फिर क्या किया रावण ने प्रभु?
रावण का परचम लहराता गया और दुर्गा के बल पर वह दिग्दिगन्तर तक जीतने लगा और मेघनाद ने तो इंद्रदेव को ही जीत लिया,जिससे उसका नाम इंद्रजीत विख्यात हो गया।देवी निकुम्भला मेघनाद के रथ पर व तारा देवी रावण के रथ पर आया करती थी और शत्रुओं को धूल चटाया करती थी और एक तरफ विजय दिलाया करती थी।रावण का परचम हर लोक में लहराने लगा।
अर्जुन रावण का रिश्ते में एक भाई था,जिसे अहिरावण कहते थे।उसने जब दुर्गा की प्रचंड शक्ति उनके साथ देखी तो वह पाताल लोक में भगवती पाताला महामाया की नित्य आराधना करने लगा और उन्हें भेंट चढ़ा चढ़ाकर प्रसन्न कर लिया।भगवती पाताला देवी ने वर देने को कहा तो अहिरावण ने कहा कि मुझे भिन्न भिन्न रूप प्रकट करने की शक्ति दो।मेरे पाताल के सात परकोटे बनाओ और भीतर किसी को प्रवेश की अनुमति न हो और आपके होते हुए मुझे कोई मार न सके।
देवी ने कहा तथास्तु।लेकिन मेरी एक शर्त होगी,यदि तुम निष्पाप व्यक्ति की भेंट मुझे अर्पित करोगे तो मैं नाराज होकर लुप्त हो जाऊंगी क्योंकि पुण्यात्मा मेरी धमनियों में बहती शक्ति हैं।
बाकी तुम मुझसे रक्षित रहोगे।लेकिन मैं यहां शिव के बिना नहीं रह सकती।तुम मेरे निकट शिवलिंग स्थापित करो,जिससे मुझे बल मिलता रहे क्योंकि मैं शिव की ही आल्हादिनी शक्ति हूँ।
इस प्रकार योगिनी पाताला देवी पाताल लोक में अहिरावण की रक्षा करने लगी और अहिरावण ने पाताल में अपना लंबा चौड़ा राज्य बसा लिया और कभी कभी ऊपर धरातल पर आकर भी अपना राक्षशी स्वभाव दिखलाकर उन्हें सताया करता था।
इस प्रकार राक्षश कुल में दुर्गा ही दुर्गा की पूजा होने लगी और इधर पार्वती माता बहुत उदास हो चली।
फिर भगवती पार्वती ने क्या हल निकाला अपनी समस्या का प्रभु❓क्या उन दुर्गाओं के असुर कुलों में वचन बध्य होने से कोई समस्याएं उत्पन्न हुई❓
हाँ अर्जुन❗देवी दुर्गा ने भोलेनाथ से कहा कि देखा❗रावण व उसके कुटुम्बी जनों व मित्रों ने तो अत्याचार ही अत्याचार करने आरम्भ कर दिए मेरी आड़ लेकर।
उसने नौ ग्रह भी बंदी बना लिए और काल को परास्त कर अपनी शैया के पाँव से बांध लिये, इंद्रदेव को मेघनाद ने परास्त करके सारे दिव्य अस्त्र ले लिये।
मैं तो वचन बध्य होकर कुछ नहीं कर सकती,भोलेनाथ आप कुछ करिए,मेरी योग विभूतियां सब वचन में बंध वहाँ रहने को मजबूर हैं।
शिवजी ने कहा,पार्वती❗तुम्हारे कारण तो मेरी ऊर्जा भी वहाँ जाने लगी क्योंकि जहाँ जहाँ जिस जिस रूप में तुम व्याप्त हो,वहाँ वहाँ मैं भी आपमें रहता हूँ।
लेकिन भगवती अम्बे तुम चिंता मत करो।
ये रावण कुल व अन्य असुर कुल के सभी सदस्य विष्णु जी से बहुत डाह मानते हैं क्योंकि नारायण ने भिन्न भिन्न अवतार लेकर दानवों का संहार किया है।
लेकिन इस बार श्री हरि राम रूप में आ गए हैं क्योंकि रावण ने त्राहि त्राहि मचाकर पृथ्वी पर भयंकर उत्पात मचाया तो देवी भूमि व सभी देवता व ब्रह्माजी की पुकार पर उन्होंने दशरथ कुल में अवतार ले लिया और उन्हें वनवास भी मिल गया,इसी वनवास काल में तुम्हें उनके बंधन से मुक्ति का मार्ग मिलेगा।
पार्वती जी ने पूछा कि वो कैसे मुक्त करेंगे प्रभु❓
हे महेश्वरी❗तुमने जिस जिसको भी वर दिए,वो तुम्हारी महानता थी क्योंकि भक्ति वश तुम्हारी मजबूरी थी वर प्रदान करना।
परन्तु हे सयानी परमेश्वरी भगवती❗तुमने हर जगह वरदान देते समय शर्त निश्चित करके उनकी रक्षिता व मृत्यु का तोड़ निकाल रखा है।तुम क्यों अनजान बन मुझसे पूछती हो,सब कुछ तो तुम जानती ही हो।फिर भी पूछ रही हो तो बता देता हूँ कि वे अभिमान मद मोह वश इतने उद्दंड हो उठेंगे कि तुमने जो शर्त रखी हुई है, वे शर्तें वे भूलते चले जायेंगे अथवा ऐसी परिस्तिथियाँ बनती चली जायेगी कि जो जो शर्त तोड़ता जाएगा,वहीं वहीं से तुम्हारे बंधन छूटते चले जायेंगे।
हे आशुतोष ❗हे त्रिपुरारी❗ऐसा क्या परिस्थिति बनेंगी,कुछ तो बताओ।मैं बड़ी व्यग्र हूँ वहाँ से लौटने को।
हे लोकेश्वरी❗प्रभु श्रीराम ही तुम्हारे लिए वे परिस्तिथियाँ बनाएंगे।इसके लिये श्री राम को तुम्हारी पूजा करनी पड़ेगी,उन्हें तुम्हारे लिये व मेरे लिये व्रत,जप,तप व यज्ञ करने पड़ेंगे और हनुमान जी को भी तुम्हारी व मेरी साधना करनी होगी।
इसका मतलब समझाएं भोलेनाथ❗
इसका मतलब स्पष्ट है देवी❗अब तक रावण ने आपको प्रसन्न किया और अब राम जी व हनुमान जी आपको प्रसन्न करेंगे।जिधर का पलड़ा भारी होगा,वहीं विजय दिलवाओगी आप।
और आप मेरे हर हर❗
जहाँ देवी,वहाँ मैं, जहाँ मैं, वहीं देवी।
यही रावण जान गया था।अब राम व हनुमान भी इसी भेद को जानेंगे और मानेंगे।
क्रमशः ●●●●●●●●●●●