अब तो हनुमान जी के आगे सब दृश्य तैर गए लंका दहन के और समंदर में अग्नि शमन के।बालक पर विश्वास होने लगा कि यहाँ तक तो सत्य है कि मकरी ने माथे के पसीने की बूंद को पी लिया होगा।पर आगे की कथा मुझे नहीं पता।चलो आगे क्या कहानी है, अब तो जिज्ञासा बढ़ गयी।अतः बोले,हां तो बालक,बताओ कि मकरी तो स्वर्ग सिधार गयी,अहिरावण भी चला गया तो बालक कहाँ गया❓
समुद्रदेव के मन में दया भर आयी और वे मेरा भरण पोषण करने लगे।मेरी माता मकरी थी,इसलिये मेरा नाम मकरध्वज रखा।
मेरे पिता की अष्ट सिद्धि नवनिधि का मुझमें जन्मजात संचार है। समुद्रदेव ने मुझे पिता जैसी गदा भी सौंप दी।
मैं समुद्र में इधर उधर तैरता व कभी बाहर आता,कभी समुद्र गर्भ में जाता।लेकिन एक दिन अहिरावण फिर मुझे समुद्र में मिला तो मुझे अभद्र भाषा में बोला कि कौन है रे तू।मुझे बुरा लगा कि तनिक भी शिष्टाचार नहीं इसमें तो।मैंने उत्तर दिया कि तुम अपनी राह चलो व मैं अपनी।परिचय देने की आवश्यकता ही नहीं।
इस पर वह बिगड़ गया और मुझे पीटने चला तो मैंने भी पीट पीट कर अधमरा कर दिया।इस पर वह मुझसे क्रोधित होने के बजाय प्रसन्न हुआ और मेरी पीठ ठोककर बोला कि इतना बल तो मुझमें व रावण कुम्भकर्ण व अन्य में कहीं नहीं देखा जो मुझ जैसी बज्र काया वाले को तुमने चित कर दिया।मैं तुम्हें प्रसन्न होकर अपना मुख्य द्वारपाल बनाता हूँ।तुम पर मुझे गर्व है।
वह मुझे यहाँ ले आया।एक निश्चित ठिकाना मिला।अहिरावण मेरा बहुत आदर करता है।
बालक इसमें संदेह नहीं कि तुम महापराक्रमी हो।तुम्हारी कहानी भी झूठी नहीं लग रही अब,परन्तु एक समस्या है कि भला पसीने से भी कहीं नर सृष्टि होती होगी।क्या तुम्हारे मन में ये प्रश्न नहीं उभरता⁉
जी मान्यवर❗मैंने समुद्रदेव से यही पूछा था तो उन्होंने कहा कि श्रीमत हनुमान जी रुद्र अवतार हैं।जो शिव कर सकते हैं, वही हनुमान जी कर सकते हैं।
महादेव के पसीने से गौरनन्दी प्रकट हुए,जिनका नाम अंधकासुर था और उनके आंख के गर्म जल से भौमदेव प्रकट हुए जो मंगल ग्रह रूप में स्तिथ हैं। श्रीयुत हनुमान जी शिव अवतारी हैं तो क्यों न उनके पसीने में सृष्टि सम्भव नहीं।तब मुझे पक्का विश्वास हो गया।
हनुमान जी बड़े ही कोमल भाव में भर गए और अपने पुत्र के लिये उनका हृदय व आंख दोनों भर आयी।उन्होंने अपनी बाहें फैला दी और बोले,आओ पुत्र,मेरे हृदय से लग जाओ।
जी नहीं,आपने मुझे बार बार झूठा कहा,इसलिये आपके गले नहीं लगूंगा।मैं तो केवल युद्ध करूंगा आपसे।
अपने पिता के गले नहीं लगोगे पुत्र⁉
पिता❗आप मेरे पिता⁉नहीं,मेरे पिता ऐसे नहीं हो सकते।जरूर आप मुझसे मेरे स्वामी अहिरावण का राज उगलवाना चाहते हैं।मैं कैसे मान लूं कि आप मेरे पिता हैं।
मेरे प्रिय पुत्र,जिस तरह भी तुम्हें विश्वास हो,उस तरह मेरी परीक्षा कर लो,जैसे मैंने ठोक बजा कर तुम्हारी परीक्षा ली,तब तुम्हें अपना पुत्र माना।
ठीक है तो मुझे ठोस प्रमाण दो मेरे पिता होने का।
तुम्हें पता है कि मेरा नाम हनुमान क्यों हैं❓
जी पता है, मेरे पिता श्री जी की ठोड़ी में इंद्र ने बज्र से प्रहार किया था, तो उनकी हनु(ठोड़ी पर)पर चोट लग गयी थी,जो थोड़ी सी टेढ़ी हो गयी थी,तभी उनका नाम हनुमान पड़ा।
तो देखो मेरी हनु,अब तक चोट का निशान और मेरी तरह अन्य वानर पूंछ नहीं बढ़ा सकते। तीसरी बात कि मैं श्री राम सेवक हूँ और तुम्हारा स्वामी मेरे प्रभु राम व उनके अनुज लक्ष्मण को यहाँ पाताललोक में ले आया है, उन दोनों को मैं मुक्त कराने आया हूँ लेकिन मेरा ही पुत्र मेरे विरोध में खड़ा है।
मकरध्वज ने झट से अपने पिता श्री के चरण कमल पकड़ लिये।
