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तुझे किस किसने नहीं ध्याया मेरी माँ,भाग-10

दुर्गा की प्रचंड ताकत के विषय में सुनकर हृदय श्रद्धा से भर गया माधव और उनकी वचन निष्ठा भी अद्भुत थी,खुद मानसिक रूप से पीड़ित रही,परन्तु उत्तरदायित्व पर कितनी दृढ़ता थी,ये सब उनको जगतपूज्य ही बनाता है, तभी दुनिया उनका लोहा मानती है।और हनुमान जी की भी  घोर परीक्षा लेने का तरीका बेमिसाल निकला कि टस से मस न हुई।आनन्द आ गया लोकेश प्रभु

परन्तु एक प्रश्न है माधव,उसे भी सुलझाओ।

कहो न प्रिय अर्जुन।तुम्हारे प्रश्नों के बहाने ही सही,आज सारा दिन दुर्गा की चर्चा भी हो जाएगी और मेरा हृदय भी उनकी कृपा लीला से तृप्त होगा।बोलो अर्जुन,क्या प्रश्न है

हे मुरलीधर❗रावण की लंका में चामुण्डा,तारा देवी व नारसिंही(निकुम्भला)व अहिरावण के पाताल लोक में पाताला देवी आदि।

तो रावण ने इन्हीं देवियों की उपासना ही क्यों की।अन्य देवियाँ भी तो हैं।या फिर कोई खास मकसद से ही इन्हें ध्याया।

उत्तम प्रश्न है तुम्हारा पार्थ❗चलो,ये गुत्थी भी सुलझाता हूँ।अन्य रानियां भी बड़े चाव से सभी प्रसंग सुन रही थी।

श्रीकृष्ण ने कहा

अर्जुन❗रावण ब्राह्मण पुत्र अवश्य था परन्तु राक्षसी केकशी के गर्भ से जन्मा था केकशी असुरराज सुमाली की पुत्री थी जो सुमाली के उकसाने पर ब्राह्मणों को राक्षस वंश में बदलने आयी थी और वह कामयाब भी हुई क्योंकि विश्रवा मुनि वेद पढ़ाते थे और केकशी रावण को उनका प्रयोग बुरे कार्यों में करवाती थी।तंग होकर विश्रवा मुनि तप करने निकल गए और केकशी को पूरा समय मिल गया बच्चों को कुसंस्कारी बनाने का।कुम्भकर्ण स्वरूपनखा भी राक्षसी विद्या सीखने लगे माता से।लेकिन केवल विभीषण ही नहीं सीखता था परन्तु रावण ने उसे बहुत भयभीत किया तो बड़े भाई के डर से राक्षसी विद्या तो सीख ली,लेकिन प्रयोग नहीं किया।वह केवल वेद उपनिषद आदि ही चाव से पढ़ता था।

जब रावण दशानन भी बन गया तो अधिक बलशाली होने से वह उपद्रवी भी हो गया।वह कैलाश उखाड़ने में असफल,महादेव को लंका लाने में असफल रहा तो पार्वती की उपासना करने में भय मानता था क्योंकि कैलाश उखाड़ने के दण्ड का विधान पार्वती ने ही किया था कि तेरी ये भुजाएं व अभिमानी शीश सब एक दिन कटकर गिर जाएंगे।खबरदार आज के बाद महादेव से कभी आत्मलिंग मांगा या दोबारा लंका जाने की मंशा की।तू चाहे लाखों वर्ष तप कर ले,तेरी इच्छा कभी पूर्ण नहीं होगी।मेरी इच्छा के बिना तो तू अब कैलाश भी नहीं आ सकेगा।रावण डरकर भाग गया था।

इसलिये वह पार्वती से भयभीत रहता था।

लेकिन चामुण्डा देवी तामसी देवी हैं, तारा देवी भी तामसी देवी हैं, नारसिंही देवी भी व पाताला देवी भी।रावण ब्राह्मण होते हुए भी तामसी हो गया था।वह सत्व की ओर अब चल ही नहीं पा रहा था।तामसी देवी जल्दी सिद्ध हो जाती है।सात्विक देवी के लिये कठोर व्रत तप करना पड़ता है और सतोगुणी आहार व्यवहार ग्रहण करना पड़ता है जबकि रावण तो ब्राह्मणों,ऋषियों मुनियों के रक्त का प्यासा हो गया था।इसलिये वह सात्विक उपासना के लायक नहीं रह गया था।इसीलिये उसने तामसी देवियों को ध्याया।

तामसी देवी जल्दी प्रसन्न क्यों हो जाती हैं कमलनयन❓

क्योंकि अर्जुन इन देवियों का प्राकट्य ऐसे वातावरण में हुआ कि इन्हें तामसी वृत्तियों का व तामसी वंशों का (राक्षसों)का संहार करना था।तब इन्हें असुरों के रक्त को पीना व मांस चबाना था क्योंकि असुर लोग मरे हुए की राख से भी जीव प्रकट कर देने की विद्या जानते थे क्योंकि वे सब मायासुर की विद्या जानते थे और रक्त जमीन पर गिरे तो उन रक्त बिंदुओं से भी उसी समान दैत्य पैदा हों, ऐसे ऐसे वर प्राप्त किये हुए थे,तो न हड्डी बचे,न मांस और न रक्त,उन देवियों को वही सब करना था तो उनका स्वभाव तामसी होगा,तभी तो वे यह सब कर पाएंगी।अतः ये सब तामसी दुर्गाएँ थीं।उनका भोजन ही रक्त,हड्डी चबाना व मांस खाना आदि सब हो गया।

