आज से लगभग ढाई, तीन वर्ष पूर्व किसी ने हमसे प्रश्न किया था की यदि माता-पिता में से पिता विधर्मी (अलग धर्म से) हो तो संतानों का गोत्र क्या होगा ?
इस प्रश्न ने मुझे बहुत प्रभावित किया था और मैंने इसका विस्तृत व्याख्यात्मक उत्तर दिया था । वो तो अब मुझसे संपर्क में हैं नहीं किन्तु उसका प्रश्न वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परम् प्रासंगिक हैं ।
मुझे घोर आश्चर्य तब होता हैं जब सनातन धर्मानुयायियों को इतने गम्भीर तकनीकी प्रश्न पर निरुत्तर पाता हूँ ।
गोत्र मानवमात्र का होता हैं ; चाहे उसकी मान्यता गोत्रों में हो या चाहे न हो , चाहे वो सनातन धर्मानुयायी हो या न हो । आज इस लेख के माध्यम से मैं “गोत्र” इस विषय को स्पष्ट करने का प्रयत्न करूंगा।
सुविधा एवम् सरलता की दृष्टि से पोस्ट को मैंने दो भागों में बांटा है :-
1) गोत्र होते क्या हैं ?
2) जिनके गोत्र अज्ञात हैं , उनका क्या होगा ?
गोत्र मोटे तौर पर उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है । गोत्र जिसका अर्थ वंश भी है , यह एक ऋषि के माध्यम से शुरू होता है और हमें हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है और हमें हमारे कर्तव्यों के बारे में बताता है । व्याकरण के प्रयोजनों के लिये पाणिनि में गोत्र की परिभाषा है ‘अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्’ (४.१.१६२), अर्थात ‘गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक ऋषि की) संतान् । गोत्र, कुल या वंश की संज्ञा है जो उसके किसी मूल पुरुष के अनुसार होती है ।
महाभारत के शान्तिपर्व (296-17, 18) में वर्णन है कि मूल चार गोत्र थे ; अंगिरा , कश्यप , वशिष्ठ और भृगु । बाद में आठ हो गए जब जमदन्गि, अत्रि, विश्वामित्र तथा अगस्त्य के नाम जुड़ गए । एक अन्य मान्यता है कि प्रारंभ में सात गोत्र थे कालांतर में दूसरे ऋषियों के सानिध्य के कारण अन्य गोत्र अस्तित्व में आये ।
मेरे विचार- एक मान्यता के अनुसार सात पीढ़ी बाद सगापन खत्म हो जाता है अर्थात सात पीढ़ी बाद गोत्र का मान बदल जाता है और आठवी पीढ़ी के पुरुष के नाम से नया गोत्र आरम्भ होता है (हम इस मान्यता के प्रबल समर्थक हैं) । हम गोत्र को Scientific व्यवस्था मानते हैं एवम् जीवन के (और जीवन के बाद भी) प्रत्येक क्षेत्र में “गोत्रों” का व्यापक महत्त्व स्वीकार करते हैं ।
व्यावहारिक रूप में “गोत्र” से आशय पहचान से है , जो ब्राह्मणों के लिए उनके ऋषिकुल से होती है ।
प्रत्येक मानव का गोत्र होता हैं , गोत्र एक Scientific व्यवस्था हैं । हिन्दू , मुस्लिम , ईसाई , अधर्मी , विधर्मी इन सबके गोत्र होते हैं – चाहे माने या न माने । कल्पना कीजिए एक बच्चा जिसे अपने माता-पिता के विषय में कुछ नहीं मालूम , उसका क्या होगा ?
– उसे “कश्यप गोत्रीय” अर्थात “कश्यप गोत्र” का माना जाएगा ।
इसकी शास्त्रोक्त व्यवस्था देखिए :-
“गोत्रस्य त्वपरिज्ञाने काश्यपं गोत्रमुच्यते।
यस्मादाह श्रुतिस्सर्वाः प्रजाः कश्यपसंभवाः।।“ (हेमाद्रि चन्द्रिका)
जिसका गोत्र अज्ञात हो उसे “कश्यप गोत्रीय” (कश्यप गोत्र का) माना जाएगा और यह एक शास्त्र सम्मत व्यवस्था है अर्थात् पूर्णतः निर्दोष व्यवस्था है।