अक्सर देखा गया है की कई लोग, अनायास ही अचानक बहुत धनवान और आशवर्यावान हो जाते हैं, किसी भी काम में छोटा मोटा हाथ आजमाते हैं और किस्मत ऐसी पलटी मारती है की उनके ऊपर धन ऐश्वर्य की बरसात होने लगती है. ऐसा मात्र मेहनत से सम्भव दिखाई नहीं देता …कुछ तो ऐसा होता है जिसके प्रभाव से उनके पास अचानक धन का प्रभाव आने लगता है …जानिये कुछ इस तरह की दिव्य शक्तयों के बारे में जिसको लेकर बहुत से लोग अनजान होते हैं परन्तु ये सत्य है की कोई इन दिव्या शक्तियों को यथावत सिद्ध करले तो उसके जीवन में वो चमत्कार होने लगते हैं जो स्वप्न की कल्पना की तरह लगते हैं !
योगिनी साधना एक बहुत ही प्राचीन तंत्र विद्या की विधि है. इसमें सिद्ध योगिनी या सिद्धि दात्री योगिनी की आराधना की जाती है. इस विद्या को कुछ लोग द्वतीय दर्जे की आराधना मानते हैं लेकिन ये सिर्फ एक भ्रांति है. योगिनी साधना करने वाले साधकों को बहुत ही आश्चर्यजनक लाभ होता है. हर तरह के बिगड़े कामों को बनाने में इस साधना से लाभ मिलता है. माँ शक्ति के भक्तों को योगिनी साधना से बहुत जल्द और काफी उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त होते हैं. इस साधना को करने वाले साधक की प्राण ऊर्जा में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है. माँ की कृपा से भक्त के जीवन की सारी मुश्किलें हल हो जाती हैं और उसके घर में सुख और सम्रद्धि का आगमन हो जाता है.
जब भाग्यवश काफी प्रयासों के बाद भी कोई काम नहीं बन रहा है या प्रबल शत्रुओं के वश में होकर जीवन की आशा छोड़ दी हो तो इस साधना से इन सभी कष्टों से सहज ही मुक्ति पाई जा सकती है। इस साधना के द्वारा वास्तु दोष, पितृदोष, कालसर्प दोष तथा कुंडली के अन्य सभी दोष बड़ी आसाना से दूर हो जाते हैं। इनके अलावा दिव्य दृष्टि (किसी का भी भूत, भविष्य या वर्तमान जान लेना) जैसी कई सिद्धियां बहुत ही आसानी से साधक के पास आ जाती है। परन्तु इन सिद्धियों का भूल कर भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका रहती है।
इस साधना को सोमवार रात्रि मे या अमावस्या/पुर्णिमा के रात्रि मे सम्पन्न करे। साधना के शुरुआत मे गणेश मंत्र और गुरुमंत्र का जाप भी करले,अगर आपके कोइ गुरु ना हो तो भगवान शिव को गुरू मान कर ॐ नम: शिवाय का जाप करें ।अब किसी पात्र मे शिवलिंग रखे और शिवलिंग का सामान्य पुजन करे,जल भी चढाये । एक सफेद रंग का पुष्प अपना मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर अर्पित करे। 64 योगिनी मंत्र को एक-एक बार पढना जरुरी है परंतु आप मे पात्रता हो तो 1,3,5,7,11…..108 की संख्या मे आप ज्यादा मंत्र का उच्चारण कर सकते है। यह तांत्रोत्क बीज मंत्रो से युक्त योगिनी मंत्र है,जिसकी अधिष्ठात्री देवि ललिताम्बा है,जो साधक का कोइ भी इच्छा पुर्ण कर सकती है।
योगिनी मंत्र जाप से पुर्व और अंत मे “ॐ नमः शिवाय” का जाप भी करना जरुरी है। आगे योगिनी मंत्रो को बोलते हुए किसी भी प्रकार के शिवलिंग पर अष्टगंध युक्त चावल चढाये-
पुजन के बाद शिव जी का आरती करे और एक बार फिर उनसे अपना मनोकामना पुर्ण करने हेतु प्रार्थना करे। साधना सम्पूर्ण होते ही चढाये हुए चावल शिवलिंग के उपर से निकालकर सुरक्षित रख दे और दुसरे दिन जल मे प्रवाहित कर दे ।
64 योगिनीयो के सिद्ध मंत्र ।
१. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा ।
२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा ।
३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा ।
४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा
५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा ।
६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा ।
७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा ।
८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा ।
९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा ।
१०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा ।
११. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा ।
१२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा ।
१३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा ।
१४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा ।
१५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा ।
१६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा ।
१७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा
१८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा
१९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा ।
२०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा ।
२१. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा ।
२२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा ।
२३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा ।
२४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा ।
२५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा ।
२६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा ।
२७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा ।
२८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा ।
२९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा ।
३०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा ।
३१. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा ।
३२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा ।
३३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा ।
३४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा ।
३५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा ।
३६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा ।
३७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा ।
३८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा ।
३९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा ।
४०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा ।
४१. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा ।
४२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा ।
४३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा ।
४४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा ।
४५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा ।
४६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा ।
४७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा ।
४८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा ।
४९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा ।
५०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा ।
५१. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा ।
५२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा ।
५३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा ।
५४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा ।
५५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा ।
५६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा ।
५७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा ।
५८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा ।
५९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा ।
६०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा ।
६१. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा ।
६२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा ।
६३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मीh मनोरमायोनि स्वाहा ।
६४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।
ओउम
श्रीगुरवे नमः