एकबार बौद्धभिक्षु उपगुप्त से एक नर्तकी ने पूछा कि नारी का आभूषण क्या है? भिक्षु बोले कि तुम पहले अपने आभूषण उतारो, फिर वस्त्र उतारो उसके बाद मुझे इन नजरों से देखो। नर्तकी ने पहनने वाले आभूषण उतारकर के भिक्षु को जी भरकर देखा किंतु संकोच बस ऐसी लजागई कि वस्त्रहीन होने के लिए वह सर से पर्दा भी उतारने का साहस नहीं कर सकी,जी भरकर नजरों से भिक्षु को देख भी न सकी।
तब उपगुप्त बोले हे देवी, नारी के सौंदर्य का सर्वश्रेष्ठ आभूषण उसकी लज्जा है।पर्दा या घूंघट से लज्जा का कोई संबंध नहीं है।लज्जा का संबंध है आंखों से, आंखों में जिसके लज्जा है वही सच्ची लज्जावती होती है।
पर्दा तो एक सामाजिक बुराई है जो हमारे समाज में मुगलकाल में मजबूरी में अपनाई गयी थी। आज हम स्वतंत्र हैं। इस घूंघट के कारण महिला छतों, कुआ, खाई में गिरना, चूल्हे ,गैस आदि पर भयंकर कष्टों में पड़ जाती हैं।
आंखों में यह जो पानी है,
लज्जा की यही निशानी है।
सर को उठा पलकों को झुका,
तू सबसे सुंदर रानी है।।
जिन गरीबों के पास सर ढकने के लिए कपड़ा तक नशीव नहीं होता उन्हें पर्दा करने के लिए आंखों के ऊपर सुदर पलक दिये हैं, अर्थात मानवजाति को पर्दा करने के लिए पलक उपहार में दिये हैं। वस्त्र तो तन ढकने के लिए होते हैं।
तो फिर हम :-
चूल्हे गैस पर जल कर क्यों मरें?
पर्दे के कारण खाई, काटों में क्यों गिरें?
आज 60 वर्ष उम्र वाली तन की सुंदरता बढाने के लिए व्यूटीपार्लर पर जा रही हैं, क्या आंतरिक लज्जा रूपी सुधरता फीकी पड़ रही है?
ब्यूटीपार्लर की लीपापोती वाली सुंदरता तो बनावटी है जो 24 घंटे भी नहीं टिक पायेगी, फिकी पड़ जायेगी।
माता बनकर निकलोगी तो,
पुत्र भी खूब मिलेंगे,
बेटी बनकर निकलोगी तो,
पिता भी खूब मिलेंगे।
बहिना बनकर निकलीं तो,
भाई भी खूब मिलेंगे।
लैला बनकर निकलोगी तो,
मजनूं भी खूब मिलेंगे।