अर्जुन ने पूछा,हे योगेश्वरमहाप्रभु❗क्या भक्त के अनुष्ठान की जिम्मेदारी दुर्गा की नहीं थी।
नहीं अर्जुन❗किसी भी हवन में देव प्रसाद अवश्य देते हैं, लेकिन हवन में कोई बाधा न हो,ये जिम्मेदारी यजमान की,हवन सामग्री ठीक हो,कोई कीट आदि उसमें न हो,ये जिम्मेदारी यजमान की,समिधा गीली न हो,उसमें दीमक न हो या अन्य कीट न हो,ये जिम्मेदारी यजमान की,मंत्र बोलने वाला पंडित सही उच्चारण करने वाला हो,यह नियुक्ति की जिम्मेदारी यजमान की,हवन में विरोधी जन उपस्तिथ न हों,यह जिम्मेदारी यजमान की,हवन के सब प्रबंध सही हों,यह जिम्मेदारी यजमान की।देव हवन पूर्ण होने पर प्रसाद देते हैं, रक्षा का भार उन पर नहीं।इसीलिये तो विश्वामित्र भी यज्ञ की रक्षा को श्री राम व लखन को संग लाये थे,उससे पहले सभी यज्ञ निशाचरों ने नष्ट किये।क्या कोई देव रक्षा करने आया❓नहीं न❗क्योंकि यज्ञ की रक्षा सुरक्षा के प्रबंध की जिम्मेदारी देव की नहीं,यजमान की होती है।
राजा बलि के यज्ञ की जिम्मेदारी राजा की थी।
राजा सगर का यज्ञ पूरा नहीं हुआ,ये देव की जिम्मेदारी नहीं थी,सगर की जिम्मेदारी थी।इसलिये ही महादेव ने कहा कि तुम जिन वचनों से बंधी हो,केवल उन्हें निभाओ,यज्ञ की रक्षा की जिम्मेदारी तुम्हारी नहीं।अतः मेघनाथ की रक्षा यज्ञ के मध्य मत करना,यज्ञ पूरा होने पर करना तुम्हारा वचन है, यज्ञ मध्य नहीं।
जी नन्दनन्दन❗समझ आ गया।
अब क्या हुआ आगे सुनने को मन उत्सुक है दीनानाथ।
हे अर्जुन❗मेघनाथ ने कड़ी सुरक्षा प्रबंध कर लिए और जोर जोर से मंत्र उच्चारण करने लगा।रात्रि का समय था।रामादल में भी सब सोए थे।विभीषण जी व हनुमान जी और लखनलाल प्रहरी बन टहल रहे थे शिविरों के चारों ओर।पहली रात्रि को लखन लाल हनुमत द्वारा द्रोणगिरि पर्वत की संजीवनी बूंटी से ठीक हुए थे।लखन के मन में भयंकर क्रोध छा चुका था।राम जी अभी अर्ध निद्रा में ही थे कि उनके कर्ण में मंत्र ध्वनि की गूंज सुनाई दी।यह गूंज लखन,विभीषण व हनुमान ने भी सुनी।
हनुमान जी ने पूछा कि इतनी तीव्र आवाज में लयबद्ध होकर इतने शुद्ध उच्चारण लंका में कौन विद्वान पढ़ रहा है❓
विभीषण जी ने बताया कि ये आवाज निकुंबला देवी की गुफा से आ रही है और ये मंत्रों की गूंज देवी को प्रसन्न करने हेतु है।यह मेघनाद की सिद्धि दात्री देवी है जो लंका की कुल देवी भी हैं।इन्हीं की ताकत से मेघनाद इंद्रजीत बना,ये ही मेघनाद के रथ पर सवार होकर उसे अभय व विजित बनाती हैं।वह आज उन्हें प्रसन्न कर फिर कल उन्हें रथ पर लाएगा।जब भी वह युद्ध में जाता है तो रात्रि को यज्ञ करके देवी को प्रसन्न करता है और देवी वचन बध्य हो जाती हैं।
हनुमान जी बोले कि देवी का वचन क्या है❓
