माता निकुम्भला जो रावण की कुलदेवी थी,मेघनाद ने उनकी अकाट्य साधना करके उन्हें जो अपना रक्त व मांस रोज अर्पित मनाया और वरदान में यही मांगा कि आप मुझे हर युद्ध में विजय दिलाएं।तो निकुंबला देवी ने कहा था कि किसी भी युद्ध में जाने से पहले रात भर तुझे मेरी पूजा करनी होगी,तो ही मैं तेरे साथ युद्ध में तेरे रथ पर चढ़कर तुझे विजय दिलाऊंगी,तब तेरा शत्रु भले ही त्रिदेव में भी कोई हो।अतः मेरी पूजा युद्ध में जाने से पूर्व अवश्यम्भावी है और जिस दिन तेरे रथ पर मैं नहीं होंगी,उस दिन की बात तू जाने,हारे या जीते।
मेघनाद ने तब से लेकर हजारों युद्ध जीते,इंद्र को भी परास्त किया।अपने पिता के लिए सैंकड़ो युद्ध लड़े।रावण को अपने इस विजयी पुत्र पर गर्व हो चला था क्योंकि कुछ शस्त्र रावण के पास भी नहीं थे,जो मेघनाद के पास थे।देवी निकुंबला उसके रथ पर शत्रु की शक्ति हर लेती थी और उनके शस्त्रों से मेघनाद की रक्षा करती थी।अतः लंका में निकुंबला के नाम का बड़ा डंका था।
निकुंबला देवी का मंदिर अंधेरी गुफा में निर्जन में था।
जिस समय हनुमान का लंका जलाने का नजारा सबने देख लिया और अंगद के पांव का बल भी सबने देख लिया तो सब लंका वासी भयभीत तो थे ही।
इधर राम सागर पर पुल बांध लंका के बाहर सैन्य दल के साथ आ धमके तो रावण ने अन्य सेना भेजी,वो भी रामजी के वानरों ने मार पीटकर भगा दी।रावण के कई मंत्री व मंत्री के बेटे पौते सब मारे गए तो
अब मेघनाद निकुंबला देवी का रात को पूजन करके अगली प्रातः खुद युद्ध करने आया।अपने नाना मायासुर से मेघनाद ने सारी मायावी विद्या सीख ली थी।ऊपर से निकुंबला देवी रथ में सज्ज होकर आयी तो युद्ध में मेघनाद ने राम की सेना में त्राहि त्राहि मचा दी।वह मायावी आकाश में गुप्त होकर शस्त्र संधान करने लगा और उसकी ओर जो शस्त्र राम व लक्ष्मण द्वारा छोड़े जाते तो देवी निकुंबला उन्हें अशक्त कर देती।युद्ध करते करते संध्या का समय करीब आ गया।मेघनाद ने सोचा कि राम व लक्ष्मण के पास मेरे सारे अस्त्रों का तोड़ है।लेकिन एक दिव्य नागास्त्र है जो मेरी पत्नी सुलोचना के पिता अर्थात मेरे श्वसुर से मुझे सिखाया,वह नागास्त्र इन दोनों भाईयों पर अंधकार करके माया फैलाकर इन दोनों पर छोड़ दूं।तब ये नागपाश में बंध भी जाएंगे और अचेत होकर गिर पड़ेंगे।इसका कोई तोड़ इनके पास होगा नहीं और ब्रह्ममुहूर्त से पहले ही अर्धरात्रि में ये दोनों नागों के विष से मर जायेंगे क्योंकि नागों का विष बदन में गहरा प्रविष्ट होता जाएगा और ये दोनों प्राण त्याग देंगे।अतः आकाश में गुप्त होकर सूर्यास्त के कुछ पहले नागास्त्र चलाकर लंका की ओर प्रस्थान कर गया।इधर दोनों भाईयों को बड़े बड़े विषधरों ने जकड़ लिया और वे अचेत होकर पृथ्वी पर लुढ़क पड़े।उनकी दीनदशा देखकर सेना में कोहराम मच गया।
फिर क्या हुआ वंशीधर❓श्री राम तो भगवान थे और लक्ष्मण जी सभी नागों के सरताज शेषनाग थे तो नागों ने अपना प्रभाव शेषनाग पर क्यों दिखाया❓नारायण की तो शैय्या भी शेषनाग की है, फिर श्री राम जी पर नागों का अस्त्र क्यों प्रभावी हुआ,जबकि वे नारायण का अवतार ही हैं।यह बात समझ नहीं आयी गोविंद❗
देवी निकुंबला की छत्रछाया में यदि तिनका भी छोड़ा जाए तो वह भी त्रिशूल बनकर शत्रु पर टूट पड़ता था अर्जुन।
दूसरी बात भगवान शिव के अनुयायी हैं नागलोक वासी,वहां शिव व शिवा ही अधिष्ठातृ व अधिष्ठात्री हैं।देवी निकुंबला शिवा की प्रतिरूप हैं।अतः मेघनाथ के रथ पर देवी विराजमान थी तो नाग देवी को प्रणाम करके मेघनाद के धनुष से छूटे और राम व लक्ष्मण को जकड़ लिया और अपने विष के अधीन कर लिया।
देवी के प्रभाव से ही ऐसा हुआ कि राम लक्ष्मण को विष व्याप्त हो गया।
फिर क्या हुआ बैकुंठाधिपति❓
