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एक वनवासी ऋषि हमारे बीच नहीं रहे, SSAV परिवार की ओर से अश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि

आज एक बहुत बड़ी रिक्तता उत्पन्न हो गई है…
मराठी साहित्य में, पर्यावरण प्रेमियों के बीच, और संवेदनशील लोगों की दुनिया में — मारुति चितमपल्ली गुरुजी हमारे बीच नहीं रहे।

मारुति चितमपल्ली केवल लेखक नहीं थे, बल्कि वे प्रकृति के साक्षात उपासक थे।
वन्यजीवों का अत्यंत बारीकी से निरीक्षण करने वाले, उनके व्यवहार और भाषा से मनुष्य को क्या सीखना चाहिए — यह बहुत ही शांत और सहज भाव से बताने वाले एक सच्चे वनवासी ऋषि

“पेड़, पशु, पक्षी, और मनुष्य — ये सब एक ही श्रृंखला के हिस्से हैं” — यह उन्होंने केवल लिखा नहीं, बल्कि पूरे जीवन इसे जीकर दिखाया।

उनकी किताबें — रानवाटा’, ‘चकवा चांदण’, ‘रातवा’, ‘केशराचा पाऊस’ और ऐसी ही कई रचनाओं ने हम जैसे न जाने कितने पाठकों को प्रकृति के और भी करीब ला दिया।
उनके लेखन से एक अलग ही भावनात्मक दुनिया खुलती थी, जो प्रकृति से गहराई से जुड़ी होती थी। 

आज उनका शरीर भले ही हमारे बीच न हो, लेकिन उनकी विचारधारा, जो आज भी उतनी ही आवश्यक है, वह हमारे साथ है और हमेशा रहेगी।

उन्होंने जो रानवाटा (वन पथ) दिखाए, पेड़ों से बातें करने की कला, पत्तों में छिपी सुगंध को महसूस करना — ये सब उनके सच्चे पाठक सहेज कर रखेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं।

 

भारतवर्ष ने एक ऐसे प्रकृति प्रेमी, वन्यजीव विशेषज्ञ और साहित्यकार को खो दिया है, जिन्होंने जंगलों को केवल प्रकृति का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन की प्रेरणा माना। मारुती चितमपल्ली, जिन्होंने अपने जीवन के कई दशक जंगलों, पशु-पक्षियों और ग्रामीण जनजीवन के अध्ययन में लगाए, अब हमारे बीच नहीं रहे। यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक विचारधारा की विदाई है जो धरती से जुड़ी, मिट्टी से जुड़ी और पर्यावरण के प्रति गहरी संवेदनशीलता रखने वाली थी।

 

जीवन परिचय

 

मारुती चितमपल्ली का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। बचपन से ही उन्हें प्रकृति के प्रति विशेष लगाव था। पेड़ों की सरसराहट, पंछियों की चहचहाहट और जानवरों की गतिविधियाँ उन्हें आकर्षित करती थीं। उनका यह लगाव धीरे-धीरे एक गहरे अध्ययन और शोध का विषय बन गया। वे न केवल एक वन्यजीव प्रेमी थे, बल्कि एक कुशल लेखक भी थे जिन्होंने जंगलों की कहानियाँ आमजन तक पहुँचाई।

प्रकृति से गहरा नाता

 

चितमपल्ली जी का जीवन जंगलों में ही बीता। उन्होंने भारत के विभिन्न अभयारण्यों, वन क्षेत्रों और आरक्षित जंगलों में भ्रमण कर वन्यजीवों के व्यवहार, उनकी जीवनशैली और पर्यावरण पर गंभीर अध्ययन किया। उनकी लेखनी में भी यह गहराई स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

उनकी किताबें केवल जानवरों की बातें नहीं करतीं, बल्कि वे इंसान और जंगल के संबंध को उजागर करती हैं। उन्होंने यह बताया कि यदि इंसान जंगल से कट गया, तो उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

 

लेखनी में जीवन की झलक

 

मारुती चितमपल्ली ने मराठी भाषा में अनेक किताबें लिखीं। उनकी प्रमुख रचनाएँ थीं — रणवन’, ‘जंगलाचे दिवस’, ‘वनचरित्र’, ‘प्राण्यांचे विश्व’ आदि। इन पुस्तकों में उन्होंने जंगलों की सुंदरता, रहस्य और वन्य प्राणियों के जीवन को शब्दों में उकेरा।

उनकी भाषा सहज, सरल और भावनाओं से ओतप्रोत होती थी। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ मानवीय संवेदना को भी बनाए रखा। वे केवल लेखक नहीं थे, बल्कि एक संवेदनशील द्रष्टा थे जो जंगलों में जीवन की लय को पहचानते थे।

 

वन्यजीव संरक्षण में योगदान

 

चितमपल्ली जी ने केवल लेखन तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के लिए भी सक्रिय रूप से कार्य किया। उन्होंने ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को वन्यजीवों के महत्व के बारे में जागरूक किया। उनके प्रयासों से कई क्षेत्रों में शिकार की घटनाओं में कमी आई और लोगों में पर्यावरण के प्रति सजगता बढ़ी।

वे मानते थे कि जंगल केवल वनस्पतियों और जानवरों का घर नहीं हैं, बल्कि यह पूरी पृथ्वी का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा था – “अगर जंगल नहीं बचेंगे, तो इंसान भी नहीं बचेगा।”

 

सम्मान और पुरस्कार

 

उनके अपार योगदान को देखते हुए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मराठी साहित्य जगत में उनका नाम अत्यंत आदर से लिया जाता है। उन्हें वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में भी कई राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त हुए।

मृत्यु – एक युग का अंत

 

मारुती चितमपल्ली जी का निधन केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है, बल्कि यह उस विचार की विदाई है जो इंसान और प्रकृति के बीच की दूरी को कम करने की कोशिश कर रहा था। उनके जाने से मराठी साहित्य और वन्यजीव प्रेमियों की दुनिया में जो खालीपन आया है, वह जल्दी भरने वाला नहीं।

 

उनसे मिली प्रेरणा

 

चितमपल्ली जी ने हमें सिखाया कि जंगलों को समझने के लिए केवल किताबों की जरूरत नहीं, बल्कि एक संवेदनशील हृदय की आवश्यकता होती है। उन्होंने हमें बताया कि पंछियों की बोली, हवा की सरसराहट और जानवरों की चाल को समझना भी जीवन की एक कला है।

उनकी पुस्तकें आज भी हजारों युवाओं को प्रकृति प्रेम और संरक्षण के लिए प्रेरित कर रही हैं। वे एक जीवंत पाठशाला थे जिनसे हर पाठक, शोधकर्ता और प्रकृति प्रेमी कुछ न कुछ सीखता रहा।

 

भावपूर्ण श्रद्धांजलि

 

आज जब हम मारुती चितमपल्ली को अंतिम विदाई दे रहे हैं, तो हमारे मन में सिर्फ दुःख ही नहीं है, बल्कि उनके जीवन से मिली प्रेरणा और सीख भी है। वे शरीर से भले ही इस संसार से विदा हो गए हों, पर उनकी किताबें, उनके विचार और उनकी भावना हर उस व्यक्ति के हृदय में जीवित रहेगी जो प्रकृति को प्रेम करता है।

हमारी यही प्रार्थना है कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और हम सभी उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करें।

 

 

जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि जीवन का आधार हैं।”

यह पंक्ति चितमपल्ली जी के विचारों का सार है। वे चले गए हैं, लेकिन उनके शब्द, विचार और कृतियाँ अमर रहेंगी।

🙏 भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏

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