इसलिये हे कुंतीपुत्र❗ रावण ने श्मशानी देवियों का ही आवाहन किया।वह चामुण्डा देवी की भी श्मशान में जाकर साधना की व तारा देवी की भी व मेघनाद ने नारसिंही की क्योंकि उन तांत्रिक साधनाओं में रोज मुर्दे का भोग लगाया जाता है और मुर्दे के आसन पर ही साधना की जाती है और अपना रक्त भी अनुदान किया जाता है।

श्मशानी देवी की भूख जब शांत होती है तो वे शीघ्र प्रसन्न हो उठती हैं और वर देने को आतुर हो उठती हैं।

यदि कोई इन्हें श्मशान में न ध्याये तो ये क्या खाती हैं प्रभु❓

वो सब इन्हें महाकाल नियंत्रण में रखते हैं जो कि हर श्मशान पर नित्य रमण करते हैं भद्रकाली के साथ।

तो कैलाश पर महाकाल कब रहते हैं प्रभु❓

कैलाश पर शिव जी का शांत रूप महादेव रहते हैं अपनी शांत गौरी के साथ।

महाकाल रूप में वे महाकाली के साथ हर श्मशान में वास करते हैं।

ईशान कोण में वे चौसठ योगनियों के साथ निवास करते हैं।

जहाँ जहाँ जैसी व्यवस्था करनी होती है, वहाँ वहाँ शिव पार्वती उसी रूप से विराजते हैं अर्जुन।

देवी चामुण्डा कब अवतरित हुई भुवनेश❓

वे पार्वती के बदन से अयोनिजा बनकर प्रकट हुई थी जो पार्वती के प्रत्येक कोष से ऊर्जा प्रवाहित होकर प्रकटी, तब कौशिकी नाम हुआ।

चन्ड मुण्ड का वध करने के कारण ही उनका नाम चामुण्डा पड़ा पार्थ।सभी असुरों का रक्त पान किया व चन्ड मुण्ड के शीश काटकर गले में हजारों मुंडों की माला पहनी।शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें श्मशान स्थान दिया कि खूब मुर्दों पर नृत्य करो नित्य देवी।इसलिये वे श्मशान में रहने लगीं।

तारा देवी व चामुण्डा दिन में व भद्रकाली रात में श्मशान पर विचरती हैं।

पार्वती माता करोड़ों रूपों में इस धरा पर निवास करती हैं।कहीं रजोगुण रूप में,कहीं सतोगुण रूप में व कहीं तमोगुण रूप में।

मनुष्यों के भीतर भी अष्टकमल में देवी पार्वती ही हर चक्र में बाएं दाएं डाकिनी,शाकिनी,राकिनी, हाकिनी,लाकिनी,काकिनी,हंसिनी आदि के रूप में सुशोभित हैं प्रिय महाबाहो।

यही दुर्गा चौदह भुवन में न्यारे न्यारे रूपों में विराजित हैं अर्जुन।शिव शक्ति का सकल ब्रह्मांड में

पसारा है अर्जुन।

ये अंगारक,संहारक प्रचंड शक्ति देव देवी हैं धर्नुधर।

इनके बिना ब्रह्मांड की कल्पना नहीं की जा सकती पार्थ।

ये मांस खाकर भी मांसाहारी नहीं अर्जुन क्योंकि मांस प्रकृति का हिस्सा है अर्जुन।

ये समझ से परे हैं प्रिय अर्जुन।

जी करुणायन केशव❗समझ आ गया।इसीलिये हनुमान जी इनसे लड़े नहीं।

अब ये बताइए प्रभु कि हनुमान जी ने और भी देवियों को मनाना पड़ा लंका में या राम जी ने भी मनाया।

हाँ पार्थ ❗हनुमान जी तारा देवी से भी हारे थे और राम जी ने तो तारा देवी को मनाने के लिये महामाया का ही सहारा लिया था क्योंकि तारा देवी ने राम जी व हनुमान जी की नाक में दम कर रखा था।तब हनुमान जी को छल का सहारा लेना पड़ा था और मेघनाद का भी यज्ञ हनुमान व लक्ष्मण आदि ने भग्न किया था अन्यथा राम जी की विजय कभी न होती।राम जी ने भी छल की अनुमति दी थी और महर्षि अगस्त्य ने युद्ध के मैदान में ही तीन दिन की उपासना करवाई थी राम जी से,नहीं तो रावण का तारा तंत्र तोड़ना असम्भव था वीर अर्जुन।

तो हे दामोदर❗मुझे राम रावण के युद्ध में हनुमान जी व राम जी की देवी उपासना व छल विषयक सब कथा सुनाओ रणछोड़।मैं तो बहुत आनन्दित महसूस कर रहा हूँ ये सब देवी प्रसंग सुनकर।

हाँ पार्थ देवी चामुण्डा से भी अति उग्र थी तारा देवी क्योंकि दस महाविद्याओं में ये दूसरी महाविद्या हैं।

तामसी देवी और महाविद्या❓ये कैसे सम्भव है राधेवल्लभ❗ये देवियाँ तामसी भी और महाविद्याएं भी❓क्या ये महाविद्या भी तामसी विद्या हैं❓

नहीं कौन्तेय❗विद्या हमेशा सात्विक ही होती है, जो अत्यंत शुद्ध प्रकाश से परिपूर्ण होती हैं।

तो फिर पहले ये ही गुत्थी सुलझाओ कालिंदी शुचे❗राम जी व हनुमान जी की बात बाद में सुनूँगा।घोर आश्चर्य प्रभो❗तमस देवी और महाविद्या⁉ बताओ मेरे जगतपति❗

क्रमशः●●●●●●●●●

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