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(Anacardium)भल्लाक भिलावा इक औषधी परिचय

-केवल वैद्यकीय  सलाह से ले- बिना अनुभव प्रयोग न करें| यह जानकारी केवल औषधी ज्ञान के लिये है,

 

आम्रकुल (एनाकार्डिएसी) की वनौषधि है। इस कुल में आम, भल्लातक, कर्कटंगी तिन्तिडीक, पिस्ता, प्रियाल एवं रूमीमस्तंगी है।

संस्कृत- भल्लातक-भाले के समान तीक्ष्ण गुण अरुष्कर-स्पर्श से व्रण उत्पन्न करने वाला अग्निक अग्नि के समान उष्णवीर्य शोफक्त-स्पर्श या धूम से शोथ उत्पन्न करने वाला|

 

अग्निमुख- फल का भोग आग के समान लाल रंगका होने से।

 

हिन्दी – भिलावा

 

गुज०-मिलामो

 

मराठी-चिम्बा (गिरीको गोही)

 

बंगला-भेला

कन्नड़-बिलाचा जरकाशी

 

तामिल-सेनकोटटुई

 

तेलगु फिदिविटदल

 

अरबी-हब्बुलकल्व (हृदयाकृति फल)

 

फारसी-बलादुर, भिलादर

 

अंग्रेजी मार्किंग नट (Marking Nut)

 

धोबीज नट (Dhobis Nul)

 

धोबी इसके फल से कपड़ों पर निशान लगाते हैं अतः इसे अंग्रेजी में मार्किंग नेट (निशान लगाने की गुठली या धोबीज नट कहते हैं। भल्लातक के वृक्ष को मार्किंग नट ट्री या फायरफेस ट्री कहते हैं।

नानोपद्रव शान्त्यर्थं फलं भल्लातकोद्भवम् ।

 

शोधयेद् भिषजां वर्यः सावधानतया सदा ।। शोधन से पूर्व शोधन करने वाले व्यक्ति को हाथों पर, मुख पर अच्छी तरह नारियल का तेल लगा लेना चाहिये। यदि भिलावे का रस या भिलावा शोधन करते समय की धुआ शरीर के किसी स्थान पर लग गया तो वहां पर भयंकर दाह और व्रण हो जाता है। यदि वह मुख पर लग जाये तो तीव्र दाहयुक्त शोथ उत्पन्न हो जाता है। अतः वैद्य को उक्त उपद्रवों से बचने के लिए भिलावे के फलों को बड़ी सावधानी से शुद्ध करना चाहिए। शोधन प्रकार-

  1. भिलावा फलों की टोपी को चाकू से काटकर एक कपड़े की दृढ़ पोटली अथवा थैली में भिलावे को और इंट का बारीक चूर्ण भरकर उनको हाथों के सहारे मध् यम दबाव से रगड़ें। जब ईंट का चूर्ण तेल से तर हो जाय अर्थात् जब भिलावों की त्वचा निकल जाय तो इनको गरमपानी में डालकर अच्छी तरह धोकर साफ कर इस विधि से मिलावे शुद्ध हो जाते हैं।

भिलावा सेवन : कुछ सावधानियां-

 

  1. भल्लातक एक अति उष्णवीर्य द्रव्य है अतः इसका सेवन ग्रीष्म ऋतु में नहीं करना चाहिए। छोटे वालक, वृद्ध एवं सगर्भा स्त्री को इसका सेवन उपयुक्त नहीं है। पित्त प्रकृतिक व्यक्ति को यह नहीं देना चाहिए। इसके अतिरिक्त जिनके मुख में छाले रहते हों, तृषा अधिक लगती हो, नींद कम आती हो, स्वेद अधिक आता हो. दाह और घबराहट रहती हों, वृक्क शोध हो उनको भिलावा न दें।

 

  1. भिलावा सेवन से पूर्व विरेचन देकर उदर शुद्धि कर लेनी चाहिए। यदि उपयुक्त समझा जाय तो उपवास किंवा मांसवर्धक लघु आहार देना चाहिए।

 

  1. भिलावा सेवन से पूर्व मूत्र की जांच करवा लेनी चाहिए अथवा मूत्र परिमाण की पूर्ण जानकारी कर लेनी चाहिए। सेवन काल में भी मूत्र के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए। यदि मूत्र परिमाण विशेष कम होने लगे या मूत्र रक्तवर्ण का आने लगे तो दर्पहर औषधियों का सेवन कराना चाहिए। आत्ययिक स्थिति में सेवन बन्द कर देना चाहिए।

 

  1. भिलावा की मात्रा प्रारम्भ में कम देनी चाहिए फिर उसका परिणाम देखकर मात्रा न्यूनाधिक की जा सकती. है।

 

5 भिलावा सेवन काल में घी, दूध, दही, तैल, शक्कर, चावल, गेहूं आदि का भोजन हितावह है। इनमें तैल अधिक हितकर है। नमक नहीं देवें या स्वल्पमात्रा में सैन्धव देवें। मिर्च भी कम देवें ।

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