किसी ने कहा है जिंदगी एक रंगमंच है…
लेकिन मुझे लगता है कि जिंदगी एक खेल है. इस खेल में हार-जीत, सुख-दुख, आशा-निराशा, प्रलोभन-स्वार्थ-त्याग-नफरत, जिद, उपेक्षा, जुनून, लालसा… किताब में लिखी ये सभी भावनाएँ हर खेल में अनुभव होती हैं। जीवन इससे भिन्न क्या है?
लेकिन खेल का एक नियम है, हमें अपनी टीम/परिवार के सदस्य को परेशान नहीं करना चाहिए, हारना नहीं चाहिए…चाहे क्रिकेट हो या कबड्डी…!!
दुर्भाग्य से जीवन के खेल में इस नियम का पालन नहीं किया जाता…!
अक्सर अपने ही लोग, अपने ही आदमी की टांग खींचकर उसे अखाड़े से बाहर कर देते हैं, हमेशा के लिए बाहर… !
जिन लोगों को ऐसे ही बाहर कर दिया जाता है, उन लोगों की कुछ गलतियाँ हो सकती हैं, माना… लेकिन जिस पेज पर गलती हो, उस पेज को फाड़ दो? या पूरी किताब फाड़ दो…???
ग़लतियाँ करना स्वभाव है… ग़लतियाँ स्वीकार करना संस्कृति है… और ग़लतियाँ सुधारना प्रगति है…!
लेकिन किसी गलती के लिए किसी को हमेशा के लिए बाहर कर देना एक विकृति है…!
एक बार ये लोग जिंदगी से बाहर हो जाएं… एक बार बाहर निकल जाएं तो जल्दी ठीक नहीं होते….
सही बात है, अगर तोड़ने वाले अपने हो तो संभलने में वक्त लगता है..!!!
फिर भी…
ऐसा लगता है जैसे गर्मी बहुत लंबी हो गई है…
यहां तक कि घर में पंखे के नीचे भी, मैं धूप में पक्की सड़क पर, नाली के पास या जो भी जगह मिलती, बैठ जाता था। (लोग मुझे अपने घरों या दुकानों या अन्य अच्छी जगहों के सामने बैठने नहीं देते, वे नहीं चाहते कि ये गंदे लोग हमारे सामने हों)
तो…. सड़क पर बैठे तो नीचे से चपत और ऊपर से चपत…!!!
भले ही मैं पूरे दिन सड़क पर तेज धूप में 150 किलो बैग ले जाता हूं, लेकिन मुझे गर्मी का दर्द महसूस नहीं होता….
चिलचिलाती धूप में, जब मैं बैठा होता हूं, तो दो-तीन भिखारी मेरे पीछे खड़े हो जाते हैं… पीछे क्यों खड़े हो? चलो ऐसे ही… मैं उन्हें डांटूं तो भी वे मेरी बात नहीं सुनते…. दो घंटे बाद मैं अपना काम खत्म करता हूं… मैं बैग को ढकने के लिए ले जाता हूं और फिर वे आते हैं… जब वे आते हैं तो मैं सूरज की गर्मी महसूस होने लगती है… मैं झिड़ककर फिर पूछता हूं… मेरे पीछे पागलों की तरह क्या भाग रहा था? फिर उनमें से एक कहता है, “डॉक्टर, सूरज की लय आपकी पकड़ में आ रही है… हमने हमेशा आप पर छाया रखी है…!!!”
दो घंटे धूप में अकेले खड़े रहने के बाद, उसने मुझ पर छाया रखी… भरी धूप में भी, तो आँखों में बाढ़ आ जाती है..!
केवल एक पिता ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो कठिनाइयों का खामियाजा स्वयं सहन करता है…
ये प्यार करने वाले लोग, पिता बनकर, मेरी राह में पेड़ बन जाते हैं… मेरे सिर पर छाया रखते हैं… फिर मेरे जैसे पथिक को गर्मी की क्या ज़रूरत होगी?
मुझे गर्मी का एहसास नहीं होता…. कौन कहता है कि गर्मी खत्म हो गई है…?
गर्मी के दिनों में जब मैं सड़क पर बैठता हूं तो मेरी दादी, नानी, मौसी मेरे सिर पर कपड़ा रख देती हैं, कोई गत्ते का डिब्बा लेकर आता है और किनारे बैठकर हवा चलाता है… बीच में कोई कपड़े से पसीना पोंछता है ….और बीच में कोई ठंडे पानी की बोतल लेकर आता है…. ..भीख से मिले पैसों से कोई छाछ खरीदता है….कोई लस्सी खरीदता है….कोई गन्ने का रस खरीदता है….
