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आँगन में एक बहुत पुराना सहजन (शेवगा) बारिश के कारण गिर गया

आँगन में एक बहुत पुराना सहजन (शेवगा) बारिश के कारण गिर गया, ऐसा आज या कल होना ही था, आज हो गया, बारिश के बाद से हर सुबह वह खिड़की से सबसे पहले सहजन  (शेवगा) को देखती थी, वह कहता था कि वह वहीं है या वह काम पर जाती थी, भले ही वह बारिश में सब कुछ भगवान पर छोड़ देती थी, जब से वह इस घर में आई थी, हर गर्मियों में वह उसे देखती थी। संरक्षित,

यहाँ गर्मी इतनी भयानक हो सकती है कि ज़मीन दरकने लगती है, उन पेड़ों का क्या, जहाँ लोग हुआ करते थे।

जब मुझे दस कलश लाने के लिए चक्कर लगाने पड़ते थे तो परिवार के लोगों का गला भीग जाता थाशरीर को भिगोने के लिए आंगन का कपड़ा काम आएगा, बाल्टी अंदर छोड़ दो तो इतनी मेहनत होगी कि रोंगटे खड़े हो जाएंगे। पति की शिकायत थी कि सास ही काम कराती है।

इतनी गर्मी में भी वह सबकी नजरें बचाकर उस अंकुर में पानी डालती रहती थी, भले ही वह आधा चुल्लू पानी भी सींचती हो, लेकिन वह दिन भर लटकता रहता था।कितनी गरमियाँ और बरसात दोनों ने एक आँगन में बिताईं, सास को गुज़रे दस साल हो गए और हर साल बारिश होने लगी जैसे इतने सालों की गिनती भूल गई हो।हालाँकि, गर्मियाँ उतनी ही कष्टदायक होती हैंलेकिन एक-एक करके घर में लोग कम होते गए, दो नंदा ऐसी थीं जिन्होंने शादी कर ली और ससुराल छोड़ दी, दिर काम के लिए शहर चली गईं।हिचा लेक को उसके मामा शिक्षा के लिए ले गए, वह वहीं का स्थायी निवासी बन गयायहां स्थायी होते ही क्या कहना, चार एकड़ बंजर जमीन, काट लिया तो दस हिस्सा, बंजर छोड़ दिया तो किसी को कुछ कहने को नहीं।इसलिए ज्यादा बात नहीं होती, बेटा बहुत कम बात करता था, लेकिन भाई का भाई के पास आना-जाना लगा रहता था।और वह भाद्रपद में दो दिन के लिए मुझे आग्रहपूर्वक वाहिनीबाई ले जाता था लेकिन माया कुछ भी करती थी यह देखने के लिए कि उसे क्या चाहिए या क्या नहीं।कभी-कभी वह भाभी, भाई से कुछ नहीं ले पाती थी, यहाँ तक कि उसका पति भी ऐसा नहीं करना चाहता था।वह कभी नहीं जान पाएगी कि उसके पति के मन में क्या हैइमा ने पोस्ट ऑफिस की नौकरी संभाली, उन्होंने अपने पिता की पीठ पीछे छोटे भाई-बहनों के लिए हर संभव कोशिश की।यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि उसने अपने दिन इसी शेवग्या की सहचरी के साथ गुजारे थेकभी शेवग्या को आधा हण्डा पानी देते देखा है तो सास दिन भर शिकायत करती रहती थी, “एक हण्डा पानी क्यों बर्बाद कर रही हो? शेवग्या को कोई पानी देता है क्या? यह खुशी से लगाया हुआ पेड़ नहीं है, अगर यह बढ़ता है, वह इसे देखेगा। कीमत और कहानी में अंतर यह है कि वह बड़ा हुआ और वह शादी करके इस घर में आई, वह बाड़ के अंदर था और वह दहलीज के अंदर थी।उसका पुच्छ सही था और वह समय-समय पर फलियाँ और फूल दे रहा थाउन्हें सूखी रोटी तक खाने का समय नहीं मिलता था

