दो तथ्य हैं जो हम सभी को जानने चाहिए। पहली बात तो यह कि जब कश्मीरी मुसलमान और उनके नेता कहते हैं कि निर्दोष लोगों की हत्या करना कश्मीरियत की परंपरा में नहीं है और हम आपातकाल के समय पर्यटकों को अपने घरों में रखते हैं, तो यह सही नहीं है। कश्मीर के मुसलमानों को कश्मीर में सिखों और हिंदुओं के नरसंहार को लागू करने की रिवायत है, तब कश्मीरियत कहाँ थी?फिलहाल वे साधारण नाटक कर रहे हैं ताकि पर्यटन व्यवसाय में नुकसान न हो।सभी मुसलमान मगरमच्छ के आंसू बहाते हैं और अपनी धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं। वे क्रूर हैं और उनका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान और चीन के आशीर्वाद से कश्मीर को भारत से आजाद कराना है, जिसे मोदी सरकार कभी पूरा नहीं होने देगी।समय आ गया है कि इन मुस्लिम आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, मोदी सरकार इसमें सक्षम है और मानवाधिकारों को भूल जाओ क्योंकि युद्ध के खेल में सब कुछ जायज है। भारत माता की जय, वंदे मातरम्, जय श्री राम
पहलगाम इस्लामिक नरसंहार दस मिनट – 20 मिनिट !!!!!!!!
एक भी घोड़े वाले ने, एक भी दुकानदार ने, एक भी गुब्बारे वाले ने, एक भी शिलाजीत बेचने वाले ने, एक भी शाल बेचने वाले ने, एक भी ड्राई फ्रूट्स बेचने वाले ने गोली मारते हुए वीडियो नहीं बनाया ताकि उनको पहचाना नहीं जा सके ? सोचिए!!!!
असल में 100% मुसलमान कैसा होता है.? आप जानो !
किसी ने भी वीडियो नहीं बना कर आतंकियों को सपोर्ट किया है
आप को क्या ? कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंस कर आप जाति जाति खेलो
जेहादी / जिहादी शैतान, शायद आज तुम्हारी उपजाति, जाति या धर्म-धम्म देखकर तुम्हें ज़िंदा छोड़ दें… परंतु कल वे तुम्हें निश्चित रूप से मार ही डालेंगे… क्योंकि उनके लिए सिर्फ दो ही वर्ग हैं – जेहादी (जिहादी) और गैर-जेहादी।
तुम चाहे जैन, मूल बौद्ध, सिख, पारसी, यहूदी या कोई भी हो, अगर तुम गैर-जेहादी हो तो उनके लिए तुम “काफिर” हो। और काफिर का मतलब है – अशुद्ध।
आज पहलगाम में एक महिला के पति को उसके सामने गोलियों से भून दिया गया। उससे पहले आतंकियों ने पूछा – “क्या तुम मुस्लिम हो?”
जवाब मिला – “नहीं”, और तुरंत गोलियां चला दी गईं।
उस जिहादी मुस्लिम आतंकी ने उसकी जाति, उपजाति या धर्म नहीं देखा। उसे बस इतना जानना था कि वह मुस्लिम नहीं है – इसलिए “काफिर” है और मार दिया गया।
जो लोग जातिवाद और आपसी द्वेष में अंधे हो गए हैं, उन्हें अब भी समझ नहीं आई है।
तुम चाहे किसी भी जाति के क्यों न हो, उनके लिए तुम सिर्फ एक “काफिर” हो, और यही तुम्हें मारने के लिए काफी है।
अब भी समय है –
जात-पात भूलो, और हिंदू बनकर एक हो जाओ।
यह एक भावनात्मक निवेदन है।
उसका सिर थोड़ा झुका हुआ था…
आंखें सुन्न… आंसुओं को रोकने की भी कोशिश नहीं…
जैसे उसके दिल को किसी ने गहराई से चीर दिया हो…
यह दृश्य देखकर दिल चकनाचूर हो गया।
वह कुछ बोल नहीं रही थी… लेकिन उसका मौन इतना कुछ कह रहा था जितना शायद कभी नहीं सुना था।
उस मौन में… खोए हुए पति की हँसी की गूंज थी,
साथ में ली गईं आखिरी तस्वीरों की यादें,
और ‘हम दोनों छुट्टियों पर आए हैं’ जैसा मासूम सपना –
सब कुछ उस पल में समय के गर्त में समा गया था।
उस खून के तालाब में उसका पूरा संसार बिखर गया था…
वह केवल उसका पति नहीं था –
वह उसका सहारा था,
उसकी बाहों में वह एक पूरी दुनिया बसाई थी।
अब वह निष्प्राण पड़ा था… और वह –
अकेले जीवित रहकर भी मृत्यु को सहने वाली!
यह देखकर शब्द भी गुम हो गए,
आंसू तो आए ही, लेकिन उससे भी आगे बढ़कर, एक गहरी वेदना दिल में उतर गई।
यह दुख सिर्फ उसका नहीं था –
यह इंसानियत का था, प्रेम का था, विश्वास का था…
वह बैठी थी… लेकिन उसे उठाना असंभव था…
क्योंकि वह अब सिर्फ शरीर से थी –
मन से, दिल से, आत्मा से – वह उसी मृत्यु में विलीन हो चुकी थी।
यह दृश्य केवल देखने का नहीं था –
इसे आत्मा से महसूस करना था…
शब्द असहाय हो गए… और मन शून्य।
उस नजर में, उस दर्द में,
एक समाप्त हुआ जीवन और एक कभी न खत्म होने वाला शोक हमेशा के लिए刻 गया।
उन बहनों को, उन आंसुओं को और उस वेदना को
मन की गहराई से सौ-सौ बार नतमस्तक श्रद्धांजलि…”**