प्रेम और स्नेह के ऐसे शीतल वातावरण में बैठा हूं कि गर्मी का अहसास ही नहीं होता…
गर्मी की हर लहर मेरे लिए ठंडी हवा बन जाती है… मुझे अब गर्मी का एहसास नहीं होता… कौन कहता है कि गर्मी बढ़ गई है…?
मैं साधारण भिखारियों का डॉक्टर हूं, लेकिन जब मैं उनके पास जाता हूं तो वे मुझे किसी देश के राजा जैसा महसूस कराते हैं…
कुछ ही घंटों में उन्होंने मुझे दुनिया का सबसे अमीर आदमी बना दिया… हर दिन – हर दिन और हर रोज…!
आपके सहयोग से ही दूसरों को धनवान बनाने वाले, जीवन के खेल से स्थायी रूप से बाहर हो जाने वाले और मैदान से बाहर बैठने वालों के घाव हरे हो रहे हैं और इसलिए इस महीने का लेखा-जोखा आपके लिए लाया गया है!
*(हमारे काम का मूल केवल चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करना नहीं है, बल्कि चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करते समय उनका विश्वास हासिल करना, उनके साथ अच्छे संबंध बनाना, भीख माँगने का कारण ढूंढना, उनमें खामियाँ निकालना और उन्हें व्यवसाय करने और व्यवसाय छोड़ने के लिए प्रेरित करना) जिससे वे डरते हैं.. .. ताकि वे भिखारी न बनें, बल्कि ग्रामीण बनकर मेहनत करके सम्मान के साथ जी सकें… दुनिया में कोई भी असहाय न हो, कोई भिखारी न हो, यही है हमारे काम का सार.
हां, चिकित्सा देखभाल प्रदान करना ही उनके दिलों तक पहुंचने का एकमात्र तरीका है)*
भिखारी से मजदूर और मजदूर से ग्रामीण
पुणे आ गए… ये तीनों पीढ़ियां सतारा रोड पर एक मंदिर के बाहर भीख मांगने लगीं…
ताई उग्र तो हैं लेकिन उससे भी ज्यादा संवेदनशील…
मैं मिला और अपने आप भाई-बहन का रिश्ता बन गया…
बाद में उसने अपने रिश्ते का उपयोग सड़क पर कुछ आस्तीन बेचने के लिए किया…. वह इसे ईमानदारी से कर रही थी…!
उसकी माँ पूरी तरह बहरी है… ताई का बारह साल का बेटा मानसिक रूप से विक्षिप्त है
ये दादी मुझे दद्या कहकर बुलाती हैं… शायद वो मुझे अपनी बेटी का बड़ा भाई समझती हैं…! कई बार ये हक का भी दुरुपयोग करता है…
तो ये बहरी दादी मेरे सिर पर छाता लेकर घंटों खड़ी रहती हैं….
मैं उससे प्यार से कहता हूं, ‘, बैठ जाओ, अब थक गए होगे…’
लेकिन वह सुनती है, ‘बहरे, अब मर जाओ और तुम थक जाओगे…’ मैं क्यों मरूं… मैं क्यों मरूं? इतना कहकर उसके बाद वह छाता लेकर मुझे मारने के लिए मेरे पीछे चली जाती है…!
ऐसे तमाम चुटकुले… जो सुनना चाहिए वो नहीं सुनाई देता….
अब यह महिला इस बड़े मंदिर के बाहर सुरक्षा गार्ड की नौकरी करती है।
मैंने उसे बहुत ही घृणित, नीच अवतार में देखा था… अब जब मैं उसे रुबाबदार की वर्दी में देखता हूं, तो मैं क्या सोचता हूं…? मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता…!
एक दिन बुढ़िया आई और मेरे कान में चिल्लाई, ‘ अब मैं मरने के लिए स्वतंत्र हूं…’
मैंने भी उसी प्यार से उसके कान में चिल्लाकर कहा, ‘, इतनी जल्दी मत मरो…’
अधिकतर उसने सुना होगा ” मुझे मत मारो”। .!