लेकिन इसीलिए किसी ने उन्हें धन्यवाद नहीं दिया या उनके अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया, उसके साथ भी ऐसा ही था, उसे इसकी आदत थी, उसे किसी से कोई उम्मीद नहीं थीलेकिन शेवगा गिर गईं और उनके जीवन में एक घटना घटी, जिस पर वह खुद को व्यक्त करना चाहती थींअरवी स्टिक को कस कर फलियों को हटाना पड़ालेकिन आज आड़ी पड़ी सेवगा ​​की फलियाँ हाथ में आ रही थींउन्हें तोड़ते समय उसका पेट भर गया और फलियाँ गिनने के बाद वह बहुत रोई और गिनने के बाद सोलह फलियाँ निकलीं।उसके मन में आया कि किसके पास जाए, उसने कुछ पैसे लिए जो उसके पति ने उसे श्रावण में चूड़ियों की कीमत चुकाने के लिए दिए थे, वह स्कूल के पास फोन पर गई और डायरी देखकर उसने अपने सभी प्यारे ननंदों को बुलाया।उसने कहा कि शेवगा दरवाजे पर गिरा है, वह तुम्हें बचपन से स्वादिष्ट दाल खिलाता आ रहा है, अब आखिरी सोलह फलियाँ दो दिन में आती हैं, फिर वह प्याज के साथ उसी तरह की फलियां अमाटी बनाती है।लड़के ने कहा कि सब लोग एक साथ नहीं मिल पाएंगे.सब कुछ फोन पर किया गया था और उसने उसके द्वारा दिखाए गए साहस की सराहना नहीं की, लेकिन आश्चर्यचकित और हैरान थी, अगर किसी ने उसे बताया कि यह ऐसा था जैसे उसने अपने पति के कान में फुसफुसाया हो? इस डर ने उसे बुखार से भर दिया, उसका पेट भर गया, स्कूल के पास वान्या ने उसकी हालत पहचान ली और उसे घर छोड़ने के लिए बाय-बाय कहा।जैसा कि बताया गया था, उसकी बाइक उसके घर की बाड़ के पास आई और वापस मुड़ गई, उसे लगा कि अब वह भी शेवगा की तरह गिर जाएगी।लेकिन हम दहलीज के भीतर हैं, बाड़ के अंदर नहीं, इसलिए हमें दहलीज के भीतर ही गिरना चाहिए।अब उसे किसी बात का डर नहीं था, उसकी और शेवग्या की हालत एक जैसी थी, गुंगी में कुछ अप्रासंगिक सा दिख रहा था, उसका गला सूख रहा था लेकिन वह पानी पीने के लिए भी नहीं उठ पा रही थी।तभी उसकी आंखों के सामने भीड़ दिखने लगी, उसे इसका अहसास होने लगाउसे यह अनुभव करके ख़ुशी हुई, वह गिरती बारिश की आवाज़ महसूस कर सकती थीतभी छोटी ने आकर कहा, मैडम, उठने की कोशिश करो, गिर गई हो, पेट में कुछ नहीं है, कुछ पन्ना ले लो।फिर जब उसे होश आया तो पूरा घर लोगों से भरा हुआ था, उसका पति उसके सिरहाने बैठा था और बेटा उसके पैरों के पास था।ननंदा और जावा चूल्हे पर थे जबकि वाहिनी रोटी पका रही थी।उसे होश में आता देख हर कोई खुश थाकुछ पन्ने के बाद उसकी तबीयत खराब हो गई और पति कह रहा था कि मुझे करमचंद का फोन आया था और आपकी तबीयत ठीक नहीं है। अब मैं फोन कर रहा था तो कांपने लगा, मैं ऐसे ही चला गया तो मैंने केश्या को फोन किया तो उसने कहा कि मेरी भाभी का भी फोन आया था, तो इस बीच क्या हुआ?रुको, मैं आ रहा हूं, फिर उसने सभी को बुलाया और देखो, तुम्हारे दादाजी और भाभी सब आ गए हैं। उसने संतुष्टि की सांस लेते हुए घर के चारों ओर देखा, उसे शेवग्या का तीखा स्वाद महसूस हो रहा था।उसका घर शेवग्या की तीखी सुगंध से भर गया था, जो बाहर लेटे हुए शेवग्या तक पहुँच गई होगी।और लड़का कह रहा था माँ वह जगह खाली नहीं रहेगी, मैं एक पौधा लाया हूँ, कल जब बारिश रुकेगी तो हम उसे वहाँ लगा देंगे।उसे तेज़ बारिश में अगली गर्मी नज़र आने लगी….

