ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का मिलान करते समय मांगलिक दोष का विचार सबसे अधिक किया जाता है ,तथा वर्त्तमान समय में सबसे अधिक गलत समझे जाने वाला विचार मांगलिक दोष का है।
आज के समय में परम्परागत रूप से कुंडली देखने वाले अप्रशिक्षित,अक्षम ज्योतिषी वर-कन्या के परिवार वालो को इस मांगलिक दोष के नाम पर डराते है तथा उन वर-कन्या के परिवार वाले निश्चित रूप से वर व कन्या की तलाश में काफी कष्ट अनुभव करते है।
वृहत पाराशर होराशास्त्र जो की ज्योतिष जगत का सर्वमान्य ग्रन्थ है तथा अन्य कई मौलिक ग्रंथो में मंगल या कुजा दोष का वर्णन नहीं है।
बात यह भी है की ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथो में कुजा दोष के सम्बन्ध में केवल मंगल का कुंडली के विभिन्न भावो में होने के परिणाम के सम्बन्ध में ही वर्णन मिलता है जिसे आधुनिक समय में ज्योतिष शास्त्र के अपूर्ण ज्ञान के कारण कुछ ज्योतिषी इसे काफी बड़ाचड़ा कर बताते है।
चूंकि मंगल एक अशुभ ग्रह के रूप में ज्योतिष शास्त्र में माना गया है,अत: विभिन्न लग्नो में मंगल का होना उस लग्न में मंगल की दोनों राशियो में जो की क्रमश: मेष तथा वृश्चिक है ,मंगल का कुंडली में12 भावो में होना ही शुभ अशुभ परिणाम प्रदान करता है।
सामान्यता: वर तथा कन्या की कुंडली में लग्न,चतुर्थ,सप्तम,अष्टम तथा द्वादश भाव में मंगल का होना कुजा दोष उत्पन्न करता है ।
दक्षिण भारत में द्वितीय भाव में भी मंगल के होने से मांगलिक दोष उत्पन्न होता है।
अर्थात लड़की की कुंडली में द्वितीय,द्वादश,चतुर्थ,सप्तम अथवा अष्टम भाव में मंगल का होना उसके पति के लिए अशुभ तथा पुरुष की कुंडली में हो तो उसकी पत्नी के लिए अशुभ होगा।
इन भावो को कुंडली की विवेचना करते समय लग्न,चन्द्रमा तथा शुक्र तीनो से ही मंगल को देखना चाहिए।
मंगल दोष शुक्र से अधिक बली होता है,उससे कम चन्द्रमा से और सबसे कम लग्न से होता है।
1.चूंकि प्रथम भाव अथवा लग्न में मंगल का होना चतुर्थ पूर्ण दृष्टि से मानसिक शांति के भाव चतुर्थ भाव तथा सप्तम पूर्ण दृष्टि से विवाह के भाव को तथा अष्टम पूर्ण दृष्टि से विवाह की आयु के भाव को दृष्ट करता है,मंगल की अशुभ प्रवृत्ति अशुभ परिणाम दायक होती है।
3.चतुर्थ भाव में मंगल मानसिक सुख को तथा सप्तम भाव जो की विवाह का भाव है को चतुर्थ पूर्ण दृष्टि से देखता है।
4.सप्तम भाव में मंगल विवाह के लिए शुभ नहीं है।
5.अष्टम भाव पुरुष की कुंडली में पत्नी की आयु तथा कन्या की कुंडली में पति की आयु को दर्शाता है।
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तथा यह अष्टम भाव विवाह की आयु का भी भाव है अत: यह पुरुष की कुंडली में उसकी पत्नी का मांगल्य भाव तथा कन्या की कुंडली में उसके पति का मांगल्य भाव कहलाता है।
अष्टम भाव में मंगल अशुभ फलदायी माना गया है।
6.द्वादश भाव में मंगल पुरुष तथा कन्या के लिए शयन सुख को दर्शाता है,यहाँ से मंगल कुंडली के सप्तम भाव को जो की विवाह का भाव है को अष्टम पूर्ण दृष्टि से प्रभाबित करता है।
1.मेष लग्न के लिए अष्टम भाव में वृश्चिक राशि का मंगल दीर्घायु दायक होता है।
3.कन्या लग्न के लिए अष्टम भाव में मंगल दीर्घायु दायक होता है ,यहाँ मंगल स्वराशी मेष का होता है।
10.गुरु की त्रिकोण दृष्टि अर्थात पंचम,सप्तम तथा नवम पूर्ण दृष्टि मंगल पर हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।
11.उच्च का या मकर राशि का मंगल हो तो मांगलिक दोष का परिहार होता है।
12.शुक्र व चन्द्रमा लग्न से द्वितीये भाव में हो तो मांगलिक दोष का परिहार होता है।
13.लग्न का स्वामी हो कर मंगल,चन्द्रमा,व शुक्र के साथ हो तो मंगल दोष का परिहार होता है।
केवल मंगल दोष का कुंडली में होने से ही केवल कुंडली मिलान की रीति पूर्ण नहीं समझनी चाहिए।
ऐसा प्राय: देखा गया है की जिन कुंडलियो में मंगल दोष नहीं था उनका भी वैवाहिक जीवन टूटा तथा जिनकी कुंडलियो में मंगल दोष था वे भी एक लम्बे दीर्घायु जीवन को पूर्ण कर सके।
अत: किसी भी पुरुष-कन्या के विवाह के लिए कुंडली की जांच मात्र “मंगल दोष” का होना या न होना पर न निर्भर रहे वरन यह भी देखा जाये की-
2.पुरुष और कन्या रोग मुक्त है या नहीं,कुंडली में जांच आवश्यक है।
4.कुंडली में संतान का शुख है या नहीं यह भी वैवाहिक जीवन के लिए आवश्यक है।
5.यदि लग्न बलि है तो समस्त सुख की प्राप्ति की अपेक्षा रखी जा सकती है।
2.कुम्भ विवाह
कोई भी उपाय पूर्ण रूप से सुयोग्य, शिक्षित, संवेदनशील जानकार की देख-रेख में ही करवाने चाहिए।