यह कहते हुए वह मौली आंसुओं से मेरे हाथों का अभिषेक करती है… मैं उसके कानों में चिल्लाता हूं, ‘चिंता मत करो, मैंने उसे अपनी बहन मान लिया है… मैं उसका हाथ कभी नहीं छोड़ूंगा.. तुम्हारी कसम…’
लेकिन पूरा वाक्य तो बहरी बुढ़िया सुन लेती है…आखिर वो माँ ही तो है….!
क्या तुम भयानी का हाथ नहीं छोड़ोगे…? भयानी का हाथ नहीं छोड़ेंगे…?? वह मेरी पीठ पर अपना हाथ घुमाते हुए 10 बार मेरा स्वागत करती है… मुझे उसके चेहरे में अपना चेहरा दिखाई देता है… मुझे उसकी आँखों में एक गाय दिखाई देती है…!
चिकित्सा
इससे उबरने के बाद हम ऐसे लोगों को उनके पैतृक गांव वापस भेजते हैं।’ आप जाने की लागत का भुगतान करते हैं, साथ ही शुरुआत में वहां रहने और व्यवसाय शुरू करने की लागत का भी भुगतान करते हैं….आपका मतलब “आप” से है…मैं नहीं….!!!
तुम करो…. मैं तो बस “संगकाम्या”…!!!
एक से ली हुई बात को दूसरे तक पहुँचाने के लिए कौन सी बुद्धि की आवश्यकता होती है….???
एक विकलांग दादी….जिनके पति विकलांग थे और हाल ही में उनका निधन हो गया, दादी ने उनकी याद में मुझे अपने पिता की व्हील चेयर दी…
दादी की इस भावना को समझते हुए हमने उनसे व्हीलचेयर ले ली और बाकी सभी लोगों से विनम्रतापूर्वक कहा कि अगर हमें दोबारा जरूरत पड़ी तो हम आपसे यह ले लेंगे…
समाज के दानवीर को तो मैं क्या कह सकता हूँ?
हम हर बार समाज के चरणों में सिर झुकाते हैं….पर फिर भी कम है…!
शिक्षात्मक
हमने भीख मांगने वाले माता-पिता के 52 बच्चों की शैक्षिक संरक्षकता ली है।
मुझे यह कहते हुए ख़ुशी हो रही है कि हम सबके सहयोग से, हमने जिन बच्चों को अभिभावक के रूप में गोद लिया है, वे सभी इस वर्ष उत्कृष्ट अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए हैं…
मेरी एक बेटी को 9वीं में 92% अंक मिले….अगर मैं 1 से 10वीं तक अपने अंकों का योग करूँ तो भी उसे 92 नहीं मिले….!
(आप इसे परिवार के सदस्य के रूप में कह रहे हैं, बाहर किसी को मत बताना…. बिल्कुल, मेरी किताब में, यह सब घोषित है….)
वैसे भी, मैंने अपने जीवन और अनुभवों पर जो किताब लिखी है, उसकी बिक्री से इन सभी बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया जा रहा है….!
हम इन सभी बच्चों की फीस जितना भर सकते हैं, भर रहे हैं।’
आप में से कई मंडलियां मुझसे मेरी किताब खरीद रही हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा में मदद करना है;
आपको प्रणाम है…!
भिखारियों को भीख दो? या मदद? भीख माँगने और मदद करने में क्या अंतर है? उनसे कैसे निपटें? बिस्किट, पानी, खाना क्यों नहीं देते? क्या वे सचमुच जरूरतमंद हैं या भीख मांगना ही व्यवसाय है…? हम जरूरतमंद और पेशेवर भिखारियों की पहचान कैसे करें? इसके बारे में मैंने अपनी किताब में विस्तार से लिखा है.
मैं इस संदेश को दूर-दूर तक फैलाने के लिए पुस्तकालयों में निःशुल्क पुस्तकें दे रहा हूँ….!
यदि आपकी जानकारी में किसी पुस्तकालय को यह पुस्तक चाहिए तो मुझे बताएं, मैं इसे निःशुल्क भेजने के लिए तैयार हूं…!
अन्नपूर्णा
हम सड़कों पर रहने वाले माता-पिता, भाई-बहनों या अस्पताल में भर्ती कम से कम 200 जरूरतमंद और गरीब लोगों को भोजन के डिब्बे दे रहे हैं। (हमें नहीं लगता कि वह बॉक्स के रूप में सड़क पर नजर आएंगे)
इन कूड़ेदानों को तैयार करने का काम हमने एक दिव्यांग परिवार को दिया है
यह हमारी जीत की स्थिति है
यहां एक परिवार को आय मिली, जीवनयापन के लिए सहायता मिली और वहां भूखे लोगों को भोजन मिला।
पिछले पंद्रह दिन पहले मेरी मुलाकात एक दादी से हुई…. वह मेरा हाथ पकड़कर बैठ गईं और बोलीं मेरे साथ खाओ…. बढ़िया रोटी, ऊपर से हरी मिर्च और ऊपर से लाल अचार… साथ में ठंडा पानी…!
