अहिरावण की मौत तीन जगह छिपी है⁉
ये तो बड़ी असमंजस वाली बात है माँ❗मौत का रहस्य बताइए माँ❗ और वचन देता हूँ कि जो जो कहोगी,वह मैं करता चला जाऊँ।
सुनो भक्त हनुमान❗इन असुरों के अंदर एक विशेषता होती है कि ये अमर होने के लिये किसी भी सीमा तक चले जाते हैं क्योंकि ये अत्यंत भोगवादी होते हैं और हमेशा को वासनासक्त होकर मात्र स्वयं की तृप्ति ही चाहते हैं।
ये गुरु भी धारण करते हैं, गुरुमंत्र भी जपते हैं, कठोर साधना भी करते हैं परन्तु भगवान और गुरु को भी दबाव में लाकर अपनी इच्छानुसार चलाना चाहते हैं और माता पिता को भी बंदी बना डालते हैं।इनका कोई सगा नहीं होता,हर बात में ये स्वार्थी होते हैं और केवल अपने आनन्द के लिये ये अपनी प्रजा को भी कुचल डालते हैं।ये केवल भोग विलास में ही आनन्द ढूंढते हैं।अतः इन आसुरी वृत्तियों का मार्जन इनकी तपस्यायों से भी नहीं होता क्योंकि तप का आधार स्वार्थयुक्त होने से इनकी तृष्णा शांत नहीं होती।अतः ये केवल अपने सुख के लिए दूसरों के सुख व अपनी आयु की सुरक्षा के लिए दूसरों की आयु व अपनी प्रसिद्धि के लिए दूसरों का दमन तथा मनुष्य व देव इनकी शत्रुता के निशाने हैं।
अतः रावण की तरह अहिरावण ने भी अपनी मृत्यु के बंदोबस्त किए हुए हैं।
इसलिये वो निश्चिंत है।
वो क्या बंदोबस्त हैं भुवनेश्वरी⁉
बाह्य बंदोबस्त के छह किले तो तुम तोड़ आये और सातवां किला मकरध्वज का था,उसमें तुम्हारे पुत्र ने तुम्हारी सहायता की और भीतर का गुप्त मार्ग बता दिया जो आठवां बंदोबस्त था।
यदि मकरध्वज तुम्हारी सहायता न करता तो तुम अहिरावण की आंतरिक किले की भूल भुलैया में फंसकर रह जाते और राम लखन के तुम्हें यहाँ दर्शन तक न हो पाते।
अब सुनो,उसकी मौत के तीन बंदोबस्त।
मेरे चरणों में रखा हुआ यह नीलकमल,जिसमें इसकी तंत्र शक्ति भरी हुई है, इसलिये यह नीलकमल कभी मुरझाता नहीं।
अगर भूले से भी यह कमल कोई तोड़कर कुचल दे तो इसकी भीतरी तंत्र मंत्र ऊर्जा समाप्त और यह शत्रु द्वारा मारा जा सकेगा।
लेकिन इस नीलकमल को कोई तोड़ नहीं सकता क्योंकि इसने इसे मेरे चरणों में अर्पित कर रखा है।
इसकी चालाकी देखो कि यह जानता है कि जब तक दुर्गा के चरणों में ये नीलकमल है,इसे कोई कुचल नहीं सकता क्योंकि यह नीलकमल जो कुचलने की कोशिश भी करेगा तो वह मुझ दुर्गा के कोप का भाजन बनेगा और मैं उसे भस्म कर दूँगी।अतः इसने अपनी मौत की सुरक्षा का प्रबंध अच्छा खासा कर रखा है।मेरे चरणों में चढ़ा यह नीलकमल चढ़ाकर।यह इसकी श्रद्धा नहीं,इसकी मौत का पहला बंदोबस्त है क्योंकि इस नीलकमल की तंत्र ऊर्जा इसके मरने पर इसे तुरंत जिंदा कर देगी।तब कोई इसे आरे से भी चीरे तो नीलकमल में पड़ी तंत्र ऊर्जा से इसकी देह के बिखरे परमाणु पुनः जुड़ने लगेंगे और यह पुनः जीवित हो उठेगा।इस प्रकार यह हजातों बार मारे जाने पर भी न मरेगा।
लेकिन नीलकमल के कुचले जाने पर आप कुपित क्यों होंगी विश्ववनध्ये अम्बे❗जरा स्पष्ट करें महादेवी।
देखो रामभक्त हनुमान❗जो पदार्थ देवों व गुरु और भगवान के चरणों में अर्पित किया जाता है, वह एक अमूल्य निधि हो जाता है और वह भक्त की नहीं भगवान की प्रिय भेंट हो जाती है।