तब नारद जी ने गरुड़ जी को भेजा और गरुड़ जी तो सभी सर्पों के शत्रु हैं, जबकि नागों के सगे भाई हैं गरुड़ जी।परन्तु गरुड़ की माता को बंदिनी दासी बनाकर रखने से गरुड़ जी नागों के विरुद्ध हो गए।अब तक इन भाईयों की शत्रुता खत्म नहीं हुई।
गरुड़ जी नारायण के वाहन हैं।अतः उन्होंने राम लक्ष्मण के बंधन छांट दिए।नागों को उधेड़ कर खा गए और रामदल में खुशियाँ छा गई।
अगले दिन फिर मेघनाद से युद्ध हुआ।फिर देवी निकुंबला के प्रताप से राम लक्ष्मण के बाणों का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ।और संध्या काल तक युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला, वह तरह तरह से मायावी रूप दिखाता रहा, राम जी माया काटते रहे लेकिन महामाया के रथ पर सवार होने से मेघनाद पुनः पुनः नवीन माया रचता रहा।आखिर में सूर्यास्त से पहले जब लखनलाल जी से सामना हो रहा था तो मेघनाद ने वीर घातिनी अमोघ शक्ति लक्ष्मण की छाती में भोंक दी,जिससे लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर पड़े।मेघनाद व उसकी सेना ने बहुत यत्न किये पर धरा को शीश पर धारण करने वाले शेष को धरती से वे उठा न सके और खिसियाकर लंका चले गए।
फिर क्या हुआ प्रभु❓
अर्जुन उस दिन देवी निकुंबला बहुत उदास हो गयी क्योंकि उनकी छत्रछाया में पवित्र राम लखन की जोड़ी को त्रास पर त्रास दिया जा रहा है तो वे दुखी होकर शिव को पुकारने लगी कि हे मेरे जीवनधन❗मेरी उपासना का इतना दुरुपयोग कब तक होता रहेगा।
तब उस गुफा में शिव जी प्रकट हुए।देवी❗तुम्हारी इसमें जरा भी गलत नियति नहीं है, स्वयं को दोष मत दो।अगर तुम मुक्त होना चाहती हो तो आज रात्रि मेघनाद फिर तुम्हारी पूजा करने आएगा क्योंकि कल वह फिर तुम्हें अपने रथ पर ले जाएगा।अतः तुम उसके मंत्रों का प्रणाम स्वीकार मत करना।
लेकिन मैं ऐसा कैसे करूँ परमेश⁉जो भी मंत्र का नमन होता है, वह कंठ से निकलकर मेरे चरणों में ही अर्पित होता है, यही तो मंत्र की दिव्य ताकत है और मेघनाद को सारे मंत्र रटे पड़े हैं।वह हर मंत्र में अपने बदन का रक्त भी मुझे अर्पित करता है।विवश हो मुझे उसकी विजय कराने हेतु आशीर्वाद भी देना पड़ता है और उसके रथ पर भी जाना होता है, वह रथ भी उसे मैंने ही प्रदान किया था।अब बताओ क्या करूँ❓
शिव जी ने कहा कि तुम उस समय मेरे मंत्र पढ़ना आरम्भ कर देना,जब आज रात को मेघनाद तुम्हारे मंत्र पढ़ेगा।तब मंत्र से मंत्र टकराकर स्वतः नष्ट हो जाएंगे और तुम उसके रथ पर जाने से बच जाओगी।
नहीं महादेव❗आपकी ये बात मुझे स्वीकार नहीं।एक राक्षस के लिये मैं आपके मंत्र नष्ट करवाऊं,ये अपमान मैं आपके मंत्र का नहीं कर सकती।कोई और उपाय बताओ।
तो तुम ये गुफा त्याग दो इसी घड़ी।
नहीं महादेव❗मैं वचन बध हूँ।खंडित वचन करके दिव्य मान नहीं घटाऊंगी।जो वचन का मान खंडित करता है, वह फिर पूजा लायक भी नहीं।कोई और उपाय बताओ।
तो फिर तुम आज उसे वाक्जाल में उलझा लो,इससे उसके स्तोत्रों का समय आधा निकल जायेगा और पूजा पूरी नहीं होने से तुम रथ पर सवार नहीं होंगी।
नहीं महादेव❗मैं ऐसा नहीं कर सकती।भक्तों के साथ भगवान छल नहीं कर सकते।जिस समय कोई पूजा के लिये आसन ग्रहण कर लेता है, उस समय वह कोई जाति,कुल अथवा सम्बन्धी व शत्रु नहीं होता,तब वह केवल एक भक्त होता है।मैं भक्ति के खिलाफ षड्यंत्र नहीं रच सकती।और कोई उपाय बताओ।
तो तुम गुफा का दरवाजा बंद कर लो,उसे मंत्रों से कील दो।न वह दरवाजा खोलेगा और न पूजा कर सकेगा।
नहीं महादेव❗मैं नमक हरामी नहीं कर सकती।जिस थाली में खाऊं, उसमें छेद नहीं कर सकती।जिसके राज्य में निवास मिला,जिसकी गुफा में मेरा आवास,उसी के लिये दरवाजे बंद करूँ।न न ये आप आज क्या उल्टी शिक्षा मुझे दे रहे हैं।और कोई उपाय बताओ।
क्रमशः●●●●●●●●●●●●●