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कश्मीर है तो आखिर किसका?

इस विषय को लेकर कई लोगों में जिज्ञासा और कौतूहल होगा।

तो कश्मीर ऋषि कश्यप का है।
कश्मीर नाम ही कश्यप’ से आया है – कश्यप मीर’

संस्कृत भाषा में मीर’ का अर्थ होता है – बड़ा सरोवर (झील)
ऋषि कश्यप वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक थे।
कश्यप गोत्र के लोग उन्हीं की संतति हैं।

प्रजापति दक्ष की तेरह कन्याओं का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था।
देवता, दानव, यक्ष और नाग – सभी कश्यप की संतान हैं।

मेरु पर्वत श्रृंखला में एक विशाल और सुंदर सरोवर था।
भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी सती को यह सरोवर अत्यंत प्रिय था, और वे नियमित रूप से वहां आया करते थे।
ऋषि कश्यप ने सती को यह सरोवर उपहार में दिया, तभी से इसका नाम पड़ा सतीसर’

जलोद्भव’ नामक एक दुष्ट दैत्य ने इस सरोवर में आश्रय लेकर आसपास के लोगों को त्रस्त कर दिया।
लोगों ने कश्यप ऋषि से विनती की कि वे जलोद्भव के अत्याचार से उन्हें मुक्त करें।

ऋषि कश्यप ने अपने नागवंशी पुत्र ‘अनंतनाग’ को बुलाया और जलोद्भव का नाश करने को कहा।
योजना बनाई गई कि सरोवर का जल निकालकर उसे सुखा दिया जाए, ताकि जलोद्भव बाहर आए और तब भगवान विष्णु उसे मार सकें।

इसी योजना के तहत सरोवर के पश्चिम में वराहमुख’ (आज का बारामुल्ला) नामक घाटी खोदी गई, जिससे पानी बहाकर दूर स्थित सागर में पहुंचा दिया गया। उस सागर को कश्यप सागर’ कहा जाता था, जो आज का कैस्पियन सागर है।

जल समाप्त होते देख जलोद्भव बाहर आया और खुले मैदान में भगवान विष्णु द्वारा मारा गया।

इस सूखी भूमि पर फिर वैदिक अध्ययन का केंद्र स्थापित हुआ।
जहाँ इतनी समृद्ध संस्कृति का विकास हुआ, वहाँ बसा नगर है – श्रीनगर’
अनंतनाग, कश्यप के पुत्र द्वारा बसाया गया एक और नगर है, जो आज अनंतनाग जिले का मुख्यालय है।

श्रीनगर जल्दी ही प्रसिद्ध हो गया।
देवी गौरी और भगवान गणेश यहाँ नियमित रूप से आया करते थे।
गौरी के आगमन का मार्ग था – गौरी मार्ग’, जो आज गुलमर्ग’ कहलाता है।

कल्हण द्वारा लिखित राजतरंगिणी’, जो नीलमत पुराण पर आधारित है, कश्मीर के इतिहास का प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है।
दुनियाभर के विद्वान कश्मीर के अध्ययन के लिए इसी ग्रंथ का उपयोग करते हैं।

ब्रिटिश पुरातत्वविद एम.ए. स्टीन ने राजतरंगिणी का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था।

कश्मीर है किसका?

कश्मीर है देवी शारदा का।

नमस्ते शारदे देवी कश्मीरपुरवासिनि
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं देहि मे

शारदा देवी को कश्मीरपुरवासिनी’ कहा गया है।
कश्मीरी लिपि को ‘शारदा लिपि’ कहा जाता था और अध्ययन केंद्रों को ‘शारदा पीठ’।
पूरा कश्मीर शारद देश’ कहलाता था।

8वीं सदी में आदि शंकराचार्य कश्मीर आए।
उस समय कश्मीर शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था।
उन्होंने गोपलाद्रि पर्वत पर सौंदर्यलहरी’ की रचना की, जो शंकराचार्य पर्वत’ (Shankaracharya Hill) के नाम से प्रसिद्ध है।

आज जो शारदा मंदिर पाक-अधिकृत कश्मीर में कृष्णगंगा नदी के किनारे है, उसी की भव्यता देखकर शंकराचार्य को श्रृंगेरी में मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली।

श्रृंगेरी मंदिर की शारदा मूर्ति (चंदन की बनी) मूलतः कश्मीर से लाई गई थी।

कश्मीर में भ्रमण के दौरान, एक कश्मीरी पंडित दंपती ने शंकराचार्य को अपने घर ठहरने का आग्रह किया।
शंकराचार्य ने शर्त रखी कि वे और उनके शिष्य अपना भोजन स्वयं पकाएँगे।
रात को पकाने की सामग्री तो मिली, लेकिन अग्नि प्रज्वलन की सामग्री नहीं दी गई।
शंकराचार्य ने यजमानों को न जगाने का आग्रह किया और उपवास करके सो गए।

सुबह यह जानकर यजमान बहुत दुखी हुए।
जब महिला ने पानी छिड़ककर अग्नि प्रज्वलित किया, तो शंकराचार्य चकित रह गए।
उन्हें समझ में आया कि कश्मीर के साधारण जन भी कितने योग्य और शक्तिशाली हैं।

11वीं सदी में रामानुजाचार्य भी कश्मीर आए।
उन्होंने केवल अध्ययन हेतु ब्रह्मसूत्र का पाठ किया और श्रीभाष्य’ की रचना की।
उन्हें नोट्स लेने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्होंने और उनके शिष्य कंठस्थ करके ग्रंथ रचा।
तीन महीनों में यह स्मृति आधारित रचना पूरी हुई – जो श्रीवैष्णव संप्रदाय का मूल ग्रंथ है।

विद्या की अधिष्ठात्री देवी शारदा रामानुज के सामने प्रकट हुईं और उन्हें हयग्रीव मूर्ति भेंट की।

तो कश्मीर किसका है?

कश्मीर है भट्ट पंडितों और विद्वानों का।

नीलमत पुराण के अनुसार कश्मीर का इतिहास 5100 वर्षों पुराना है।
प्राचीन काल में इसकी पूरी जनसंख्या हिंदू और बौद्ध थी।

जब इस्लामी आक्रांता दुनिया भर में आक्रमण कर रहे थे, तब लोहाणा वंश के वीर राजाओं ने भारत की पश्चिमी सीमाओं की रक्षा की।
लोहाणा राजा भगवान राम के पुत्र लव की सेना में वीर योद्धा थे।
आज का लाहौर, रामायण कालीन लवपुरी’ था।

जो इतिहास को भूलते हैं, वे उसके दोहराव का दंश झेलते हैं।

🙏 — विंग कमांडर सुदर्शन
(मूल अंग्रेज़ी लेख का हिंदी अनुवाद)

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