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यास्मिन शेख: 100 वर्ष की उम्र में भी मराठी व्याकरण की कवयित्री शिक्षिका

100 वर्ष की आयु में भी यास्मिन शेख मराठी व्याकरण को कविता की तरह सिखाती हैं। वे अब भी स्वयं लिखती हैं, विद्यार्थियों की व्याकरण संबंधी शंकाएँ दूर करती हैं और कभी जिनको ‘Laughing Jerusha’ नाम से हँसमुख उपनाम दिया गया था, उसी तरह आज भी खुलकर हँसती हैं। उनके लिए मराठी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि जीवनभर की एक प्रेमकहानी है।

1925 में रायगढ़ ज़िले के पेण में मराठी भाषी यहूदी परिवार में जेरुशा रुबेन के रूप में उनका जन्म हुआ। मराठी उपन्यासों से भरे संदूक, प्रोत्साहन देने वाले गुरु और शब्दों की जादुई दुनिया ने उनके बचपन को आकार दिया। 1949 में उन्होंने सामाजिक परंपराओं को चुनौती देते हुए अज़ीज़ शेख से विवाह किया और उस समय नया नाम स्वीकार किया – यास्मिन। लेकिन एक चीज़ कभी नहीं बदली – मराठी के प्रति उनका निस्वार्थ प्रेम।

मुंबई में युवा शिक्षिका के रूप में कार्यभार संभालते समय विद्यार्थियों को उलझन होती थी। “क्या यह सचमुच मराठी का क्लास है?” वे आपस में फुसफुसाते। व्याकरण पढ़ाने के लिए जब मुस्लिम महिला आईं, तो कुछ छात्र कक्षा छोड़कर भी चले जाते। लेकिन जैसे ही यास्मिन पढ़ाना शुरू करतीं, व्याकरण कविता की तरह लयबद्ध, संगीतमय और जीवंत लगने लगता। जो विषय प्रायः कठिन और उबाऊ समझे जाते थे, वे उनकी कक्षा में आनंददायी बन जाते। शुरू में संदेह करने वाले ही आगे चलकर उनके जीवनभर के शिष्य बने।

34 वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने स्कूल और कॉलेजों में मराठी पढ़ाया। IAS अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण दिया, पाठ्यपुस्तकों का संपादन किया, मराठी शब्दलेखन कोश लिखा और 1960 के दशक में मराठी व्याकरण के आधिकारिक नियम निर्धारित करने वाले मराठी साहित्य महामंडल में काम किया। वे केवल शिक्षिका ही नहीं थीं, बल्कि भाषाई संस्कृति की संरक्षिका थीं।

उनका सफर आसान नहीं था। कभी जनगणना अधिकारियों द्वारा उनकी मातृभाषा को ग़लती से उर्दू दर्ज करना, तो कभी उपनाम की वजह से घर बेचने में आनाकानी करने वाले पड़ोसी – यास्मिन को जीवनभर भेदभाव का सामना करना पड़ा। फिर भी उन्होंने क्रोध के बजाय सौम्य दृढ़ता से उत्तर दिया –
“जिस भूमि पर आपका जन्म हुआ, उसकी भाषा ही आपकी मातृभाषा होती है। मैं केवल एक धर्म मानती हूँ – मानवता का धर्म।”

आज पुणे के बाणेर स्थित अपने घर में यास्मिन अब भी शोध, लेखन करती हैं और युवा पीढ़ी को शुद्ध मराठी बोलने के लिए प्रेरित करती हैं।
“मराठी एक समृद्ध, सुंदर और अर्थपूर्ण भाषा है,” ऐसा कहते समय उनकी आँखों में अब भी बालसुलभ आनंद झलकता है।

उनका सरल मंत्र है – खुश रहो, जो पसंद है वही करो और सीखना कभी मत छोड़ो।

यास्मिन शेख की शताब्दी की यात्रा एक सत्य को रेखांकित करती है – भाषा केवल शब्द नहीं होती। वह होती है जड़ें, विरासत और आत्मा। और जब उन्हें संजोया जाता है, तभी हम अपने अस्तित्व को संजोते हैं।

✨ अपनी मातृभाषा को संजोएं। उससे प्रेम करें। और अगली पीढ़ी तक पहुँचाएँ।

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