महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है क्योंकि वह अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इंसान हो या देवता या असुर महादेव ने हर किसी पर अपनी कृपा बरसाई है।
शिव महापुराण में मिलता है वर्णन!!!!
शिव महापुराण के अनुसार, जब अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने साथ मिलकर सागर मंथन किया था तो मंथन के दौरान कई तरह की रत्न, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी आदि निकले थे। इसके साथ अमृत से पहले विष भी निकला था।विष इतना विषैला था कि इसकी अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, इस विष से पूरी सृष्टि में हाहाकार मचना शुरू हो गया था। तब भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए विष का पान कर लिया था।
भगवान शिव ने विष को गले से नीचे नहीं उतरने दिया था, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था और उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया। विष का प्रभाव धीरे-धीरे महादेव के मस्तिष्क पर चढ़ने लगा, जिसकी वजह से वह काफी परेशान हो गए और अचेत अवस्था में आ गए।भोलेनाथ की इस तरह की स्थिति में देखकर सभी देवी-देवताओं अचंभित हो गए और उनको इस चुनौती से निकालना बड़ी परेशानी बन गई।
देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि देवताओं की ऐसी स्थिति से निकालने के लिए मां आदि शक्ति प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान शिव का कई जड़ी-बूटियों और जल से उनका उपचार करना शुरू कर दिया। मां भगवती के कहने पर सभी देवी-देवताओं ने महादेव के सिर पर भांग,आक, धतूरा व बेलपत्र रखा और निरंतर जलाभिषेक करते रहे। जिसकी वजह से महादेव के मस्तिष्क का ताप कम हुआ।
उसी समय से भगवान शिव को भांग, बेलपत्र, धतूरा और आक चढ़ाया जाता है। इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इन चीजों को अर्पित किया जाता है। आर्युवेद में भांग व धतूरा को औषधि के तौर पर बताया गया है। वहीं शास्त्रों में बेलपत्र के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है। अगर यह सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधी के रूप में कार्य करता है और शरीर को स्वस्थ और गर्म रखता है।