चंद्रशेखर गोखले

मुक्त हिंदी अनुवाद – आर्य भारती

 

सहजन का पेड़ मानव के लिए किसी चमत्कारी पेड़ से कम नही। आज इसके फायदे जानते है।

सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है। आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आज के वैज्ञानिक युग में वे साबित हो चुकी हैं। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है।

कम देख रेख और ढेरों फायदे,,

सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। यह जिस जमीन पर यह लगाया जाता है, उसके लिए भी लाभप्रद है। दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है। इसे सांबर में डाला जाता है। उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है। सर्दियां जाने के बाद फूलों की सब्जी बना कर खाई जाती है। फिर फलियों की सब्जी बनाई जाती है। इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है। सहजन वृक्ष किसी भी भूमि पर पनप सकता है। कम देख,रेख की मांग करता है। इसके फूल, फली और टहनियों को अनेक उपयोग में लिया जा सकता है। भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इसमें औषधीय गुण हैं। इसमें पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं। सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है। छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन A, C और B कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में है। सहजन में दूध की तुलना में 4 गुना कैल्शियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।

सैकड़ों औषधीय गुण,,

सहजन की फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच ,शियाटिका ,गठिया में उपयोगी है। सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग के लिए उपयोगी है। छाल का उपयोग शियाटिका ,गठियाए,यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है। सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, साइटिका के तीव्र दर्द में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है। सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं, तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है। सहजन को 80 प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है। सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया, जोड़ों के दर्द वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है। सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है। सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे,धीरे कम होने लगता है। सहजन, की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है। सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है। सहजन की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है। सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है। सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है। यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है। जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। सहजन में विटामिन C की मात्रा बहुत होती है। विटामिन C शरीर के कई रोगों से लड़ता है। खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं। तो आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है।सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है। सहजन में विटामिन A होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है। सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा। सहजन की पत्ती को सुखाकर उसकी चटनी बनाने से उसमें आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। गर्भवती महिलाएँ और बुजुर्ग भी इस चटनी, अचार का प्रयोग कर सकते हैं और कई बीमारियों जैसे रक्त अल्पता तथा आँख की बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं। सहजन या सुरजने का समूचा पेड़ ही चिकित्सा के काम आता है। इसे जादू का पेड़ भी कहा जाता है। त्वचा रोग के इलाज में इसका विशेष स्थान है। सहजन के बीज धूप से होने वाले दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं। अक्सर इन्हें पीसकर डे केअर क्रीम में इस्तेमाल किया जाता है। बीजों का दरदरा पेस्ट चेहरे की मृत त्वचा को हटाने के लिए स्क्रब के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। फेस मास्क बनाने के लिए सहजन के बीजों के अलावा कुछ और मसाले भी मिलाना पड़ते हैं। सहजन के बीजों का तेल सूखी त्वचा के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ताकतवर मॉश्चराइजर है। इसके पेस्ट से खुरदुरी और एलर्जिक त्वचा का बेहतर इलाज किया जा सकता है। सहजन के पेड़ की छाल गोखरू, कील और बिवाइयों के इलाज की अक्सीर दवा मानी जाती है। सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं। सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।

सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना,,

विटामिन C,, संतरे से सात गुना।

विटामिन A,, गाजर से चार गुना।

कैलशियम,,दूध से चार गुना।

पोटेशियम,,केले से तीन गुना।

प्रोटीन,,दही की तुलना में तीन गुना। आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ जीवन पाए।

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