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माघ पूर्णिमा

मान्यता है कि माघी पूर्णिमा के तीन दिन पहले से पवित्र तीर्थ नदियों में स्नान करने से पूरे माघ माह स्नान करने का फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में वैसे तो सभी पूर्णिमाओं का विशेष महत्व है, लेकिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा विशेष फलदायी माना गया है।

 

माघ मास में भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं। इसलिए माघी पूर्णिमा के दिन नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा श्रवण करने की परंपरा है। शास्त्रों में माघ की पूर्णिमा को भाग्यशाली तिथि बताया गया है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में घर की साफ सफाई करके पूरे घर में गंगाजल से छिड़काव करना फलदायी होता है। घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का तोरण लगाएं और फिर घर की दहलीज पर हल्दी व कुमकुम लगाएं। इसके बाद मुख्य द्वार के दोनों ओर स्वास्तिक का चिह्न बना कर रोली अक्षत लगाएं। दरवाजे पर घी का दीपक जलाकर प्रणाम करें। इसके बाद तुलसी की पूजा करनी चाहिए। उनको जल, दीपक और भोग अर्पित करें ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

माघी पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति को तिल, घी, कंबल, फल आदि वस्तुओं का दान करें। इसके साथ ही पूजा घर में घी का दीपक जलाएं और उसमें चार लौंग रख दें। ऐसा करने से धनधान्य की कभी कमी नहीं रहती। माघ की पूर्णिमा के दिन भगवद्गीता, विष्णु सहस्त्रनाम या फिर गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें। पुराणों में पूर्णिमा के दिन इन तीनों का पाठ करना बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। ऐसा करने से सभी संकट दूर होते हैं और आपस में सकारात्मक भाव उत्पन्न होता है। भगवान कृष्ण के प्रिय तिथि माघी पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण को और चंद्रमा को सफेद फूल अर्पित करें। इसके साथ ही सफेद मोती, सफेद वस्त्र, सफेद मीठा अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।

         माघ पूर्णिमा व्रत कथा

 

कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था। वो अपना जीवन निर्वाह भिक्षा लेकर करता था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन लोगों ने उसे बांझ कहकर ताने मारे और भिक्षा देने से इनकार कर दिया। इससे वो बहुत दुखी हुई. तब किसी ने उससे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा।

 

ब्राह्मण दंपत्ति ने सभी नियमों का पालन करके मां काली का 16 दिनों तक पूजन किया। 16वें दिन माता काली प्रसन्न हुईं और प्रकट होकर ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया। साथ ही कहा कि तुम पूर्णिमा को एक दीपक जलाओ और हर पूर्णिमा पर ये दीपक बढ़ाती जाना। जब तक ये दीपक कम से कम 32 की संख्या में न हो जाएं। साथ ही दोनों पति पत्नी मिलकर पूर्णिमा का व्रत भी रखना।

         

ब्राह्मण दंपति ने माता के कहे अनुसार पूर्णिमा को दीपक जलाना शुरू कर दिया और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखने लगे। इसी बीच ब्राह्मणी गर्भवती भी हो गई और कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम देवदास रखा। लेकिन देवदास अल्पायु था। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया।

         

काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया, लेकिन ब्राह्मण दंपति ने उस दिन अपने पुत्र के लिए पूर्णिमा का व्रत रखा था, इस कारण काल चाहकर भी उसका कुछ बिगाड़ न सका और उसे जीवनदान मिल गया। इस तरह पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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