामग्री

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  • शेषनाग पर लेटे हुए श्री हरि की मूर्ति अथवा तस्वीर
  • आसन (कम्बल)
  • धूप – एक पैकेट
  • पुष्पों की माला – चार
  • फल – सामर्थ्यानुसार
  • पुष्प (14 प्रकार के)
  • अंग वस्त्र –एक
  • नैवैद्य(मालपुआ )
  • मिष्ठा्न – सामर्थ्यानुसार
  • अनंत सूत्र (14 गाँठों वाले ) – नये
  • अनंत सूत्र (14 गाँठों वाले ) – पुराने
  • यज्ञोपवीत (जनेऊ) – एक जोड़ा
  • वस्त्र
  • पत्ते – 14 प्रकार के वृक्षों का
  • कलश (मिट्टी का)- एक
  • कलश पात्र (मिट्टी का)- एक
  • दूर्बा
  • चावल – 250 ग्राम
  • कपूर- एक पैकेट
  • तुलसी दल
  • पान- पाँच
  • सुपारी- पाँच
  • लौंग – एक पैकेट
  • इलायची – एक पैकेट
  • पंचामृत (दूध,दही,घी,शहद,शक्कर)
 
अनंत चतुर्दशी व्रत पूजन विधि प्रारम्भ

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पुराणों मे इस व्रत को करने का विधान नदी या सरोवर पर उत्तम माना गया है। परंतु आज के आधुनिक युग में यह सम्भव नहीं है। अत: घर में ही पूजा स्थान पर शुद्धिकरण करके अनंत भगवान की पूजा करें तथा कथा सुने। साधक प्रात: काल स्नानादि कर नित्यकर्मों से निवृत हो जायें। सभी सामग्री को एकत्रित कर लें तथा पूजा स्थान को पवित्र कर लें। पत्नी सहित आसन पर बैठ जायें। पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांतअनन्तसूत्रको मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें।

 

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।

 

अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥

 

अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें। कथा का सार-संक्षेप यह है-

 

सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

 

 

 

पवित्रीकरण

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अब दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न पवित्रीकरण मंत्र का उच्चारण करें और सभी सामग्री , उपस्थित जन- समूह पर उस जल का छिंटा दें कर सभी को पवित्र कर लें ।

 

पवित्रीकरण मंत्र 

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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्व अवस्थांगत: अपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्य अभ्यन्तर: शुचिः॥

आचमन

दाएँ हाथ में जल लें निम्न आचमन मंत्र के द्वारा तीन बार आचमन करें

“ॐ केशवाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।

“ॐ नारायणाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।

“ॐ वासुदेवाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।

तत्पश्चात“ॐ हृषिकेशाय नमः” कहते हुए दाएँ हाथ के अंगूठे के मूल से होंठों को दो बार पोंछकर हाथों को धो लें।

 

पवित्री धारण

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तत्पश्चात् निम्न मंत्र के द्वारा कुश निर्मित पवित्री धारण करे –

 

पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।

 

तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।

 

स्वस्तिवाचन –

 

हाथ में अक्षत तथा पुष्प लें और निम्न मंत्रों को बोलते हुए थोड़ा –थोड़ा पुष्प भूमि पर छोड़ते जायें ।

 

ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम : । ॐ केशवाय नम : । ॐ नारायणणाय नम : । ॐ माधवाय नम : । ॐ गोविंदाय नम : । ॐ विष्णवे नम : । ॐ मधुसूदनाय नम : । ॐ त्रिविक्रमाय नम : । ॐ वामनाय नम : । ॐ श्रीराधाय नम : । ॐ ह्रषीकेशाय नम : । ॐ पद्मनाभाय नम : । ॐ दामोदराय नम : । ॐ संकर्षणाय नम : । ॐ वासुदेवाय नम : । ॐ प्रद्युम्नाय नम : । ॐ अनिरुद्धाय नम : । ॐ पुरुषोत्तमाय नम : । ॐ अधोक्षजाय नम : । ॐ नरसिंहाय नम : । ॐ अच्युताय नम : । ॐ जनार्दनाय नम : । ॐ उपेंद्राय नम : । ॐ हरये नम : । ॐ श्रीकृष्णाय नम : । ॐ श्रीलक्ष्मीनारायणाभ्यां नम : । ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम : । शचीपुरन्दराभ्यां नम : । मातृपितृभ्यां नम : । इष्टदेवताभ्यो नम : । ग्रामदेवताभ्यो नम : । स्थानदेवताभ्यो नम : । वास्तुदेवताभ्यो नम : । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम : । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम : ।

 

संकल्प : –

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हाथ मे अक्ष्त ,पान का पत्ता ,सुपारी तथा सामर्थ्यानुसार सिक्के लेकर संकल्प मंत्र उच्चारित करते हुए संकल्प करें –

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्यॐ विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्द्धे विष्नुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे, कलिप्रथमचरणे भूर्लोके जम्बुद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे अमुकक्षेत्रे (अपने नगर तथा क्षेत्र का नाम लें) बौद्धावतारे अमुकनाम संवत्सरे श्रीसुर्ये अमुकयाने अमुक ऋतो ( ऋतु का नाम लें ) महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे भाद्र मासे शुक्ल पक्षे चतुर्दशी तिथौ अमुक वासरे ( वार का नाम लें ) अमुक नक्षत्रे ( नक्षत्र का नाम लें ) अमुक योगे अमुक-करणे अमुकराशिस्थिते चंद्रे ( जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो,उसका नाम लें ) अमुकराशिस्थिते श्रीसुर्ये (जिस राशि में सुर्य स्थित हो,उसका नाम लें ) देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथा- राशिस्थान-स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह-गुणग़ण-विशेषण- विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुक गोत्र (अपने गोत्र का नाम लें ) अमुकनाम ( अपना नाम ले ) ऽहं मम सकुटुम्बस्य क्षेमैश्वर्यायुरारोग्यचतुर्विधपुरुषार्थसिद्ध्यर्थं मया आचरितं वा आचार्यमाणस्य व्रतस्य सम्पूर्णफलावाप्त्यर्थं श्रीमदनन्तपूजनमहंकरिष्ये। श्रीमदनन्तव्रतांगत्वेन गणेशपूजनं ,यमुनापूजनादिकं च करिष्ये।

फिर कथा कहें ।।

 

व्रत कथा

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एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें  ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।

 

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया l

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