खाकर तृप्ति हुई…. उसके बाद उसने मुझे चकला खिलाया जो किसी ने उससे माँगा था….
अन्नपूर्णा से साक्षात् मिला… मैंने उन्हें प्रणाम किया…
हर दिन ऐसी अन्नपूर्णाएं मुझे दरिद्र नारायण के रूप में मिलती हैं… और हर दिन मैं संतुष्ट होता हूं…
सामुदायिक स्वच्छता दल!
बिना व्यवसाय या नौकरी कौशल वाली वयस्क/बूढ़ी महिलाओं का एक समूह बनाकर, उनसे पुणे के गंदे इलाकों को साफ कराना, बदले में उन्हें वेतन या किराने का सामान देना।
इस माह में भी खराटा पलटन के माध्यम से कई स्थानों पर सफाई करायी गयी है और बदले में टीम के सभी लोगों को पन्द्रह दिनों के लिए पर्याप्त सूखा राशन दिया गया है.
मन में कुछ
नशेड़ियों के लिए, क्या धन जुटाने के लिए कबाड़ बेचना एक संयोग है? या हमें श्री मराठे द्वारा अपने पुत्र का किया गया संस्कार कहना चाहिए?? या ये कहें कि इतना छोटा लड़का अब बड़ा हो गया है…???
इसके लिए पुनेरी चुटकुले बोर्ड बनाए गए हैं। हम इसे अपने भिखारियों के गले में लटकाने जा रहे हैं…
ये लोग समाज को मेरी मजाकिया, पुनेरी सलाह देंगे कि प्लास्टिक बैग का उपयोग न करें, कपड़े के बैग का उपयोग करें।
इसके साथ ही जिनके पास सिलाई मशीन है उन सभी को नई सिलाई मशीनें दी गई हैं। हम ऐसे लोगों से थैले सिलवाएंगे जो भीख मांगते थे.
हम उन सभी लोगों को भुगतान करने जा रहे हैं जो हमारे द्वारा प्रदान की गई धनराशि से कपड़े के थैले सिलेंगे या बेचेंगे।
स्वार्थ से परोपकार…!!!
जो लोग बैग सिलेंगे उन्हें उस दिन का भुगतान मिलेगा, जो लोग बैग बेचेंगे उन्हें भी उस दिन का भुगतान मिलेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन निश्चित रूप से प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग कम हो जाएगा और उनके हाथों में कपड़े के थैले होंगे। …
तथाकथित भिखारी समाज को बताएंगे कि प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग न करें…. कपड़े की थैलियां फैलाएंगे…. अगली पीढ़ी को बचाने का प्रयास करेंगे यह दुनिया में हमारा पहला प्रोजेक्ट होगा…!
पिछले हफ्ते एक लड़की से मुलाकात हुई, पास आकर शर्माते हुए बोली, सर, मेरी शादी तय हो गई है…. पोर्गा, हाय आपकी बारी… इतना कहते ही पोर्गा आगे आ गई |
लड़की बोली, ‘सर सोलापुर हमारे पैतृक गांव में शादी है, मुझे पता है आप इतने दिनों तक नहीं आएंगे, इसलिए यहां आ गई हूं…’
उसके बाद उसने मुझे सचमुच तौलिए, टोपी और पैंट दिया | आज मुझे पता चला कि ऐसे अहेर को “भर अहेर” क्यों कहा जाना चाहिए।
मैं बहुत खुश था… लेकिन मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उनसे कहा कि ये फिजूलखर्ची क्यों करते हो….?
इस पर वह उनके पैरों में गिरकर रोते हुए बोली, ‘सर, आप हैं, मेरे कोई पिता नहीं है, मेरे पास आप ही पिता हैं…!
यार, बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, बाप को पता नहीं चलता…!
लेख बहुत लंबा है…!
मुझे क्या करना चाहिए? जब बेटी ससुर के पास से घर आये तो माता-पिता को क्या कहना चाहिए और क्या नहीं? ऐसा होता है…
आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ…!
आप मेरी माँ और पिता हैं…