अवघा रंग एक झाला – अवघा रंग एक झाला – आज परछाई नहीं आएगी दादी की बहन के पोते ने पड़ोस की गैलरी से चिल्लाकर अलविदा कहा… यह सुनकर दादी परेशान हो गईं… उनकी गिरी हुई आंखों से आंसू गिरने लगे। अब कौन लाएगा उसका रुमाल बदल दो..? सच में. शवाली की वजह से हम इतने अच्छे से रह सकते हैं और वह कहती है कि शवाली नहीं आएगी लेकिन क्यों क्या हुआ,..? दादी को गुस्सा आ गया और चिल्लाकर पूछा,.. इस पर पोती बोली,.. दादी कर्फ्यू लगा दिया गया है, वह पिछले 15 दिनों से सड़क पर अपनी जान दे रही है, तुम्हें क्या पता??? हाँ, बाहर कैसा माहौल है कि…इतना कहकर पोती अंदर चली गई,…दादी को अपने गालों पर बहुत गर्म पानी बहने लगा, अब वह सच में मरना चाहती है,..भगवान, आपने इस जिंदगी के साथ क्या खेल खेला है.. ? भले ही यह जल्द ही खत्म हो जाए, अरे हम जैसे लोगों को छोड़कर जो मौत मांग रहे हैं, यह कहां का न्याय है? दादी मां ऐसा ही सोच रही थीं, तभी उनके सामने प्यारी सी मुस्कुराती हुई परछाई.. दादी बोलीं, ”तुम मुझसे क्या मजाक कर रहे हो ?बुढ़िया का??” सवाली ने कमर बांधते हुए कहा,..मैंने मजाक नहीं किया, मेरे पापा ने फोन किया था क्योंकि बाहर का माहौल बहुत खराब है.. पापा कहते हैं कि तुम शादीशुदा हो,…अगर कुछ हो गया तो आप,..?यह सुनकर दादी फूट-फूटकर रोने लगीं और चादर में मुंह छिपाकर रोने लगीं,…सावले, तुम मेरे लिए कितना कर रहे हो,…?जरूर आज घर के लोगों से झगड़ा करोगे,। ..सावली ने तुरंत दादी का हाथ पकड़ लिया,…मत रोओ दादी, बहुत बहुत धन्यवाद, मेरे लिए ऐसा करने के लिए कुछ भी नहीं है।तुलसीहर तैयार था,…उसके सामने एक नाजुक रंगोली बनाई गई थी,…एक चांदी के निरंजन को पॉलिश किया गया था और सजुक घी से भर दिया गया था और चुपचाप जलाया गया था,…दादी शांति से मंत्रोच्चार कर रही थी,…शवली खाना पकाने से बाहर आ गई चाय लेकर घर, ..दादी ने चाय लेते हुए विषय छेड़ दिया,…”…तुम परछाई न होती तो क्या होता, मेरी बुढ़िया,…?? देखो, सिर्फ से कोई फायदा नहीं पैसा होना…जिंदगी में, कोई अपना होना जरूरी है,…सिर्फ खून का रिश्ता। नहीं, मोहतरमा, मन के रिश्ते का,.. हां, किनी,…बिल्कुल मेरी तरह, तुम ,…!”सावली ने कहा दादी,.. “यह सब इसलिए है क्योंकि आपने अपनी जान ले ली,.. ताली एक हाथ से नहीं बजती,…दादी मुझे अभी भी याद है,..एक बच्चा और पिता गुस्सा हो रहे थे,..पिटाई कर रहे थे उसे, ..तो माँ जब काम पर आती थी तो तुम्हें लेकर आती थी,..तुम्हारा मन मेरी पढ़ाई से भर गया,…आज तुम्हारी वजह से मैं एक अच्छे अस्पताल में नर्स हूं और फिर मेरी पढ़ाई का क्या फायदा अगर यह आपके लिए काम नहीं करता है, तो माँ… उस समय, असली सहारा पैसा और दिल थाआपने मुझे दिया,… और उस पैसे के बदले, आपने मुझे संस्कार का उपहार दिया, दादी,… आपने मुझे त्योहारों, भजनों, पूजाओं का आनंद लेना सिखाया,… आपने मुझे वह सब अनुभव करने दिया,.. .