भारतभूमि विविध संस्कृतियों, परंपराओं और आस्थाओं की धरोहर रही है। यहाँ प्रत्येक पर्व और त्यौहार का अपना विशेष महत्व है। इन्हीं पावन पर्वों में से एक है विश्वकर्मा जयंती, जिसे निर्माण और सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का दिव्य शिल्पी, वास्तुशिल्प का जनक और प्रथम अभियंता (Engineer) कहा जाता है। कहा जाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि में जितने भी भवन, देवालय, महल, रथ, अस्त्र-शस्त्र और अद्भुत यंत्र बने, उन सभी का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया। इसलिए वे सृजन, निर्माण, तकनीक और कला के देवता माने जाते हैं।
भगवान विश्वकर्मा का परिचय
पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मा का मानस पुत्र माना गया है। वे वास्तुकला, शिल्पकला, यंत्र-निर्माण और विविध तकनीकी विद्या के अद्वितीय ज्ञाता थे। इन्हें प्राचीन भारत का प्रथम वास्तुकार और अभियंता कहा जाता है।
उन्होंने न केवल देवताओं के दिव्य लोकों और नगरी का निर्माण किया, बल्कि असुरों और मनुष्यों के लिए भी अनुपम नगरों की रचना की। उनके निर्माणों का वर्णन ऋग्वेद, अथर्ववेद, स्कन्दपुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है।
भगवान विश्वकर्मा के प्रमुख निर्माण
भगवान विश्वकर्मा की प्रतिभा का अंदाज़ा उनके बनाए दिव्य और अद्वितीय निर्माणों से लगाया जा सकता है। इनमें से कुछ प्रसिद्ध उदाहरण इस प्रकार हैं –
इन सबके अतिरिक्त अनेक दिव्य रथ, अस्त्र-शस्त्र, महलों और देवालयों का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने किया।
विश्वकर्मा जयंती का महत्व
विश्वकर्मा जयंती का पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो किसी न किसी रूप में निर्माण, मशीनरी, औजारों और तकनीक से जुड़े होते हैं।
इस दिन कारखानों, वर्कशॉप, फैक्ट्रियों, ऑफिसों, कंप्यूटर सिस्टम, औद्योगिक उपकरणों, मशीनों, वाहनों और औजारों की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से उपकरणों की कार्यक्षमता बनी रहती है और कार्य में उन्नति प्राप्त होती है।
पूजा-विधि और अनुष्ठान
विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। पूजा स्थल को सजाया जाता है और भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र की स्थापना की जाती है।
इस दिन कार्य से अवकाश लेकर उपकरणों की साफ-सफाई और रखरखाव करना शुभ माना जाता है।
सामाजिक और व्यावहारिक महत्व
विश्वकर्मा जयंती केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मेहनतकश वर्ग, कारीगरों, इंजीनियरों और श्रमिकों के प्रति सम्मान का भी प्रतीक है। इस दिन लोग अपने श्रम और कौशल के महत्व को पहचानते हैं और सामूहिक रूप से तकनीकी प्रगति के लिए भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद मांगते हैं।
औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों और वर्कशॉप्स में यह पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कर्मचारी और मालिक सभी मिलकर एक साथ पूजा करते हैं और कार्यक्षेत्र की सुरक्षा, उन्नति तथा समृद्धि की कामना करते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
भगवान विश्वकर्मा का संदेश है कि मनुष्य को अपने कौशल और परिश्रम से समाज और विश्व के कल्याण हेतु कार्य करना चाहिए। निर्माण और सृजन तभी सार्थक है जब उससे समाज का उत्थान हो और जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो।
आधुनिक युग में प्रासंगिकता
आज का युग विज्ञान और तकनीक का युग है। हर दिन नए आविष्कार हो रहे हैं और मशीनों का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में भगवान विश्वकर्मा की जयंती का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
इस दिन तकनीकी पेशे से जुड़े लोग – इंजीनियर, आर्किटेक्ट, मैकेनिक, आईटी प्रोफेशनल, डिजाइनर और मजदूर – सभी अपनी सफलता और सुरक्षा के लिए विश्वकर्मा जी की आराधना करते हैं।
निष्कर्ष
विश्वकर्मा जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि मेहनतकश समाज, निर्माण और तकनीक से जुड़े हर व्यक्ति के सम्मान का उत्सव है। भगवान विश्वकर्मा हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम अपने कौशल और परिश्रम से न केवल स्वयं की प्रगति करें, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में भी योगदान दें।
इस दिन की पूजा-अर्चना से उपकरण सुरक्षित रहते हैं, कार्य में सिद्धि मिलती है और जीवन में समृद्धि आती है। अतः हर व्यक्ति को चाहिए कि वह भगवान विश्वकर्मा की आराधना करे और अपने कार्य को सृजनशीलता एवं ईमानदारी के साथ सम्पन्न करे।