विभीषण जी ने बताया कि जब उग्र तपस्या वशीभूत देवी वर देने को उद्यत हुई तो मेघनाथ ने यही वर मांगा कि मेरे रथ पर सवार होकर हर युद्ध में जाकर मुझे विजय दिलाया करना।
तब देवी ने कहा था कि जब जब युद्ध में प्रस्थान करो तो सारी रात मेरी पूजा व यज्ञ करना होगा तो मैं अवश्य हर बार चलूंगी तुम्हें विजय दिलाने।तब तुम्हें त्रिभुवन में कोई नहीं परास्त कर सकेगा,केवल तुम्हारी ही विजय का डंका बजेगा,चाहे शत्रु त्रिदेव में भी कोई एक हो या समस्त एक साथ हों,तुम्हें संग्राम में विजय दिलाना मेरा वचन है।पर पूजा यज्ञ अधूरा रह गया तो मैं तुम्हारे रथ पर नहीं आऊंगी।तब जीत हार तुम्हारा कर्म तय करेगा, मेरी शक्ति नहीं।
अतः तब से अब तक वह जिस दिन युद्ध में जाता है, सारी रात निकुंबला देवी को अपना रक्त व मांस भेंट कर करके स्तुति गाता व हवन करता है।आज वह क्रोधित है क्योंकि उसके नाग पाश को भी विफल कर दिया गया गरुड़ द्वारा व वीर घातिनी शक्ति भी विफल हो गयी संजीवनी बूंटी के कारण और कालनेमि राक्षस भी मारा गया हनुमान जी आप द्वारा।
तो आज वह प्राणपण से जोर जोर से लयबद्ध होकर दिव्य स्तुतियाँ निवेदित कर रहा है।अगर वह सफल हो गया तो उसे कोई परास्त नहीं कर सकता और वह संग्राम में बड़े बड़े भयंकर शस्त्र चलाकर पूरी वानर सेना भी तबाह करेगा और लक्ष्मण जी आप उसके केंद्र होंगे वध के।यह बात गुप्तचरों ने बताई कि मेघनाद को जब रावण ने फटकारा कि दो दिन से तू युद्ध कर रहा है और शत्रु फिर जिंदा हो जाता है तो डूब मर कहीं जाकर।तुझ पर गर्व था कि तू इंद्रजीत नाम से विख्यात हो गया और दो नर तुझसे नहीं मारे गए न ही वानर।धिक्कार है तेरी वीरता पर।तो इंद्रजीत ने कसम खा ली कि कल उस वनवासी का छोटा भाई मेरा निशाना होगा ,अगर वह नहीं मरा तो मैं खुद को अपनी तलवार से खत्म कर लूंगा,आपको मुंह नहीं दिखाऊंगा और लंका में प्रवेश नहीं करूंगा।
अतः लक्ष्मण जी,कल आप संग्राम में मत जाना।
लक्ष्मण जी बोले कि मैं नहीं डरता उससे।चाहे जो हो जाये,मैं भी कल मैदान में आ डटूंगा।
लेकिन हनुमान जी तो दुर्गा चामुण्डा की शक्ति जान चुके थे।अतः वे राम जी के शिविर की ओर भागे।उनके पीछे विभीषण जी भी शिविर में आये।
श्री राम अभी आधी नींद में ही थे कि कदमों की आहट से वे जग गए और बोले,क्यों हनुमान❗बड़े घबराहट में हो,क्या बात❓हनुमान जी चरणों में गिर पड़े और सारी बात बता दी जो विभीषण ने कही थी।विभीषण ने कहा कि भगवन, ऐसा ही है देवी का प्रताप।
यदि यज्ञ सफल हो गया तो मेघनाद को कोई पराजित नहीं कर सकेगा।देवी निकुंबला उसका व उसके रथ का कवच व विजय का अटूट कवच है।
हनुमानजी बोले,प्रभु❗कुछ करिये।मैं दुर्गा की शक्ति जानता हूँ।