मेरे दादाजी को गुजरे हुए एक साल हो गया है। नहीं तो तुम इस तरह पंगु हो जाओ,…तुम्हारे कोई बच्चा नहीं है, फिर भी तुमने बेटी की तरह मेरा ख्याल रखा,…तो मैं अपना कर्तव्य है और मैं इसे निभाऊंगी,…मैंने अपने होने वाले पति से भी कहा है,…सुबह के दो घंटे मेरी दादी के लिए हैं…खासकर शादी के बादसाथ ही,…तो दादी कहती हैं कि तुम चिंता मत करो,…मैं वैसे भी तुम्हारे साथ आऊंगी,…मुझे पता है तुम्हारी बहन की पोती जो ऊपर रहती है, मेरे जाने के बाद तुम्हारी मदद के लिए आएगी,…लेकिन तुम मेरे बिना भी आओगे और चले जाओगे, तुम नहीं आ सकते???”…दोनों हंस पड़े,मुस्कुराते हुए दादी की आँखों में आँसू आ गए,… दादी ने कहा,.. “तुमने मुझे यह विट्ठल की मूर्ति दी और तब से मुझे ऐसा लगता है कि तुम हमेशा मेरे पास हो,… तुम बहुत होशियार हो, तुम्हें पंढरपुर की सारी हवाएँ पता थीं मैं किया,.. .लेकिन इन 3 साल पहले मैं परेशान था क्योंकि घुटने के दर्द के कारण मैं वारी नहीं जा सका, तब आप मेरे हाथों में यह मूर्ति ले आए,…अंधेरा और शांत।अच्छा, दादी, क्या मैं अब जा सकता हूं,…”अरे, मेरी दादी गंभीर हैं, इसलिए शादी कल करने की योजना है,… इस लॉकडाउन में कुछ भी नहीं खुल रहा है, इसलिए मैं इसे घर पर करने जा रहा हूं, …बस कल धक्का मारो,…मैं कल आऊंगा, आशीर्वाद.” दे दो,…दादी जमीन से आई,..वह बच्चा जिसे सब कहते थे काला,…मेहनती और ईमानदार था,… कल उसकी नई जिंदगी शुरू होने वाली थी,…दादी ने उसे अपने पास ले लिया और बोली, मैं तुम्हें क्या दे सकती हूं,…?इतने में सावली ने कहा,..”सिर्फ खुश रहने का आशीर्वाद, और कुछ नहीं,…”तभी दादी को कुछ याद आया,…दादी ने कहा, “क्या तुमने इसे नहीं खरीदा था और तुम इसे मेरे दुपट्टे की तरह पहनना चाहती थी,…और उस पर मोतियों से जड़ा हुआ था…”सावली ने मुस्कुराते हुए कहा, “दादी, यह लॉकडाउन इतनी जल्दी हो गया,…दरअसल, माँ ने मेरे लिए पैठणी लुगड़ा खरीदने के लिए पैसे बचाए थे, लेकिन अब मैं रुक गई,…जाने दो,…बाद में ले लेंगे, मुझे आने दो,..?”अजी ने कहा, “रुको, वह अलमारी खोलो,…उस सूती कपड़े की तह को नीचे वाली अलमारी में लाओ,…”सावली ने झट से घड़ी उसके हाथ में रख दी…दादी ने उसमें से एक लाल पैठन निकाली…और सावली से बोली, ”इसे शादी में पहनना…और अगले दिन मेरे पास लाना और मुझे दिखाना कि कैसे” यह लगता है…”तो सवाली ने कहा, “दादी,…अरे, मैं तो आपकी तरह पैठणी पहनने वाली थी, लेकिन रंग वैसा नहीं है, अरे, मेरे जैसे काले आदमी पर यह अच्छी लगेगी क्या,..?” अजी ने सावले से कहा,…”किसी व्यक्ति की त्वचा का रंग गौण है,…मन के समान रंग नहीं है,..