छमा करो हे पिता श्री❗मेरी मति कितनी मारी गयी कि प्रथम बार पिता श्री मिले और मैं युद्ध कर बैठा।मुझ कपूत को छमा करो पिता महाराज।
हनुमान जी ने उन्हें उठाकर अपनी छाती से चिपटा लिया।दोनों पिता पुत्र एक दूसरे के बदन को प्रेमाश्रु से भिगो रहे थे।
अब बेटे को छाती से लगाकर हनुमान जी बोले।वत्स❗अब तो बता दो कि क्या अहिरावण किसी को यहाँ लाया है❓
जी पिता श्री ,वह यहाँ दो सुंदर युवकों को कंधे पर डालकर लाये हैं।मुझे नहीं पता था पिता श्री कि वे श्री राम लक्ष्मण हैं।मेरे अहो भाग्य कि उनके सुंदर मुख को मैंने निहारा।अब तो जीवन धन्य हो गया।पिता भी मिल गए व पिता के आराध्य भी।
तो कुछ पता है बेटे कि वह क्यों लाया है यहाँ उन्हें❓
जी पिता महाराज❗मुझे सख्त निर्देश देकर गए थे भीतर कि आज प्रातः ही वह इन दो नरों की बलि देंगे महामाया को,तुम भीतर किसी को मत आने देना, ये सख्त निर्देश है मुझे।उसी का पालन कर रहा था मैं पिता महाराज।
तो बेटा, मुझे अंदर जाने दो जल्दी,प्रभु संकट में हैं।
लेकिन पिता जी❗मैं धर्मसंकट में हूँ कि जिसका नमक खाया,उससे दगा नहीं कर सकता।मुख्यद्वार की रक्षा करना मेरा धर्म है।क्या आप अपने पुत्र को धर्म विरुद्ध चलते देख प्रसन्न होंगे।और कोई सेवा हो तो बताइए पिता महाराज।
वत्स मकरध्वज❗मैं तुम्हें धर्मपथ पर अडिग देख बहुत प्रसन्न हुआ।इसके लिये तुम्हें आशीर्वाद भी व प्यार भी।
परन्तु ये बताओ कि उसने प्रभु राम लखन को कहाँ छिपाया है❓क्या तुम अंदर आते जाते हो कभी❓
जी पिता महाराज मैं नित्य शिव जी का पूजन करने जाता हूँ और महामाई को नित्य नमन करने जाता हूँ।वैसे भी दिन में कई बार कार्य हेतु बुलाने पर चला जाता हूँ क्योंकि वह मुझसे कई बार राज्य सम्बन्धी चर्चा भी करता है।
उसने मेरे सामने राम लक्ष्मण को दुर्गा के समाने बहुत बड़ी सिला पर अचेत करके लिटा रखा है और स्वयं पाताल गङ्गा में स्नान करके यज्ञ रचा रहा है।यज्ञ रचके वह हमेशा रुद्राभिषेक करता है।अतः वह यज्ञ में बैठा है।
तो मैं अंदर जाकर पहले दुर्गा के भवन में ही जाऊं और श्री राम लखन को यज्ञ पूरा होने से पहले छुड़ाऊं।
लेकिन पिता जी मुझे हराकर ही आप जाइयेगा ताकि मुझ पर नमक हरामी का आरोप न लगे और मेरा धर्म नष्ट न हो।
उसके बाद बड़ी भूल भुलैया वाला किला है उसका।
मैं आपको गुप्त मार्ग बताता हूँ,वह केवल अहिरावण व मुझे ही पता है बस।आप मुझे परास्त करके उसी मार्ग से जाओ और पिता जी दुर्गा से स्तुति करके फिर रुद्राभिषेक करना जरूरी है,तभी दुर्गा प्रसन्न होकर कार्य
लेकिन तुम तो बाप से भी आगे निकले रणनीति में बेटे,तुम्हें कैसे हराऊं समझ नहीं आ रहा❓
बुद्धि लड़ाओ पिता महाराज❗
प्रिय पुत्र❗मेरा समय नष्ट होता जा रहा है।इस प्रकार तो तुम मेरे विरोध में खड़े हो और अब मैं अपने पुत्र पर न शस्त्र उठा सकता व बदन पर चोट मार सकता।
बुद्धि लड़ाओ पिता महाराज❗बच्चे प्यार के भूखे होते हैं।
मकरध्वज की बात सुनते ही हनुमान को युक्ति सूझ गयी और उन्होंने पुत्र को पुनः आलिंगन करते हुए अपनी बगल में दबा लिया और एक थमले से बांध दिया।यहीं बंधे रहो पुत्र,जब तक मैं प्रभु श्री राम लखन को ले आऊँ,तुम्हें कोई अधर्म नहीं लगेगा अब।
पिता महाराज,गुप्त मार्ग दाईं ओर है, उधर जाईये और जय माँ भवानी का जप करते हुए जाईये तो सारे संकरे मार्ग चौड़े होते जाएंगे।
हनुमान जी बताई गई विधि से भवानी अम्बे के भवन में पहुंचे गए।दोनों भ्राताओं को जगाने की कोशिश की परन्तु नहीं जग सके तो समझ गए कि तंत्र विद्या से अचेत किया गया है।
हनुमान जी ने माता भवानी के चरणों में मत्था टेका और बोले,प्रकट हों महेश्वरी❗मेरा निवेदन स्वीकार करें और मेरे प्रभु को जगाएं।मैं आपका सेवक प्रार्थना करता हूँ।
क्रमशः●●●●●●●●●●●●