ईश्वरीय चरणों में चढ़ी हुई चीज का अपमान,ईश्वर का ही अपमान है।ऐसे में इस नीलकमल पर भी मात्र मेरा अधिकार है। तो इसके कुचलने पर मेरे मान को कुचलने के बराबर ही अपराध होगा जो मेरे लिये असहनीय बात है।सभी देव देवी एक आचार संहिता के तहत कार्य करते हैं जो भक्त व भगवान सबको शास्त्रानुसार मान्य होती है।अतः मान वाली वस्तु की तौहीन नहीं देखी जा सकती।
इसीलिये इसने अपनी मौत का ये पहला बंदोबस्त मुझे निमित्त बनाकर किया हुआ है। और मैं विवश हूँ अपने चरणों में पड़े इस नीलकमल की रक्षा के लिये।
तो मुझे क्या फायदा हुआ ये जानकर माँ।क्योंकि अब मैं ये उस पापी की तंत्र ऊर्जा से भरा हुआ नीलकमल कुचल ही नहीं सकता क्योंकि ये आपके चरणों में अर्पित है और दूसरी बात मैं आपसे युद्ध भी ही नहीं सकता।मैंने चामुण्डा देवी व निकुंबला देवी से भी कोई युद्ध नहीं किया।
तब इसकी मृत्यु किस प्रकार सम्भव होगी माँ❓
तभी तो तुम्हें निमित्त बनाया हनुमान इसकी मौत का।
वो कैसे माँ⁉मैं नरक में जाने को तैयार हूँ, पर आपके चरणों की भेंट नहीं कुचलूँगा।
परन्तु आप खुद क्यों नहीं दूसरा उपाय सोचती,आप कृपा कीजिये माँ क्योंकि विश्व का कोई ऐसा कार्य नहीं जो आप न कर सकें।अतः दया की मेहर करें मेहरवाली मां❗
प्रिय भक्त हनुमान,
यहाँ भी अपनी मौत का दूसरा पक्का बंदोबस्त दुष्ट अहिरावण ने यही कर रखा है कि नीलकमल तभी पूरा मुरझाएगा, जब मेरी प्रतिमा यहाँ से हटेगी।क्योंकि जब तक मेरी प्रतिमा है, तब तक नीलकमल की ऊर्जा मेरी ऊर्जा से जुड़ी रहेगी और कमल कुचलने व मुरझाने पर पुनः ऊर्जा से भर जाएगा क्योंकि यह नित्य उपासना करके इसे मेरी नाभि कमल की ऊर्जा से संयुक्त कर देता है और यह नील कमल हमेशा ताजा रहता है। यह है इसकी मृत्यु का दूसरा पक्का बंदोबस्त।
इसलिये प्रिय वत्स हनुमान,मैं इस कमल को नहीं कुचल सकती।इसीलिये तुम्हें निमित्त बनाया है।
निमित्त तुम बनोगे,युक्ति मेरी होगी।वाणी तुम बोलोगे,सुर मेरा होगा।कार्य तुम्हारा शरीर करेगा और प्रेरणा मेरी होगी।अब समझे हनुमान❗तुम्हें निमित्त क्यों चुना।
देखो हनुमान❗भगवान को दुनिया के काम बनाने को किसी न किसी देह का तो प्रयोग करना ही होता है।हर कार्य केवल कल्पना या संकल्प से नहीं होता, निमित्त तो निर्धारित करना ही होता है देवों को।अतः तुम बस करते रहो,जो जो मैं कहूँ, मना मत करना,ये तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम इस पुनीत यज्ञ में निमित्त चुने गए हो।
अब तो इस दुष्ट की मौत और भी जटिल हो गयी तंत्र विद्येश्वरी माँ।जब नीलकमल आपकी मूर्ति से सम्बंधित है।फिर कैसे होगा,इसका उपाय बताओ दुर्गेश्वरी।
इसके लिये मेरी मूर्ति या तो खंडित की जाए या नीचे धंसा दी जाये।
ये भी असम्भव है माँ❗जो यह घृणित कार्य करेगा,युगों युगों तक नरक में पड़ेगा।
लेकिन तुम्हें नहीं जाना होगा नरक में वत्स।ये मेरा पक्का वायदा है क्योंकि मूर्ति में से मैं निकल जाऊंगी,धंसने से पहले।
जब देव के प्राण ही मूर्ति में नहीं,तो वह मात्र जड़ पदार्थ है।तब तुम्हें दोष न लगेगा हनुमान क्योंकि अहिरावण के हाथ में तलवार लेते ही मैं तो मुक्त हूँ।
मूर्ति में न रहूंगी तो मेरी नाभि से नीलकमल पोषित नहीं होगा और यह कुचलते ही मुरझा जाएगा।
लेकिन जिस मूर्ति को आपका आवास मिला,तो वह पदार्थ भी तो पूजनीय है।अतः उसे खंडित नहीं करना चाहिए।इसके लिये आपको मुझे अपराध मुक्त करना होगा।
और तीसरा बंदोबस्त क्या है महामाया❓
क्रमशः●●●●●●●●●●