उसकी सुंदरता समान है,…अर्थात,…कपटी है” , चालाक, प्यार करने वाला, मासूम सोचने के लिए अलग-अलग रंग हैं,…और अब बताओ इस विट्ठल के कपड़े किस रंग के हैं,…?”शावली ने मुस्कुराते हुए कहा, “वही लाल,…” दादी ने तुरंत कहा,…तो क्या उसे ये बुरा लगता है,??? छाया ने कहा, “दादी वह भगवान है,…वह अच्छी तरह देखेगा…” अजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “ऐसा नहीं है कि छाया दिव्यता मूर्ति में नहीं है, लेकिन जब वह मूर्ति के बिना नहीं देखी जाती है, तो उसे मनुष्य के कार्यों, कठिनाइयों और स्वभाव में देखा जाना चाहिए।” . अब इस महामारी काल में आपने सही कहा.. .क्योंकि ये किसान, पुलिसकर्मी, नर्स, डॉक्टर, सफाईकर्मी भी भगवान बनकर धरती पर विचरण कर रहे हैं…”सवाली ने दोनों हाथ कोने से जोड़कर दादी से कहा, “मैं आपको बातों में नहीं खोऊंगी,…मुझे वह लड़का दे दो, मैं कल नेसुन और अपने पति के साथ आशीर्वाद लेने आऊंगी और सेवा में भी आऊंगी।” ..अब क्यों जाएं,…??” दादी ने भी हाथ में नथनी का डिब्बा रखा,..तो वह डरते हुए बोलीं, दादी सोने की है, मुझे यह नथ नहीं चाहिए,…दादी ने कहा, “डाल दो और इसे वापस ले आओ तो यह बन गया,…यह पैठणी पर सुंदर लगेगा,…” परछाई की आँखों में पानी आ गया,…वह झट से दादी के गले लग गई,…और जल्दी से अलविदा कहकर चली गई,..अजी निराशा में लेट गईं,…विट्ठल की ओर देखते हुए… तीसरे दिन, जैसे ही वह लाल कपड़े पहने अपने पति के साथ अपनी दादी के अपार्टमेंट के गेट से दाखिल हुई, उसके पोते ने उसे ऊपर आने के लिए बुलाया,…सावली वास्तव में उससे पहले मिलना चाहती थी, लेकिन उसे पहले उसके पास जाना पड़ा,…पोते ने उसे दरवाजे पर रोका,…वह मुंह पर मास्क लगाकर बात कर रही थी,..उसने सावले से दादी के फ्लैट की चाबी मांगी और कहा, सावले”… आपके जाने के अगले दिन, कुछ ही घंटों में , दादी चली गईं,…मैं तुम्हें तुम्हारा बनाया खाना देने फ्लैट पर गई थी। जब मैं गई तो मेरी दादी रो रही थीं,…उन्होंने मुझसे कहा,…”मेरी परछाई ही मेरी शादी है,… उसे मेरी याद दिलाने के लिए पैठणी और नाथ दे दो,…मैं पास बैठूं तो उसने मुझसे कहा, वो विट्ठल मूर्ति मुझे दे दो.” पास,…वह मूर्ति से लिपटकर कह रही थी कि सच बताओ तुम साये बन कर आ रहे थे,…और उसने दे दी जान,..सावली सुन्न हो गई,…पति ने उसे संभाला,…वह चली गई और जाते-जाते बोली कि पोते क्या तुम मुझे वह विट्ठल की मूर्ति दोगे??? पोते ने तुरंत फ्लैट का ताला खोला और मूर्ति उसे दे दी,.. .सावली विट्ठल के साथ चलने लगी. ,…लेकिन विट्ठल सावली का सवाल सुन रहे थे,… सवाली मन में कह रही थी, “मैं तुम्हारी विट्ठल हूं क्योंकि दादी ने तुम्हारी सेवा की या तुम मेरे विट्ठल हो क्योंकि तुमने मुझे अच्छा जीवन दिया,..??” विट्ठलमूर्ति मुस्कुरा रहे थे और कह रहे थे, इसे देखकर ही इंसानियत का रंग एक हो गया है..