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बेला और कल्याणी

बेला और कल्याणी कौन थीं?
पता नहीं?
तो सुनिए…

बेला पृथ्वीराज चौहान की बेटी थी और कल्याणी जयचंद की नातिन थी।

जब मोहम्मद गौरी भारत को लूटकर ग़ज़नी वापस गया, तो ग़ज़नी के सर्वोच्च क़ाज़ी और मोहम्मद गौरी के गुरु निज़ामुल्क ने उसका स्वागत अपने महल में किया और कहा –
“आओ गौरी आओ! हमें गर्व है कि तुमने हिंदुस्तान पर विजय प्राप्त कर इस्लाम का नाम उज्ज्वल किया। बताओ, उस ‘सोने की चिड़िया’ हिंदुस्तान के कितने पंख काट लाए हो?”

गौरी ने जवाब दिया –
“क़ाज़ी साहब! मैं हिंदुस्तान से सत्तर करोड़ दिरहम की कीमत का सोना, पचास लाख चार सौ मन सोना और चांदी, इसके अलावा अनमोल गहने, मोती, हीरे, पन्ने, ज़री के वस्त्र और ढाका की मलमल लूटकर लाया हूँ।”

क़ाज़ी ने पूछा –
“बहुत अच्छा! पर वहां के लोगों को कोई धर्म का ज्ञान दिया या नहीं?”

गौरी ने कहा –
“कई लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया है।”

क़ाज़ी ने आगे पूछा –
“और बंदी बनाए गए लोगों का क्या किया?”

गौरी बोला –
“उन्हें ग़ज़नी गुलाम बनाकर ले आया हूँ। अब तो ग़ज़नी में गुलाम खुलेआम बिक रहे हैं, हर गुलाम दो-तीन दिरहम में।”

क़ाज़ी ने फिर पूछा –
“हिंदुस्तान के काफ़िरों के मंदिरों का क्या किया?”

गौरी बोला –
“मंदिर लूटकर 17,000 सोने-चांदी की मूर्तियाँ, 2000 से अधिक अनमोल पत्थरों की मूर्तियाँ और शिवलिंग लाया हूँ। अनेक पूजा स्थलों को तोड़कर जला डाला।”

फिर क़ाज़ी ने कहा –
“लेकिन हमारे लिए कुछ खास तोहफ़ा लाए हो?”

गौरी ने उत्तर दिया –
“हाँ क़ाज़ी साहब, लाया हूँ – जयचंद की नातिन कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला, जिनका सौंदर्य स्वर्ग की अप्सराओं को भी मात देता है।”

क़ाज़ी ने उन्हें देखकर विवाह का प्रस्ताव रखा।
बेला बोली –
“क़ाज़ी साहब! आपका बेगम बनना हमारा सौभाग्य होगा, पर दो शर्तें हैं।”

क़ाज़ी ने पूछा –
“कहिए, क्या शर्तें हैं? तुम जैसी हूरों के लिए मैं सब मान लूंगा।”

बेला ने कहा –
“पहली शर्त – विवाह से पहले हमें अपवित्र नहीं किया जाएगा। मंज़ूर है?”
“मंज़ूर है।”

“दूसरी शर्त – हमारी प्रथा है कि विवाह के लिए दूल्हा और दुल्हन दोनों के कपड़े भारतभूमि से आते हैं। हम भारत से कपड़े मंगवाना चाहती हैं।”
“यह भी मंज़ूर है।”

उन्होंने कविचंद को एक गुप्त पत्र भेजा। उसी पत्र में उन्होंने भारतभूमि से विवाह के वस्त्र मंगवाए।

विवाह का दिन आया। रहमत ताल के किनारे नए महल में शादी की तैयारी हुई। क़ाज़ी और दोनों कन्याएँ विवाह के वस्त्र पहनकर तैयार हुए।

बेला ने कहा –
“निकाह से पहले हमें झरोखे से जनता को दर्शन देना है। यही हमारी परंपरा है। बाद में तो हमें बुरक़े में रहना होगा, तो सौंदर्य कौन देख पाएगा?”

क़ाज़ी ने अनुमति दी।

वे झरोखे पर पहुँचे। तभी क़ाज़ी के शरीर पर आग भड़क उठी। दरअसल, कविचंद ने उन कपड़ों को तीव्र विष में भिगोकर भेजा था।

क़ाज़ी जलता हुआ तड़पने लगा।
तभी बेला ने कहा –
“तू ही था जिसने गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। आज हमने तेरा वध करके अपने देश की लूट का बदला लिया है। हम हिंदू कुमारिकाएँ हैं, हमें जीवित रहते कोई अपवित्र कर ही नहीं सकता।”

इतना कहकर बेला और कल्याणी ने एक-दूसरे की छाती में विषमय कटारें घोंप लीं और झरोखे से नीचे कूद गईं।
क़ाज़ी भी जलते हुए तड़प-तड़पकर मर गया।

भारत की इन दो शूरवीर कन्याओं ने परदेश में गुलामी की स्थिति में भी अद्वितीय बलिदान दिया। यह इतिहास गौरवशाली है।

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