राम जी उठ खड़े हुए और बोले,हाँ दुर्गा विजित है शिव ब्रह्मा व नारायण से भी।उन्हें ब्रह्मांड में कोई नहीं हरा सकता।इसलिये एक ही तोड़ है आज इस कुचक्र का।जाओ विघ्न डाल दो उस पापी मेघनाद के यज्ञ में।ये मेरी आज्ञा है।
लक्ष्मण जी बोले,आपको मुझ पर विश्वास नहीं भैया❗जो यज्ञ भंग की विचारी❗
नहीं छोटे भाई,मैं खुद तेरे सहारे युद्ध में खड़ा हूँ।पर दुर्गा का सामना नहीं हो सकेगा तुझसे और न मुझसे क्योंकि वे हमारी भी तो अधिष्ठात्री देवी हैं भाई लक्ष्मण❗वे शिव की शिवा हैं, हमारा युद्ध शत्रु से है, शत्रु उनकी आड़ जरूर लेगा तो क्या हम दुर्गा पर तीर चलाएंगे मेरे महावीर भाई❓नहीं न❗वे हमारी भी इष्टदेवी हैं।शिव जी हमारे इष्ट हैं तो हम उनकी वामांगी को भला कैसे परास्त करने की सोचेंगे।हमें तो उनका सम्मान ही करना होगा उनके तीर झेलकर।जैसे हनुमान ने मेघनाद के ब्रह्मपाश का मान रखा।
कल दुष्ट पापी मेघनाद जरूर उनसे भी हथियार उठवायेगा क्योंकि दो दिन तक उसके अनेकों दिव्य बाण हमने नष्ट कर दिए,कल वह दुर्गा के अमोघ अस्त्रों को दुर्गा से ही चलवायेगा क्योंकि शिव व शिवा के बाण पापी धारण नहीं कर सकते।
अतः भाई❗कल का मौसम अनुकूल बनाने को यज्ञ भंग करना ही होगा।
फिर क्या करें भैया❓कौन भंग करेगा यज्ञ उसका।
राम जी ने कहा कि हनुमान ,नल नील,अंगद व तुम लक्ष्मण भाई।तुम सब जाओ ,शीघ्र करो,यज्ञ आधा भी हो गया तो फिर उसकी शक्ति उग्र हो जाएगी,शीघ्र करो।
विभीषण जी ने कहा कि भगवन❗बड़े बड़े पहरे बिठाए उसने,तंत्र मंत्र के कपाट लगाए हुए बन्द गुफा में यज्ञ कर रहा है वह।
राम जी को कोप चढ़ गया और बोले कि गुफा की छत तोड़ दो,दीवारें खोखली कर दो,हनुमान❗तुम सबको गदा से अधमरा करो,अंगद❗ तुम अपने पैर का बल लगाओ,गुफा की दीवार गिराओ,वही बल जो रावण के दरबार में लगाया था।
नल नील❗तुम भाले लेकर गुफा के पत्थर चूरा चूरा कर दो।
हनुमान❗अगर लगे कि वे ही सफल हो रहे तो चक्रवात पैदा कर प्रहरियों की आंखों में धूल झोंक दो।
लक्ष्मण ❗जाओ उसे युद्ध को ललकारो,इतना जहर उगलो कि वह अपमानित होकर बाहर निकल आये।तोड़ दो गुफा।यज्ञ भंग करके मुक्त करो देवी को,वे अवश्य पीड़ित होंगी उसको दिए वचनों से।
देवी से नम्र निवेदन करना कि वे कैलाश लौट जाएं।अब यज्ञ भंग करके हम मेघनाद को मारेंगे, मेघनाद खत्म तो आपका वचन खत्म और देवी को प्रणाम करते ही युद्ध उनके सामने ही आरम्भ कर दो।
तब देवी के वर से रिक्त वह दुष्ट अवश्य मरेगा भाई।सोचो मत,जाओ,मेरा आदेश है।
लक्ष्मण जी कुपित होकर बोले,लेक़िन मुझे ये छल मंजूर नहीं बड़े भईया❗हम रघुवंशी कभी छल नहीं कर सकते,क्या कर रहे हैं आज आप।मैं नहीं जाऊँगा छल करने।
क्रमशः●●●●●●●●●●●●●