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कुम्भमेला क्यों होता है ?

ऋषि अगस्त्य द्वारा दिए गए शाप के कारण देव लोक शक्तिहीन हो गए थे, और फिर अमृत प्राप्त करने के उद्देश्य से समुद्र मंथन की प्रक्रिया शुरू हुई।
समुद्र मंथन बारह दिन तक चला, और ये बारह दिन पृथ्वी पर बारह साल के बराबर होते हैं।
अमृत प्राप्त हुआ, लेकिन उसे दानवों से छुपाने के लिए देवताओं ने अमृत कुंभ लेकर भाग लिया।
इस भागने के दौरान वे जहाँ-जहाँ छुपे, वे चार स्थान महत्वपूर्ण बन गए—
हरी द्वार, प्रयाग, उज्जैन और नाशिक।
इन चार स्थानों में अमृत कुंभ रखा गया, और इस कारण इन स्थानों को महत्व प्राप्त हुआ।
जब देवता इन चार स्थानों पर रुके थे, उस समय के ग्रह योगों के आधार पर आगे चलकर कुम्भ मेला आयोजित होने लगा।

रवि, चंद्र और गुरु के विशिष्ट ग्रह योग के आधार पर कुम्भ मेला छह साल, बारह साल और कभी-कभी 144 साल के अंतराल में आयोजित होता है।
अब, यदि ऐसा योग छह साल बाद आता है तो उसे अर्धकुम्भ मेला कहते हैं।
अगर ऐसा योग बारह साल बाद आता है, तो यह पूर्ण कुम्भ मेला होता है।
और अगर ऐसा योग 144 साल बाद आता है, तो इसे महाकुम्भ मेला कहते हैं।
अब जो कुम्भ मेला प्रयाग में होने जा रहा है, वह महाकुम्भ मेला है, और यह 144 साल बाद आ रहा है।
यह योग 22वीं सदी में फिर आएगा।
हमारा सौभाग्य है कि हमारे जीवन में महाकुम्भ मेला हो रहा है।
यह योग हमारे जीवन में आना बहुत भाग्य की बात है, और वह भी प्रयाग में!
प्रयाग का इतना महत्व है क्योंकि जब ब्रह्मदेव ने सृष्टि का निर्माण किया, तो पहले यज्ञ प्रयाग में किया था।
‘प्र’ का अर्थ है पहला और ‘याग’ का अर्थ है यज्ञ, इस कारण इसे प्रयाग नाम मिला।
इस त्रिवेणी संगम में अगर हम कुम्भ मेला के समय स्नान करते हैं, तो मोक्ष प्राप्ति होती है, और जाने-अनजाने किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं।

महान तपस्वियों और साधू-संतों द्वारा पवित्र किए गए जल में स्नान करने से सिद्धि और साधना का फल मिलता है।
कुम्भ मेला का पर्व एक महीना ही होता है, लेकिन अगर हम पूरे वर्षभर वहाँ जाकर स्नान करें, तो भी चलता है।
भीड़ में जाने से बेहतर है कि बाद में जाएं।
वास्तव में, इस पर्वकाल में तपस्वी और साधू-संतों का ही सम्मान और अधिकार होता है।
हमें उनकी कार्य में विघ्न नहीं डालना चाहिए।
हमें उनसे दूर से दर्शन करना चाहिए और जब समय मिले, तब संगम में स्नान करना चाहिए।
पर्वकाल में पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से पितरों को भी मोक्ष मिलता है।
तो यह एक सुवर्ण संधी है, जिसे अमृत संधी भी कहा जा सकता है।
हमें इसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

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